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मोहन बिंद : भून दिया भरी महफ़िल में शागिर्दों ने !

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एक था ‘मोहन राजा’. कौन था, क्या था, कब था और कहां था? दुनिया जो जानती है उससे अलग ढेर सारी ऐसी बातें हैं जो उसके खात्मे के तकरीबन चालीस साल बाद भी रहस्य बनी हुई हैं. यहां उन रहस्यों पर से पर्दा हटाया जा रहा है. किस्तवार किस्सा की तीसरी कड़ी में जानिये कि मोहन बिंद का कैसे सफाया कर दिया आस्तीन के सांपों ने.

तापमान लाइव ब्यूरो

26 जुलाई 2024

Malaon (Rohtas) : मोहन बिंद (Mohan Bind) के पहाड़ (Mountain) पकड़ने के साथ ही सामूहिक नरसंहारों का सिलसिला शुरू हो गया था. फिरौती के लिए अपहरण का खतरनाक दौर और गरीबों के शोषक धन्नासेठों की तिजौरियों की लूट भी धड़ाधड़ होने लगी थी. स्वाभाविक रूप से मोहन बिंद के पास बेशुमार धन हो गया था. लालमुनि कुंवर (Lalmuni Kunwar) के शब्दों में – ‘राजाजी ने कभी अपने लिए नहीं सोचा. गिरोह के सदस्यों और गरीबों के बीच पैसा बांटते रहे. कई लोग उनके धन से अमीर बन गये. लेकिन, उ हमरा और आपन लइका चन्द्रशेखर खातिर कुछ न कइलन. न तो हमनी के आज मजदूरी न करै के पड़ी’.लालमुनि देवी की इस व्यथा की पुष्टि गांव के लोगों ने भी की.

सब कुछ गरीबों में बांट दिया

मोहन बिंद ने एक हाथ से लूटा तो दूसरे हाथ से गरीबों में बांट दिया. उसने इलाके में अनगिनत शादियां करवायी. ढेर सारे लोगों को जमीनों पर दखल-कब्जा दिलवाया. उसकी इसी दरियादिली के चलते लोगों ने उसे ‘राजा’ (King) की उपाधि दे डाली…. कैमूर पर्वतमाला (Kaimur Parvatamala) का बेताज बादशाह! वैसे, पुलिस की डायरी में ऐसे भी अनेक किस्से दर्ज हुए थे, जो उसकी अय्याशी से जुड़े थे. कहते हैं कि उसी अय्याशी में मोहन बिंद की जान गयी थी.

पांच सौ से ज्यादा हथियार

लालमुनि कुंवर ने पत्रकार नरेन्द्र सिंह को बताया था कि मोहन बिंद गिरोह के पास पांच सौ से ज्यादा हथियार थे. जिन अत्याधुनिक हथियारों की चर्चा आज होती है. वे सबके सब उसके पास थे. यही वजह थी कि जब भी गिरोह के साथ मुठभेड़ होती थी पुलिस को ही मुंह की खानी पड़ जाती थी. ‘मोहन राजा’ जब चलता था तो कम से कम पचास सशस्त्र लोग साथ हुआ करते थे. पूरे पहाड़ को सात खंडों में विभक्त कर हर खंड को एक टोली के जिम्मे कर दिया गया था. विपरीत परिस्थितियों में हर एक टोली दूसरी टोली की मदद में पहुंच जाती थी.

नाच के अंतिम दिन…

सुरक्षा की ऐसी ही चाक चौबंद व्यवस्था के बीच मोहन बिंद की हत्या उसके ही विश्वसनीय अंगरक्षकों- रामगहन यादव उर्फ खेलाऊ यादव और चन्द्रदीप सिंह ने कर दी. तब जो बातें सामने आयी थीं उसके मुताबिक मोहन बिंद ने सरकी  गांव (Sarki village) में तीन दिवसीय नाच का आयोजन कराया था. नाच के अंतिम दिन रात में खेलाऊ यादव और चन्द्रदीप सिंह ने भरी महफिल में मोहन बिंद को भून दिया और लाश गायब कर दी. जानकार बताते हैं कि हत्या दूबे ग्राम पंचायत के मुखिया (Mukhiya) के चुनाव को लेकर हुई.

प्रतिशोध भी ले लिया

कहानी कुछ यूं है. मुखिया पद के चुनाव में यादव जाति (Yadav caste) के दो प्रत्याशी आमने-सामने थे. मोहन बिंद ननोरी गांव के सत्यनारायण यादव के पक्ष में था. वह निर्वाचित भी हुए. पर, दूसरे पक्ष ने कुछ मतों की हेराफेरी कर दी. मोहन बिंद नाराज हो गया. खेलाऊ यादव के जरिये उसने उसकी हत्या करा दी. कहा जाता है कि जिसकी हत्या हुई वह खेलाऊ यादव का मामा था. सरदार (Sardar) के कहने पर उसने उसकी हत्या तो कर दी, पर कुछ समय बाद मोहन बिंद को मौत की नींद सुला उसका प्रतिशोध भी ले लिया.


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बात 39 साल पहले की

वैसे, कहा यह गया कि हत्या की बड़ी वजह उसकी अय्याशी थी. बात 39 साल पहले की है.12 मार्च 1985 को बिन्देश्वरी दुबे (Bindeshwari Dubey) बिहार के मुख्यमंत्री (Chief minister of Bihar) बने थे. उस कालखंड में कैमूर पर्वत पर सिर्फ मोहन बिंद की ही नहीं दर्जन भर से अधिक दस्यु सरगनाओं (Bandit leaders) की समानांतर सत्ता कायम थी. इससे शासन-प्रशासन की नींद हराम थी. बिन्देश्वरी दुबे की सरकार ने दस्यु उन्मूलन के लिए ‘आपरेशन ब्लैक पैंथर-2’ (Operation Black Panther-2) चलाया था. अभियान का असर दिखता उससे पहले अप्रैल 1985 में मोहन बिंद को मौत के मुंह में झोंक दिया गया.

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