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कही – सुनी: छल हो गया देवेश चन्द्र ठाकुर के साथ !

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विकास कुमार

04 अगस्त 2024

Patna : राजनीति (Politics) में रूचि रखने वाले हर शख्स के संज्ञान में है कि सांसद (Member of parliament) बनने की बड़ी लम्बी चाहत थी देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) की. वह भी किसी दूसरे क्षेत्र से नहीं, गृह संसदीय क्षेत्र सीतामढ़ी (Sitamarhi) से. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का अनुग्रह हुआ, कामना पूरी हो गयी. सीतामढ़ी से सांसद निर्वाचित हो गये. लेकिन, उसके बाद उनकी जो सियासी उलटबांसी हो रही है वह इतराना है या पछतावा, सामान्य समझ में नहीं आ रही है. इतराने का भाव उनके उस बयान में है जिसमें उन्होंने जीत का श्रेय न पार्टी को और न नेता को, खुद को दे दिया है. खुले तौर पर कहा है कि सबने धोखा दिया. व्यक्तिगत संबंध वाले लोगों के वोट से वह निर्वाचित हुए.

आधार तो है इतराने का…

कहने का तात्पर्य यह कि नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और भाजपा (B J P) की बात छोड़िये, नीतीश कुमार और जदयू (JDU) का भी उनकी जीत में कोई योगदान नहीं रहा? हालांकि, यह दोहा संपूर्णता में उन पर लागू नहीं होता, पर भाव बहुत कुछ वैसा ही दिखता है. ‘प्यादा से फरजी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाय.’ अगड़ा पिछड़ा की भावना वाले यादव  और मुस्लिम  बहुल सीतामढ़ी क्षेत्र से किसी ब्राह्मण उम्मीदवार की जीत इतराने का आधार तो बना ही देती है. देवेश चन्द्र ठाकुर इतरा भी रहे हैं और झल्ला भी रहे हैं. वैसे, कुछ लोगों का कहना है कि पछता भी रहे हैं. इतराने, झल्लाने या पछताने का अंदरूनी कारण क्या है यह वही बता सकते हैं.

बड़ी उम्मीद थी उन्हें

पर, उनके निकट के लोगों के बीच से जो बातें निकल कर आ रही हैं उस पर विश्वास करें तो मुख्यतः दो कारणों से वह खिन्न हैं. इतना कि संसदीय चुनाव लड़ने और जीत जाने का पछतावा हो रहा है. पहला तो यह कि उन्हें वह रूतबा कचोट रहा है जो पटना से सीतामढ़ी तक विस्तृत था. रूतबा बिहार विधान परिषद (Bihar Legislative Council) के सभापति  रहते हासिल था. सांसद बने नहीं कि सब ठाठ बाट गायब ! ऐसा स्वाभाविक भी था. दूसरा कारण वह बड़ी उम्मीद थी कि सांसद बने तो केन्द्र में मंत्री (Minister) बन ही जायेंगे. कैबिनेट नहीं तो कम से कम राज्यमंत्री का पद तो मिल ही जायेगा. उम्मीद गैरमुनासिब भी नहीं थी. हर राजनीतिज्ञ की ऐसी ख्वाहिश होती है. लेकिन, उनका मामला कुछ अलग है.


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अप्रत्यक्ष कटाक्ष

कथित रूप से खास-खास लोगों के बीच वह चर्चा करते हैं कि उनके साथ छल हो गया. जदयू (JDU) कोटे से मंत्री बनाने का आश्वासन दिया गया था, पूरा नहीं किया गया. राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh alias Lalan Singh) की जगह उन्हें ही अवसर उपलब्ध कराने की बात कही गयी थी. उसी पर भरोसा कर वह संसदीय चुनाव लड़ गये. अन्यथा सभापति के सम्मानजनक संवैधानिक पद पर तो विराजमान थे ही. इन बातों में सच्चाई कितनी है, यह नहीं कहा जा सकता. पर, देवेश चन्द्र ठाकुर सार्वजनिक रूप से जिस तरह की बातें कह-सुन रहे हैं, जदयू नेतृत्व पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष कर रहे हैं, लालू प्रसाद (Lalu Prasad) को ज्यादा भरोसेमंद बता रहे हैं, विश्लेषकों की समझ में ऐसी बातें अमूमन चोट खाया दिल ही करता है, सामान्य दिल नहीं.

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