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जन सुराज : खा जायेगा एनडीए का राज!

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महेश कुमार सिन्हा

04 अक्तूबर 2024

Patna : पूरे तामझाम के साथ ‘जन सुराज’ नाम से प्रशांत किशोर (Prashant Kishore) की राजनीतिक पार्टी अस्तित्व में आ गयी. वादे के अनुरूप उन्होंने पार्टी के प्रथम अध्यक्ष के तौर पर दलित समाज को अवसर उपलब्ध कराया. भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी मनोज भारती (Manoj Bharti) की कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी (Coronation) हुई. मुसहर जाति से आने वाले मनोज भारती मधुबनी जिला के रहने वाले हैं. प्रशांत किशोर ने हालांकि सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किया कि मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष का पद इसलिए नहीं दिया गया कि वह दलित हैं. उनका चयन इस आधार पर हुआ कि वह प्रशांत किशोर से भी बेहतर हैं. संयोग से दलित भी हैं.

क्या होगा पार्टी का भविष्य?
गांधी जयंती के अवसर पर पटना के वेटनरी कालेज मैदान में आयोजित जन सुराज (Jan Suraaj) के स्थापना अधिवेशन में प्रशांत किशोर ने नवगठित पार्टी के स्वरूप और उद्देश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला. स्थापना अधिवेशन के साथ बहुप्रतीक्षित जन सुराज पार्टी का झंडा तो लहराने लग गया, पर सवाल अब यह उठ रहा है कि जातिवाद (Casteism) की संकीर्णताओं में जकड़े बिहार में इस पार्टी का भविष्य क्या होगा? भाजपा, राजद और जदयू के रूप में इस राज्य में तीन बड़ी राजनीतिक (Political) ताकतें हैं. इन दलों के अलग-अलग प्रतिबद्ध समर्थक जातीय समूह हैं. राजनीतिक दलों के दो मुख्य गठबंधन हैं. भाजपा (BJP) के नेतृत्व में एनडीए (NDA) है, तो राजद के नेतृत्व में महागठबंधन. जदयू (JDU) इधर-उधर होते रहता है. जिधर रहता है उसकी स्थिति मजबूत हो जाती है. फिलहाल एनडीए में है.

दिलचस्पी दिखा रहे हैं लोग
ऐसे में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी किस गठबंधन के जनाधार में सेंध लगायेगी ? एनडीए के जनाधार में या महागठबंधन के जनाधार में? या फिर दोनों के जनाधार में? सामाजिक समीकरणों की बात करें तो मोटामोटी यादव और मुसलमान राजद यानी महागठबंधन के आधार मत हैं. सवर्ण, गैर यादव पिछड़ा और अतिपिछड़ा तथा दलितों की अधिकतम प्रतिबद्धता (Maximum Commitment) एनडीए से जुड़ी हुई है. प्रशांत किशोर ने महिलाओं, मुसलमानों , दलितों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दे उठाए हैं. लोग उनमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

संभावना बनती नहीं दिख रही
अपनी लम्बी पदयात्रा के दौरान उन्होंने जन सुराज पार्टी का ठोस ढांचा बनाने, कार्यकर्ताओं को जोड़ने और प्रखंड स्तर पर पार्टी का कार्यालय खोलने का काम किया. उम्मीदवारों के चयन में कार्यकर्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहने की भी बात करते हैं. इसके बावजूद ‌ कोई बड़ी कामयाबी की संभावना बनती नहीं दिख रही है. विश्लेषकों की समझ में उन्हें क्या हासिल होता है यह अलग मुद्दा है, उनकी चुनावी सक्रियता से महागठबंधन का तो नहीं, एनडीए का हित गहरे रूप से प्रभावित हो जा सकता है. ऐसा क्यों, इसे इस रूप में समझ सकते हैं.


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नासमझी होगी यह मानना
बिहार के जो राजनीतिक व सामाजिक समीकरण (Social Equation) हैं उसमें प्रशांत किशोर के लाख जोर लगाने के बाद भी यादव और मुसलमान महागठबंधन से मुंह फेर जन सुराज की ओर शायद ही मुखातिब हो पायेंगे. इसी तरह राजद के रणनीतिकारों ने ‘प्रशांत पांड़े’ के रूप में जो नैरिटिव गढ़ रखा है उसमें राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से प्रभावित अन्य जातीय समूहों का रूख इससे अलग कुछ होगा, यह मानना नासमझी होगी. ऐसे में मतों के रूप में जन सुराज पार्टी जो कुछ भी‌ हासिल करेगी, उनमें अधिसंख्य एनडीए समर्थक जातीय समूहों के ही होंगे.

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