मगध और शाहाबाद : शर्मनाक हार… यही हैं गुनहगार?
विष्णुकांत मिश्र
27 जून 2024
Patna : शाहाबाद (Shahabad) और मगध (Magadh) के सात संसदीय क्षेत्रों में एनडीए (NDA) का सफाया! ऐसा ही सफाया सीमांचल (Seemanchal) में भी हो जाता, पर अररिया (Araria) ने लाज बचा ली. शाहबाद में ज्यादा सदमा भाजपा (B J P) और उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को पहुंचा तो सीमांचल में जदयू (JDU) को. बातें पुरानी हो गयी हैं, पर खबर की प्रासंगिकता खत्म नहीं हुई है. सवाल खड़ा ही है कि आखिर इन्हीं इलाकों में एनडीए की दुर्गति क्यों हुई? अन्य अंचलों में गोटी लाल कैसे हो गयी?
एक चाल में निकल गयी सात सीटें
वैसे तो इस संदर्भ में टुकड़े -टुकड़े में कई तरह की बातें सामने आ चुकी हैं इसके बाद भी सच जानने की लोगों की जिज्ञासा शांत नहीं हुई है. बगैर किसी भूमिकाबाजी के यहां अन्य अंचलों में मुकम्मल कामयाब एनडीए की इन सात क्षेत्रों में हार कैसे हो गयी इस पर प्रकाश डाला जा रहा है. सरसरी तौर पर यह कहा जा सकता है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की सिर्फ एक चाल में एनडीए की सात सीटें उसके हाथ से निकल गयीं. जदयू से जुड़े पूर्व विधायक अभय कुशवाहा (Abhay Kushwaha) को महागठबंधन में औरंगाबाद (Aurangabad) से राजद की उम्मीदवारी मिलते ही इस हार की बुनियाद पड़ गयी.
कुंडली खराब कर दी
हालांकि, 2019 में भी मुकाबला बहुत कुछ ऐसा ही हुआ था. भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह (Sushil Kumar Singh) का सामना दांगी-कुशवाहा समाज के उपेन्द्र प्रसाद से हुआ था. लेकिन, ‘मोदी लहर’ के सामने वह टिक नहीं पाये थे. सुशील कुमार सिंह की बड़ी जीत हुई थी.इस बार उसी प्रयोग को दुहरा महागठबंधन (grand alliance) ने कुशवाहा समाज से उम्मीदवार उतार एनडीए की कुंडली खराब कर दी. सुशील कुमार सिंह तो उसकी चपेट में आये ही, कथित रूप से छह अन्य क्षेत्रों के एनडीए उम्मीदवारों के भी उसी गति में पहुंच जाने का कारक बन गये.
सत्ता विरोधी रूझान
जहां तक औरंगाबाद की बात है तो विश्लेषकों के मुताबिक राजद (RJD) की ओर से अगड़ा पिछड़ा का ऐसा माहौल बना दिया गया कि कुशवाहा मतों पर उपेन्द्र कुशवाहा, सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) आदि का कोई जोर नहीं चल पाया. प्रायः सब के सब अभय कुशवाहा के पक्ष में गोलबंद हो गये.सत्ता विरोधी रुझान का भी गहरा असर पड़ा. इससे सुशील कुमार सिंह की आंखों के आगे हार दिखने लग गयी. वैसे, पूर्व मंत्री रामाधार सिंह ( Ramadhar Singh) सरीखे कथित भितरघातियों की भी इसमें बड़ी भूमिका रही. चर्चाओं पर भरोसा करें तो सीतामढ़ी (Sitamarhi) के नवनिर्वाचित सांसद देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) ने परिणाम निकलने के कई दिनों बाद अपनी व्यथा व्यक्त की. हिसाब बराबर करने की बात कही.
विलंब नहीं किया
पर, औरंगाबाद में हार तय देख सुशील कुमार सिंह ने हिसाब बराबर करने में विलम्ब नहीं किया. भोजपुरी फिल्मों के सुपर स्टार पवन सिंह (Pawan Singh) का काराकाट से चुनाव लड़ना हिसाब बराबर करने की रणनीति का ही हिस्सा था. वास्तव में वैसा कुछ था भी या नहीं यह नहीं कहा जा सकता. पर, काराकाट (karakat) में ही नहीं, पूरे शाहाबाद और मगध क्षेत्र में सुनियोजित तरीके से हवा फैला दी गयी कि उपेन्द्र कुशवाहा की राह रोकने के लिए पवन सिंह मैदान में उतरे हैं और उनके पीछे सुशील कुमार सिंह की भी ताकत है.
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नहीं मिला भूमिहारों का साथ
उधर, जहानाबाद (Jehanabad) में जदयू प्रत्याशी चंदेश्वर चंद्रवंशी (Chandeshwar Chandravanshi) के साथ भूमिहार बहुल गांवों में जो अशोभनीय व्यवहार हुआ उसने तात्कालिक तौर पर चंद्रवंशियों को एनडीए से दूर कर दिया. असर इस रूप में हुआ कि औरंगाबाद में राजपूतों का साथ नहीं मिलने से उपेन्द्र कुशवाहा और जहानाबाद में भूमिहारों का साथ नहीं मिलने से चंदेश्वर चंद्रवंशी हार गये.इसकी प्रतिक्रिया में कुशवाहा और चंद्रवंशी समाज के मतदाताओं ने पाटलिपुत्र (Pataliputra) में रामकृपाल यादव (Ramkripal Yadav) , आरा में आर के सिंह (R K Singh) , बक्सर में मिथिलेश तिवारी (Mithilesh Tiwari) और सासाराम में शिवेश कुमार (Shivesh Kumar) की हार की पटकथा लिख दी.
और भी रहे कारण
वैसे, हार के सिर्फ यही नहीं, और भी कारण रहे. तब भी यह तो कहा ही जा सकता है कि काराकाट में हिसाब बराबर करने में हड़बड़ी नहीं दिखायी जाती, तो परिणाम कुछ और सामने आता. एनडीए की ऐसी दुर्गति नहीं होती.
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