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आरसीपी सिंह : मंजिल है कहां… ठिकाना है कहां…?

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विशेष प्रतिनिधि

10 जुलाई 2024

Patna : यह मत कहिये कि नाम में क्या रखा है. ध्यान से देखिये तो नाम में बहुत कुछ रखा है. नाम तो दोनों के राम (Ram) ही हैं. एक रामलला (Ramlala) बन कर भव्य मंदिर में विराजमान हैं. दूसरे खास से आम बनकर गांव (Village) धरे हुए हैं. कभी इन्हें भी ‘भक्तजन‘ रामलला की तरह ही पूजते थे. इस समय भले रामलाल बन कर रह गये हैं. हां, समानता यह है कि रामजी की तरह ये भी राजकाज (Rajkaj) से बेदखल हो गये. रामजी को वनवास मिला. इन्होंने अपने से ही ग्रामवास (Gramvas) का चयन कर लिया. इसका फायदा है कि रामजी की तरह इन्हें जंगल-जंगल नहीं भटकना पड़ रहा है. गांव में पड़े हुए हैं.

बना रखा है गांव में झरोखा

गांव से छन कर आ रही खबरों के मुताबिक उन्होंने अपने लिए वहां एक झरोखा बना रखा है. उसी पर बैठ जग का मुआयना कर रहे हैं. बात राजनीति (Politics) वाले रामजी यानी आरसीपी सिंह (RCP Singh) के नाम से ज्यादा चर्चित रामचन्द्र प्रसाद सिंहजी (Ramchandra Prasad Singh Ji) की हो रही है. उनकी विशेषता है कि प्रभु श्रीराम की तरह यह भी आशावादी हैं. हालिया संपन्न संसदीय चुनाव (parliamentary elections) के वक्त की बात है. ऐसी चर्चा है कि एनडीए (NDA) में संभावना समाप्त देख बचे- खुचे समर्थकों ने महागठबंधन में हाथ-पांव चलाने का सुझाव दिया. आरसीपी सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया. वजह संभवतः यह कि महागठबंधन (grand alliance) की ओर रूख करते ही ईडी, आईटी, सीबीआई में किसी का या तीनों का फेरा लग जाता.

तब भी हिम्मत नहीं हुई

समर्थकों ने तसल्ली देने की भरपूर कोशिश की. कहा कि आपको क्या डर. आपका चरित्र तो निर्मल रहा है. कभी कोई दाग नहीं लगा है.तब फिर डरना क्या? इसके बावजूद महागठबंधन की ओर पांव बढ़ाने की उनकी हिम्मत नहीं हुई. भाजपा (B J P) के रहमोकरम पर निर्भर रह गये. संसदीय चुनाव के बाद रिक्त होने वाली राज्यसभा (Rajya Sabha) की कटपीस वाली सीट पर आस टिका बैठे. लेकिन, लगता है कि तकदीर में लिखा ग्रामवास शायद अभी मिटने वाला नहीं है. राज्यसभा की कटपीस वाली सीट मिलने की उम्मीद भी नहीं है. उस वक्त भी ऐसी ही आस जगी थी जब राज्यसभा की छह सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव हुए थे. उम्मीदवारी की बाबत अमित शाह (Amit Shah) के फोन का उन्होंने लम्बा इंतजार किया था.इस आश्वासन का भी कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के फिर से एनडीए का हिस्सा बन जाने से उनका किंचित अहित नहीं होगा.


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संभावना दूर-दूर तक नहीं

दिवस पर दिवस गुजर गये. दिल्ली (Delhi) से क्या, पटना और अपने शहर बिहारशरीफ (biharsharif) से भी कोई फोन नहीं आया. खासियत देखिये, अपमान की इस दशा में भी उन्होंने धैर्य नहीं खोया. इंतजार के दिन गुजर गये. नयी उम्मीद लोकसभा (Lok Sabha) के चुनाव पर ठहर गयी. ऐसी कि ठहरी ही रह गयी. इन सबसे यह साफ झलकता है कि रामचन्द्र प्रसाद सिंह का ग्रामवास अभी खत्म नहीं होने वाला है. दरअसल उनकी राजनीति का सूर्य उसी दिन अस्त हो गया था जब नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी हो गयी थी. विश्लेषकों के मुताबिक सितारा अब तभी चमक सकता है जब नीतीश कुमार फिर से पलटी मार लें या उन्हें ‘अभयदान’ दे दें. पर, निकट भविष्य में ऐसा कुछ होने की संभावना दूर-दूर तक नहीं दिख रही है.

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