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तरारी उपचुनाव : सुनील पांडेय पिछड़ गये इस बार भी तब?

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विष्णुकांत मिश्र

10 अगस्त 2024

Patna : बिहार के चार विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है. रामगढ़ (Ramgarh), तरारी (Tarari), इमामगंज (Imamganj) और बेलागंज (Belaganj) में. पर, राजनीति (Politics) की नजर मुख्य रूप से तरारी पर जमी है. उपचुनाव कब होगा, इसकी तारीख अभी घोषित नहीं हुई है. तरारी के भाकपा-माले विधायक सुदामा प्रसाद (Sudama Prasad) सांसद (Sansad) निर्वाचित हो गये हैं. इसी वजह से उपचुनाव होगा. उपचुनाव जब भी हो, पिछले चुनावों की तरह इस बार भी मुकाबला काफी दिलचस्प होगा.

होगी कांटे की टक्कर

अभी जो आसार दिख रहे हैं उसके मुताबिक भाकपा-माले के राजू यादव (Raju Yadav) और एनडीए (NDA) के पूर्व बाहुबली विधायक नरेन्द्र कुमार पांडेय (Narendra Kumar Pandey) उर्फ सुनील पांडेय (Sunil Pandey) के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है. दोनों तरफ जबर्दस्त मोर्चाबंदी हो रही है. राजू यादव (Raju Yadav) की भाकपा-माले (Bhakpa Male) की उम्मीदवारी करीब-करीब तय है. सुनील पांडेय को एनडीए की उम्मीदवारी मिलेगी, मिलेगी तो भाजपा (BJP) की या जदयू (JDU) की, इस पर निर्णय होना अभी बाकी है. ज्यादा संभावना भाजपा की ही उम्मीदवारी मिलने की है. वैसे, भाजपा में पूर्व प्रत्याशी कौशल कुमार विद्यार्थी (Kaushal Kumar Vidarthi) भी एक मजबूत दावेदार हैं.

चुनाव लड़ेंगे ही सुनील पांडेय

उन्हें दरकिनार करना पार्टी नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा. जो हो, किसी दल की उम्मीदवारी मिले या नहीं, सुनील पांडेय का चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. चर्चा सुनील पांडेय के पूर्व विधान पार्षद भाई हुलास पांडेय (Hulas Panday) के भी चुनाव लड़ने की हुई थी. पर, वह आधारहीन निकली. उनके निकट के लोगों का कहना है कि हुलास पांडेय के तरारी से उपचुनाव लड़ने की कहीं कोई बात ही नहीं है. अपने भाई के खिलाफ वह क्यों लड़ेंगे?

पहली जीत 2000 में

यहां जानने वाली बात है कि पहले पीरो विधानसभा क्षेत्र था. 2008 के परिसीमन में विलोपित हो गया. तरारी विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आ गया. बाहुबली छवि के नरेन्द्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय ने पहली बार 2000 के चुनाव में पीरो (Piro) से जीत हासिल की थी. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की समता पार्टी (Samta Party) के उम्मीदवार के तौर पर. फरवरी 2005 और अक्तूबर 2005 में उनकी जीत का दोहराव-तिहराव हुआ. 2010 में नवसृजित तरारी विधानसभा क्षेत्र में भी जदयू उम्मीदवार के रूप में उनकी जीत हुई. वह उनकी लगातार चौथी जीत थी. इससे सामान्य नजर में वह अपराजेय हो गये थे.

मामूली अंतर से हार

पर, 2015 में जदयू नेतृत्व ने उनके पर कतर दिये. संदिग्ध गतिविधियों को आधार बना उम्मीदवारी से वंचित कर दिया. सुनील पांडेय लोजपा से जुड़ गये. खुद मैदान में नहीं उतर पत्नी गीता पांडेय को लोजपा का उम्मीदवार बनवा दिया. लोजपा तब एनडीए का हिस्सा थी. सुनील पांडेय का दुर्भाग्य देखिये, त्रिकोणीय मुकाबले में गीता पांडेय (Geeta Pandey) 372 मतों के मामूली अंतर से मात खा गयीं. जीत भाकपा-माले के सुदामा प्रसाद की हुई. सुदामा प्रसाद को मिले 44 हजार 050 मतों के मुकाबले गीता पांडेय को 43 हजार 778 मत ही मिल पाये. प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह भी चुनाव मैदान में थे.


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जमानत गंवा बैठे

सामान्य समझ में 40 हजार 957 मत हासिल कर उन्होंने भाकपा-माले की जीत का मार्ग प्रशस्त कर दिया. 2020 में भी बहुत कुछ ऐसा ही हुआ. तब के राजनीतिक हालात के मद्देनजर लोजपा ने नकार दिया तब सुनील पांडेय ने पत्नी गीता पांडेय को दोबारा चुनाव नहीं लड़ा, खुद निर्दलीय मैदान में उतर गये. एनडीए में भाजपा की उम्मीदवारी कौशल कुमार विद्यार्थी को मिली थी. मुकाबले में वह कहीं टिक नहीं पाये. 3 हजार 833 मतों पर अटक जमानत गंवा बैठे.

बदल जायेगा स्वरूप

नरेन्द्र कुमार पांडेय उर्फ सुनील पांडेय की भिड़ंत भाकपा-माले के सुदामा प्रसाद से हुई. 11 हजार 015 मतों से वह पिछड़ गये. सुदामा प्रसाद को 73 हजार 945 और सुनील पांडेय को 62 हजार 930 मत प्राप्त हुए. आंकड़े बताते हैं कि उस चुनाव में एनडीए की उम्मीदवारी सुनील पांडेय को मिली होती तो परिणाम शायद कुछ और निकलता. विश्लेषकों का मानना है कि उपचुनाव में सुनील पांडेय एनडीए के उम्मीदवार होते हैं तो, जीत-हार अपनी जगह‌ है, मुकाबले का स्वरूप बदल जा सकता है

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