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वाल्मीकिनगर: हनक की हार…तेजस्वी जिम्मेवार?

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सुनील गुप्ता

10 जुलाई 2024

Bettiah : इसे राजद (RJD) के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) की राजनीतिक अपरिपक्वता और पार्टी के रणनीतिकारों की नासमझी नहीं तो और क्या माना जायेगा कि 2020 के उपचुनाव (By-Election) में 03 लाख 80 हजार 821 मत हासिल करने वाले को हाशिये पर डाल 2019 के चुनाव में मात्र 62 हजार 963 मत पाने वाले को किला फतह के अंदाज में भाजपा (B J P) से ला राजद (RJD) का उम्मीदवार बना दिया गया. वह भी कांग्रेस (Congress) के हिस्से की सीट हड़प कर. चुनाव परिणामों की समीक्षा बैठक में नेतृत्व के स्तर पर पार्टी के उन विधायकों को खूब हड़काया गया जिनके क्षेत्र में राजद को बढ़त नहीं मिली. वैसे विधायकों को 2025 के विधानसभा चुनाव (assembly elections) में उम्मीदवारी से वंचित कर देने की चेतावनी तक दी गयी.

इस पर कोई चर्चा नहीं

पर, करीब आधा दर्जन संसदीय क्षेत्रों में कथित रूप से नेतृत्व की अपरिपक्वता की वजह से महागठबंधन की हार हो गयी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई. उन आधा दर्जन क्षेत्रों में वाल्मीकिनगर (Valmikinagar) भी एक है. 2014 और 2019 के चुनावों में इस ससंदीय क्षेत्र से महागठबंधन में कांग्रेस के उम्मीदवार मैदान में उतरे थे. 2020 के उपचुनाव में भी. हालांकि, तीनों ही बार कांग्रेस की हार हुई. परन्तु,2020 के उपचुनाव की इसकी उपलब्धि राजनीति (Politics) को चौंकाने वाली रही. 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री केदार पांडेय (Kedar Pandey) के पौत्र शाश्वत केदार पांडेय (Shashwat Kedar Pandey) कांग्रेस के उम्मीदवार थे. 02 लाख 48 हजार 044 मतों में सिमट गये थे. उपचुनाव में कांग्रेस की उम्मीदवारी प्रवेश कुमार मिश्र (Pravesh Kumar Mishra) को मिली. अप्रत्याशित ढंग से उन्होंने 03 लाख 80 हजार 821 मत बटोर लिये. यानी 2019 की तुलना में 01 लाख 32 हजार 777 मतों का जबर्दस्त उछाल!

महत्व नहीं दिया तेजस्वी ने

इस उछाल से राजनीति चौंक गयी, पर तेजस्वी प्रसाद यादव ने इसको महत्व नहीं दिया. 2024 के चुनाव में वाल्मीकिनगर को राजद के हिस्से में रख उस दीपक यादव (Deepak Yaadav) को उम्मीदवार बना दिया जो 2019 में बसपा के उम्मीदवार थे और 62 हजार 963 मतों पर अटक गये थे. परिणाम राजद की पराजय के रूप में सामने आया. हालांकि, प्रवेश कुमार मिश्र को उम्मीदवारी मिलने से कांग्रेस की जीत हो जाती, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. पर, वैसी स्थिति में तेजस्वी प्रसाद यादव पर हनक में निर्णय का दोषारोपण तो नहीं होता. विश्लेषकों की समझ में उम्मीदवारी जिस किसी को भी मिलती, एनडीए (NDA) के इस गढ़ को तोड़ना उसके लिए आसान नहीं होता. इस क्षेत्र पर एनडीए 1985 से काबिज है जब बगहा (Bagaha) के नाम से यह अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित था.


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आंकड़ों से झांकती भयावह तस्वीर!


उभर रही है यह तस्वीर

वैसे, एनडीए भी अब उतना मजबूत नहीं रह गया है. तीन चुनावों के विश्लेषण से तो ऐसी ही कुछ तस्वीर उभरती दिख रही है. कैसे और किस रूप में, आइये उस पर नजर डालते हैं. 2014 में वाल्मीकिनगर में एनडीए के भाजपा उम्मीदवार सतीश चन्द्र दूबे (Satish Chandra Dubey) की जीत 01 लाख 17 हजार 795 मतों के अंतर से हुई थी. शिकस्त उन्होंने कांग्रेस के पूर्णमासी राम (Poornamasi Ram) को दी थी. 2019 में एनडीए में बैद्यनाथ प्रसाद महतो (Baidyanath Prasad Mahato) जदयू के उम्मीदवार थे. मुकाबला महागठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी शाश्वत केदार पांडेय से हुआ. जीत का अंतर 03 लाख 54 हजार 616 मतों का हो गया. बैद्यनाथ प्रसाद महतो को 06 लाख 02 हजार 660 मत मिले थे तो शाश्वत केदार पांडेय को 02 लाख 48 हजार 044 मत. चुनाव के कुछ ही माह बाद सांसद बैद्यनाथ प्रसाद महतो का निधन हो गया.

विमुख हो गये मतदाता

2020 में उपचुनाव हुआ. जदयू (JDU) की उम्मीदवारी उनके पुत्र सुनील कुमार कुशवाहा (Sunil Kumar Kushwaha) को मिली. कांग्रेस ने शाश्वत केदार पांडेय की जगह प्रवेश कुमार मिश्र को उम्मीदवार बना दिया. जीत तो सुनील कुमार कुशवाहा की हो गयी, पर अंतर 22 हजार 539 मतों का ही रह गया. सुनील कुमार कुशवाहा को 04 लाख 03 हजार 360 मत ही मिल पाये. प्रवेश कुमार मिश्र को 03 लाख 80 हजार 821 मतों की प्राप्ति हुई. 2024 में जदयू की उम्मीदवारी सुनील कुमार कुशवाहा को ही मिली. मुकाबला राजद के दीपक यादव से हुआ. जीत के मतों का अंतर 98 हजार 675 का हो गया. एनडीए की जीत हुई, पर 2019 की तुलना में 02 लाख 55 हजार 941 मतदाता उससे विमुख हो गये.

कोई मतलब है इस जीत का ?

सुनील कुमार कुशवाहा को 05 लाख 23 हजार 422 मत मिले जो 2019 की तुलना में 79 हजार 238 कम हैं. दीपक यादव को 04 लाख 24 हजार 747 मतों की प्राप्ति हुई. यह 2019 में कांग्रेस को मिले मतों से 01लाख 76 हजार 703 मत अधिक हैं. पर, उपचुनाव में कांग्रेस को मिले मतों से महज 43 हजार 926 मत ही अधिक हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि जब 2019 की तुलना में 02 लाख 55 हजार 941 मतदाता एनडीए से छिटक गये और उनमें से 01 लाख 76 हजार 703 मत राजद को मिल गये तो फिर ऐसी जीत का कोई मतलब रह जाता है क्या?

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