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गोड्डा : अभिषेक से आक्रांत…! चूक जायेंगे निशिकांत?

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विजय कुमार राय

28 मई 2024

Deoghar : गोड्डा (Godda) के बहुचर्चित भाजपा सांसद निशिकांत दूबे  (Nishikant Dubey) ‘जीत का चौका’ जमाने से चूक जायेंगे? वजह और भी हैं, पर मुख्य रूप से इसी सवाल ने गोड्डा संसदीय क्षेत्र के चुनाव को सामान्य से कुछ अधिक रोचक बना दिया है. राजनीति में रूचि रखने वाला हर शख्स इसमें दिलचस्पी दिखा रहा है. सवाल इसिलिए नहीं उठा है कि कथित तौर पर अगड़ा पिछड़ा (forward backward) का गणित बैठाने के लिए महागठबंधन (grand alliance) में कांग्रेस (Congress) की उम्मीदवारी विधायक दीपिका सिंह पांडेय (Deepika Singh Pandey) से छीन कर प्रदीप यादव (Pradeep Yadav) को दे दी गयी है. 2019 में इसी निशिकांत दूबे से भारी मतों से मुंह की खा गये विधायक प्रदीप यादव इस बार कहां से कौन सी अतिरिक्त ताकत पाकर चुनाव के रूख को अपने पक्ष में मोड़ लेंगे, चर्चा का एक अलग विषय है.

‘लंगोटिया’ रहे ‘ललकार’

निशिकांत दूबे के ‘जीत का चौका’ से चूक जाने का सवाल कभी ‘लंगोटिया’ रहे अभिषेक आनंद झा (Abhishek Anand Jha) की ‘ललकार’ से उठ रहा है. राजनीति के पंडितों की बात छोड़ दें, सामान्य समझ भी यही है कि खास लक्ष्य लिये निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे अभिषेक आनंद झा को खुद कोई बड़ी चुनावी उपलब्धि हासिल हो या नहीं, निशिकांत दूबे की निराशा का तो वह बड़ा कारक बन ही जा सकते हैं. सवाल अब यहां यह उठता है कि इस समझ का आधार क्या है? ‘लंगोटिया’ रहे अभिषेक आनंद झा सांसद निशिकांत दूबे को ‘ललकारने’ क्यों लगे हैं? पूरी कहानी जानिये.

सम्मानित पारिवारिक पृष्ठभूमि

अभिषेक आनंद झा की व्यक्तिगत छवि जो रही हो, पारिवारिक पृष्ठभूमि काफी सम्मानित है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री पंडित बिनोदानंद झा (Former Chief Minister Pandit Binodanand Jha) के परिवार से वह आते हैं. इसी पारिवारिक पृष्ठभूमि के आधार पर झारखंड (Jharkhand) विधानसभा के 2009 के चुनाव में उन्हें मधुपुर (Madhupur) से सीटिंग विधायक राज पलिवार (Raj Paliwar) को हाशिये पर डाल भाजपा (BJP) की उम्मीदवारी दी गयी थी. पर, पार्टी नेतृत्व के भरोसे पर खरा नहीं उतर पाये थे. 26 हजार 915 मतों में सिमट तीसरे स्थान पर अटक गये थे. कहते हैं कि तब के भाजपा विधायक राज पलिवार ने गोड्डा संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी के लिए निशिकांत दूबे से झगड़ा ठान लिया था. संसदीय चुनाव में उम्मीदवारी तो नहीं ही मिली, विधानसभा (Assembly) के चुनाव में भी उससे वंचित कर दिया गया. उसी झगड़े से अभिषेक आनंद झा के लिए अवसर निकल आया.


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तुले हैं जड़ खोदने पर

स्थानीय लोगों की मानें, तो देवघर की राजनीति में अभिषेक आनंद झा की एक पहचान निशिकांत दूबे के ‘खासमखास’ की थी. अब वह उन्हीं की राजनीति की जड़ खोदने पर तुले हैं. उन्हें ‘निकम्मा सांसद’ साबित करने का कोई भी मौका हाथ से निकलने नहीं दे रहे हैं. इस अभियान में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निशिकांत दूबे के स्थानीय व बाहरी तमाम विरोधियों का साथ उन्हें मिल रहा है. पूर्व महापौर बबलू खबाड़े (बबलू खबाड़े) और पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री कार्तिक नाथ ठाकुर का भी. इतना कुछ के बाद भी अभिषेक आनंद झा भाजपा प्रत्याशी निशिकांत दूबे की राह रोक लोकसभा (Lok Sabha) में पहुंच जायेंगे, ऐसी दूर- दूर तक कोई संभावना बनती नहीं दिख रही है.

‘प्रायोजित’ होने की चर्चा

अभिषेक आनंद झा का तर्क जो हो, विश्लेषकों की समझ में उनके इस अभियान का सीधा लाभ महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप यादव (Pradeep Yadav) को मिल रहा है. प्रदीप यादव को अपने लिए कुछ ज्यादा करना नहीं पड़ रहा है. वैसे, सच या झूठ, इस खेल के ‘प्रायोजित’ होने की चर्चा भी खूब हो रही है. आमलोग भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं. इसके मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में चुनाव का जो परिदृश्य है, मतदान केंद्रों पर उसका स्वरूप बदल जा सकता है.

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