हो गयी राजनीति : लालू प्रसाद ने बिगाड़ दिया खेल
विकास कुमार
31 जुलाई 2024
Patna : राजनीति (Politics) सचमुच बेहया होती है. वीआईपी (vip) सुप्रीमो मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) के पिता जीतन सहनी (Jitan Sahani) की हत्या के मामले में यह धारणा पुनः स्थापित हुई. कैसे और क्यों, उसे इस रूप में जानिये और समझिये. पुलिस के अनुसंधान में आयीं इधर-उधर की तमाम बातों के बीच मुकेश सहनी के पिता जीतन सहनी की तेरहवीं हो गयी. हत्या के बाद से लगातार तेरह दिनों तक दरभंगा (Darbhanga) जिले के विरौल अनुमंडल का सुपौल (Supaul) बाजार राजनीतिज्ञों का ‘तीर्थ स्थल’ बना रहा.सांसद पप्पू यादव (Pappu Yadav) से शुरुआत हुई. उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha),भाकपा-माले (CPI-ML) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य (Dipankar Bhattacharya) पहुंचे. जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष सांसद संजय झा (Sanjay Jha) भी मातमपुर्सी के लिए गये.
शीश नवाया,पुष्प चढ़ाया
द्वादशा के दिन प्रदेश भाजपा (B J P) के नवमनोनीत अध्यक्ष डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) , उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) , उद्योग मंत्री नीतीश मिश्र (Nitish Mishra) आदि अनेक नेताओं ने सदेह उपस्थित हो दिवंगत जीतन सहनी की तस्वीर के समक्ष शीश नवाया. पुष्पांजलि अर्पित की. शोक संवेदना के बहाने राजनीति की गोटी सेट करने की भी कोशिश की. तेरहवीं के दिन इंतजार तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) का हो रहा था, लाव-लश्कर के साथ लालू प्रसाद (Lalu Prasad) पहुंच गये. वही लालू प्रसाद, जो बीमारी के चलते पटना स्थित आवास से कभी-कभार ही निकलते हैं, लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी तय कर पटना से सुपौल बाजार पहुंच गये. सवाल वोट का था! सुपौल बाजार पहुंचते ही उन्होंने मुकेश सहनी को लेकर हो रही राजनीति की दिशा बदल दी.
पांव एकबारगी ठिठक गये
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) , गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) , भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (JP Nadda) तथा प्रदेश स्तरीय भाजपा नेताओं की अतिशय सहानुभूति से अभिभूत मुकेश सहनी के एनडीए के ओर बढ़ते दिख रहे पांव एकबारगी ठिठक गये. प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक लालू प्रसाद ने मुकेश सहनी के कान में कुछ फुसफुसाया, तेजस्वी प्रसाद यादव की कभी न भूलने वाली बेरुखी गौण पड़ गयी और उपमुख्यमंत्री (Deputy Chief Minister) पद का ख्वाब फिर से हरा हो गया. भाजपा नेताओं का बेहयापन देखिये कि कोई ठोस संभावना बनी नहीं, मुकेश सहनी के लिए पलक पांवड़े बिछा दिये.
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नहीं भटकेंगे इधर-उधर
भाजपा की राजनीति और रणनीति जो हो, पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं के एक बड़े तबके को नेतृत्व का यह उतावलापन रास नहीं आया. बहरहाल, यह लगभग तय हो गया है कि सुपौल बाजार स्थित आवास पर लालू प्रसाद का चरण पड़ जाने के बाद 2025 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) तक मुकेश सहनी इधर-उधर नहीं भटकेंगे. उपमुख्यमंत्री पद का ख्वाब उन्हें महागठबंधन से जोड़ कर रखेगा. विश्लेषकों की समझ में इसके बाद भी एनडीए (NDA) से जुड़ाव की संभावना बनती है और उन्हें जोड़ लिया जाता है तो उसका भारी खमियाजा उसे भुगतना पड़ जा सकता है.
वैसा नहीं उफनाया
यहां गौर करने वाली बात है कि जीतन सहनी की हत्या के मामले में राजनीति शुरू से ही रंग बदलती रही है. सबसे बड़ी बात यह कि इस प्रकरण पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार के खिलाफ विपक्ष यानी महागठबंधन (grand alliance) का गुस्सा जिस आक्रामक अंदाज में उफनना चाहिये था वैसा नहीं उफनाया. विरोध औपचारिकताओं में सिमटा रह गया. शुरुआत में कुछ तल्ख बयान जरूर आये, पर हत्या के कारणों एवं उसमें शामिल लोगों की जानकारी सार्वजनिक होते ही प्रायः सबके जुबान बंद हो गये. यह देख-सुन राजनीति हैरान रह गयी.
खुद मौन क्यों रहे ?
इसको लेकर कुछ अधिक कि मुकेश सहनी के महागठबंधन के वोट दिलाऊ नेता और राजद (RJD) के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव के ‘सियासी सखा’ रहने के बाद भी विपक्षी नेताओं ने मुंह बंद रखा. हालांकि, इस बहाने विधि-व्यवस्था की बदतर स्थिति उनकी आलोचना के केन्द्र में रही. राजनीति के लिए अचरज की बात यह भी रही कि दूसरों के मुद्दों पर मुखर रहने वाले मुकेश सहनी खुद के मुद्दे पर मौन क्यों रहे? काफी इंतज़ार के बाद मुंह खुला भी तो बिल्कुल संयमित शब्दों के साथ. इससे ऐसा लगा कि हत्या के वास्तविक कारणों की जानकारी उन्हें थी. कारण ऐसे थे कि मौन रहने के सिवा वह कुछ कह-सुन नहीं सकते थे. पुलिस के प्रारंभिक अनुसंधान में वैसा ही कुछ तथ्य सामने आया.
सवाल 17.7 प्रतिशत वोट का
यह सब तो है, पर इस पूरे प्रकरण का सबसे गंभीर प्रसंग तेजस्वी प्रसाद यादव का शोक संवेदना जताने के लिए सुपौल बाजार नहीं पहुंचना रहा. इस असमर्थता का उनके पास कोई न कोई वाजिब कारण अवश्य होगा. पर, सामान्य समझ में दूर-दूर रहने का कारण 17.7 प्रतिशत वोट है. मुकेश सहनी के पास तो 02. 60 प्रतिशत ही वोट हैं. उनमें भी बिखराव है. तो फिर वह जोखिम क्यों उठाते?
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