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खेलाऊ यादव ने हड़प लिया सब कुछ !

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एक था ‘मोहन राजा’. कौन था, क्या था, कब था और कहां था? दुनिया जो जानती है उससे अलग ढेर सारी ऐसी बातें हैं जो उसके खात्मे के तकरीबन चालीस साल बाद भी रहस्य बनी हुई हैं. यहां उन रहस्यों पर से पर्दा हटाया जा रहा है. किस्तवार किस्सा की चौथी और अंतिम कड़ी में मोहन बिंद के सफाये के बाद उसके गिरोह और हथियारों के जखीरे का क्या हुआ, इसका खुलासा किया जा रहा है.

तापमान लाइव ब्यूरो

27 जुलाई 2024

Malaon (Rohtas) : लालमुनि कुंवर (Lalmuni Kunwar) ने तब बताया था कि मोहन बिंद (Mohan Bind) की हत्या के बाद खेलाऊ यादव (Khelau Yadav) ने गिरोह के रुपया-पैसा और हथियार पर कब्जा जमा लिया. बाद में गिरोह टूट गया. सुदामा बिंद (Sudama Bind) एक टुकड़े का सरगना बन गया. लालमुनि कुंवर के अनुसार भीम के नेतृत्व में कुछ लोग उससे गिरोह की कमान संभालने का अनुरोध करने आये थे. उस समय चन्द्रशेखर का जन्म हुआ था. उसका मुंह देखकर उसने उस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था. चन्द्रशेखर को पढ़ा-लिखा कर अच्छा इंसान बनाने की ख्वाहिश लिये वह मलांव गांव आ गयी. पर, उसका सपना साकार नहीं हो पाया. कैमूर (Kaimur) के बेताज बादशाह का इकलौता पुत्र बालिग होते ही मजदूरी करने की विवशता में घिर गया. आज भी उस विवशता से वह उबर नहीं पाया है. सासाराम शहर (sasaram city) में दिहाड़ी मजदूरी करता है. रोज का आना-जाना होता है.

दुर्भाग्य का ग्रहण

मोहन बिंद के लूटपाट और मारकाट से अर्जित धन चन्द्रशेखर के जमीन पर खड़ा होने से पहले ही बिला गये और उसके साथ ही इसकी जिंदगी को दुर्भाग्य का ग्रहण लग गया. चन्द्रशेखर को दो बेटा और एक बेटी है. पुत्र को पढ़ा- लिखा कर अच्छा इंसान नहीं बना पाने के अपराध बोध से ग्रस्त लालमुनि कुंवर की वैसी ही दूसरी ख्वाहिश पोता-पोती को लेकर है. लेकिन, उम्र के जिस पड़ाव पर वह है, दूसरी ख्वाहिश पूरी भी होती है तो वह उसे शायद ही देख-सुन पायेगी.

अपनों ने भी गिरायी गाज

गांव जवार में चर्चा अबभी खूब होती है कि मोहन बिंद ने जिसके-जिसके यहां पैसे और हथियार रखे थे , उसकी हत्या के बाद सभी हड़प गये. कुछ लोगों ने ईमानदारी दिखायी. परन्तु, वे जो भी हथियार और रुपये दे गये उसे परिजन हजम कर गये. मोहन बिंद के भाइयों के परिवारों की गाज भी इस परिवार पर गिरी. एक वाकये का जिक्र लालमुनि कुंवर ने जून 1998 में किया था. उसकी तसदीक़ गांव के लोग भी करते हैं. लालमुनि कुंवर के मुताबिक एक राजनेता (Politician) ने एक ‘खास काम’ के एवज में ढाई बीघा खेत खरीदने के लिए पैसे दिये थे. मोहन बिंद ने वह पैसा इस निर्देश के साथ बड़े भाई बिगु बिंद को भेज दिया था कि दोनों बड़े भाइयों के लड़कों के नाम से जमीन खरीदी जाये.

खुद किसी का खून नहीं बहाया

लेकिन, वैसा नहीं हुआ. बिगु बिंद ने अपने लड़के के नाम से जमीन खरीद ली. इसमें सच्चाई कितनी है, यह कहना कठिन है. वैसे, कहा जाता है कि मोहन बिंद ने लालमुनि कुंवर के गांव कदहर में दस-बारह बीघा जमीन खरीदी थी. वर्तमान में उस पर कब्जा किसका है, यह भी नहीं कहा जा सकता. ‘मोहन राजा’ (Mohan Raja) के दरबार में धनबाद (Dhanbad) के एक पूर्व सांसद के अलावा पटना, नोखा, भभुआ, विक्रमगंज, आरा आदि जगहों से नेता आते रहते थे. लालमुनि देवी के मुताबिक उस दौर में हत्याएं तो अनगिनत हुई थीं, परन्तु मोहन राजा ने अपने हाथ से किसी का खून नहीं बहाया था.


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अधूरा रह गया ख्वाब

बहरहाल, लालमुनि कुंवर को दो बातों का मलाल है-एक चन्द्रशेखर (Chandrashekhar) के अनपढ़ रह जाने का और दूसरा मोहन राजा के मंदिर बनाने का सपना साकार नहीं हो पाने का. मोहन बिंद खुखुमा पहाड़ पर दुर्गावती नदी के उद्गम स्थल यानी करमचट (Karamchat ) बांध  के समीप मंदिर (Temple) बनवा रहा था. उसकी इच्छा वहां सोने की मूर्ति (gold statue) स्थापित करने की थी. इसी बीच हत्या हो गयी और उसका वह ख्वाब अधूरा रह गया.

(समाप्त)

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