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सीतामढ़ी : वैश्य मतों पर नजर… आड़े आ रही अकड़!

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मदनमोहन ठाकुर
18 म‌ई 2024

Sitamarhi : संसदीय चुनाव के चौथे चरण में मुंगेर (Munger) और बेगूसराय (Begusarai) में संघर्ष को अगड़ा पिछड़ा का रूप देने की पूरजोर कोशिश हुई. कोशिश कितनी कामयाब हुई, परिणाम बतायेगा. ऐसा माना जाता है कि इन दोनों क्षेत्रों में अगड़ा पिछड़ा की भावना भड़काने में सहूलियत इस कारण भी हुई कि सीटिंग सांसदों के खिलाफ जबर्दस्त असंतोष-आक्रोश था. अकड़ और अहंकार बर्दास्त से बाहर हो गया था. वहां चुनाव हो गया. अगड़ा पिछड़ा की हवा अब सीतामढ़ी में फैलाने का प्रयास हो रहा है. परन्तु, सफलता नहीं मिल रही है. इसलिए कि एनडीए (NDA) उम्मीदवार के खिलाफ यहां वैसा कोई असंतोष नहीं है जैसा मुंगेर और बेगूसराय में दिख रहा था. इसके बावजूद चुनाव का गणित जातीय समीकरण से ही सुलझाया जा रहा है. कारण कि एनडीए के पक्ष में न राष्ट्रवाद आधारित हिन्दुत्व का कोई असर है और न महागठबंधन (Mahagathbandhan) के लिए मंहगाई, बेरोजगारी और विकास जीत दिलाऊ मुद्दा बन पाया है.

खत्म नहीं हुई नाराजगी
राजनीतिक और सामाजिक हालात में थोड़ा-बहुत परिवर्तन आया है, तो जदयू उम्मीदवार के सवर्ण समाज के होने के चलते. पर सबके बीच एनडीए की बड़ी चिंता यह है कि उम्मीदवारी से वंचित कर दिये गये वैश्य समाज के सीटिंग सांसद सुनील कुमार पिंटू (Sunil Kumar Pintu) की नाराजगी खत्म नहीं हुई है. मतदान के दिन मन मिज़ाज बदल जाये तो वह अलग बात होगी. चूंकि मुद्दा विहीन चुनाव (Election) में जातीय समीकरण ही महत्वपूर्ण हो गया है इसलिए विश्लेषण भी उसी आधार पर होना चाहिये. सीतामढ़ी में कुल 19 लाख 47 हजार 992 मतदाता हैं. अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी राजद (RJD) का ‘माय’ काफी मजबूत है. दोनों की मत संख्या में थोड़ा-बहुत का ही अंतर है.

इस बार भी हैं गोलबंद
वैसे तो जातिवार मतों का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, अनुमानित आंकड़ों में यादव मतों की संख्या 03 लाख 32 हजार 966 बतायी जाती है. मुस्लिम मतों की संख्या 02 लाख 97 हजार 917 है. गौर करने वाली बात यह है कि मतों की इतनी बड़ी संख्या रहने के बाद भी राजद ने यहां कभी मुस्लिम समुदाय को उम्मीदवारी नहीं दी. हमेशा यादव (Yadav) पर ही भरोसा जताया और मुस्लिम (Muslim) समुदाय ने उसे माथे पर बिठाया. इस बार भी राजद उम्मीदवार अर्जुन राय (Arjun Ray) के पक्ष में मुसलमान‌ गोलबंद हैं.

तेली समाज में ज्यादा गुस्सा
सवर्ण मतों की संख्या 03 लाख 55 हजार अनुमानित है. इनमें 01 लाख 75 हजार के आसपास भूमिहार, 01 लाख 15 हजार के करीब ब्राह्मण और तकरीबन 65 हजार राजपूत मतदाता हैं. वैश्य बिरादरी के मत भी काफी संख्या में हैं. इनमें तेली, सूड़ी और कलवार अधिक हैं. तेली और सूड़ी लगभग बराबर की संख्या में हैं. सीटिंग सांसद सुनील कुमार पिंटू तेली जाति से हैं. विश्लेषकों के मुताबिक एनडीए के खिलाफ गुस्सा इसी तेली जाति में ज्यादा है. कुर्मी-कुशवाहा मत लगभग 01 लाख 75 हजार हैं. दलित मतों की संख्या 02 लाख 07 हजार 841 है. इनमें 01 लाख से कुछ अधिक पासवान और 75 हजार के आसपास रविदास समाज के हैं. 03 लाख 50 हजार 490 की संख्या में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के मत हैं.

सुस्ती बनी रह गयी तब
चुनाव की जो तस्वीर उभर रही है उसमें ‘माय’ पूरी मुस्तैदी से राजद के साथ है. कुशवाहा (Kushwaha) समाज भी उस ओर मुखातिब दिखता है. उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) और रामकुमार शर्मा (Ramkumar Sharma) उन्हें एनडीए में बनाये रख पाते हैं या नहीं, परिणाम बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करेगा. सवर्ण समाज एनडीए के पक्ष में है, पर सिर पर सुस्ती सवार है. मतदान के दिन तक सुस्ती बनी रह गयी तो फिर जदयू (JDU) प्रत्याशी देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) का बेड़ा मां जानकी ही पार लग़ा पायेंगी, दूसरा कोई नहीं. वैश्य बिरादरी के कलवार और सूड़ी समाज में उतना असंतोष नहीं है जितना तेली समाज में नजर आ रहा है. इसके मद्देनजर कहा जा सकता है कि कलवार और सूड़ी पर भाजपा (BJP) का प्रभाव खत्म नहीं हुआ है. वैसे, भाजपा से जुड़े रहे श्याम नंदन प्रसाद (Syamnandan Prasad) निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं. नुकसान किसका होगा, बताने की शायद जरूरत नहीं.


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खूब फायदा उठाया
अतिपिछड़ों में अधिसंख्य नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से प्रभावित हैं. दलितों में पासवान समाज के ज्यादातर मत देवेश चन्द्र ठाकुर को मिलेंगे, पर रविदास मतों में विभाजन का बड़ा खतरा आकार लिये हुए है. एनडीए को यह खुशफहमी हो सकती है कि 2019 में कुशवाहा समाज के रामकुमार शर्मा (Ramkumar Sharma) को हाशिये पर डाल जदयू की उम्मीदवारी तेली जाति के सुनील कुमार पिंटू को मिली थी. कुशवाहा समाज के लोग गुस्सा में आ गये थे. राजद उम्मीदवार अर्जुन राय (Arjun Ray) ने उस गुस्से का खूब फायदा उठाया था. परिणाम निकला तो वह औंधे मुंह गिरे नजर आये.

कोई नहीं कर सकता दावा
सुनील कुमार पिंटू ने 02 लाख 50 हजार 539 मतों के विशाल अंतर से उनके मंसूबों को धो दिया. लेकिन, इस बार भी वैसा ही होगा यह दावा कोई नहीं कर सकता. इसकी वजह है. 2019 में गुस्सा एक समाज में था, इस बार दो बड़े समाज वैश्य और कुर्मी मुंह फुलाये हुए हैं. विश्लेषकों का आकलन है कि जीत – हार इन्हीं मुंह फुलाये मतों के रूख पर निर्भर है. इनके अधिसंख्य मत जिस उम्मीदवार की झोली में गिरेंगे, जीत उनकी तय समझी जायेगी.

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