तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

रूपौली (पूर्णिया) उपचुनाव : इस बार चूक गये, तो फिर कभी नहीं..

शेयर करें:

विकास कुमार

23 जून 2024

Patna : बिहार (Bihar) की राजनीति (Poltix) में बाहुबलियों की धमक का लम्बा खौफनाक (Creepy) इतिहास है. 1990 के बाद के दौर में ऐसे कई दुर्दांत चेहरे विधायक (MLA) बन गये. कुछ की पत्नियों को सदन का सुख मिला, तो कुछ की आस अधूरी भी रह गयी. 2000 के चुनाव को बाहुबलियों के लिए ‘स्वर्णिम काल’ माना गया. जाति संरक्षित आतंक के बल पर दर्जनाधिक बाहुबली‌ ‘माननीय’ बन गये. हालांकि, अलग-अलग कारणों से दो-चार चूक भी गये. उनमें शंकर सिंह भी थे.

हिम्मत नहीं जुटा पाये

‘जंगल राज’ का ही यह एक अध्याय (Chapter) है कि उस कालखंड में पूर्णिया (Purniya) जिले के एक बड़े हिस्से में शंकर सिंह (Shankar Singh) का आतंक पसरा था तो दूसरे हिस्से में अवधेश मंडल (Avdesh Mandal) का. लम्बे समय तक वहां वर्चस्व की खूनी जंग चली. अनेक लोग उसकी भेंट चढ़ गये. 2000 के चुनाव में शंकर सिंह हिम्मत नहीं जुटा पाये. अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती (Bima Bharti) रूपौली से निर्दलीय चुनाव लड़ विधायक बन गयीं. अनेक बाहुबलियों समेत अवधेश मंडल की पत्नी बीमा भारती की जीत से शंकर सिंह का स्वाभिमान जगा और फरवरी 2005 के चुनाव में वह भी मैदान में कूद गये.

दुर्भाग्य ही कहेंगे

उस चुनाव में बीमा भारती राजद (RJD) की उम्मीदवार थीं, मात खा गयीं. इसे उनका‌ दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि लोजपा (LJP) उम्मीदवार के तौर पर‌ शंकर सिंह चुनाव जीत तो गये, पर सदन में पांव नहीं रख पाये. इस वजह से कि किसी को बहुमत (Majority) नहीं मिल पाने के कारण न सरकार बन पायी और न विधानसभा (Assembly) का गठन हो पाया. परिणामस्वरूप अक्तूबर 2005 में फिर से चुनाव हुआ. उसमें हिसाब बराबर करते हुए बीमा भारती ने शंकर सिंह को ऐसी पटकनी दी कि बाद के चुनावों में भी वह कभी जीत नहीं पाये. 2010 में लोजपा, 2015 में निर्दलीय और 2020 में लोजपा उम्मीदवार के रूप में हार ही हार मिली.

जनाधार नहीं टूटा

लेकिन, गौर करने वाली बात यह अवश्य है कि हार की निरंतरता के बावजूद उनके जनाधार (Support Base) में क्षरण नहीं हुआ. बल्कि हर चुनाव में बढ़ोतरी ही होती रही. इसको इन आंकड़ों से समझा जा सकता है. 2010 में शंकर सिंह लोजपा के उम्मीदवार थे. 27 हजार 171‌ मत मिले. ‌‌2015 में निर्दलीय 34 हजार 783 मत पाने में सफल रहे. 2020 में यह आंकड़ा 44 हजार 994 पर पहुंच गया. तब वह लोजपा के उम्मीदवार थे. मतों में वृद्धि का यह अनुपात बना रहा‌ तो इस बार किला फतह माना जा सकता है! महत्वपूर्ण बात यह भी कि रूपौली के पिछले पांच मुकाबलों में सिर्फ 2015 में ही वह तीसरे स्थान पर रहे. शेष चार में मुख्य संघर्ष में रहे.


ये भी पढ़ें :

पतंग की डोर हुई कमजोर : अख्तरूल की नजर अब दूसरी ओर!

चूक गयीं झारखंड की सीता और गीता

पिछड़ गये ललन सिंह… खतरा नीलम देवी पर भी!


जीत के प्रति हैं आश्वस्त

इस उपचुनाव में वह निर्दलीय (Independent) ही ताल ठोक रहे हैं. संघर्ष का स्वरूप पूर्व जैसा ही है, पर माहौल (Environment) अनुकूल दिख रहा है. विश्लेषकों (Analysts) का मानना है कि इसके बाद भी हार का क्रम नहीं टूटता है, तो रूपौली में शायद ही कभी उनकी जीत हो पायेगी. वैसे, शंकर सिंह जीत के प्रति आश्वस्त हैं. उनके मुताबिक रूपौली की जनता के आमंत्रण पर वह उपचुनाव में उतरे हैं. भारी मतों से विजयी बना कर जनता उन्हें सेवा करने का अवसर अवश्य उपलब्ध करायेगी.

#tapmanlive

अपनी राय दें