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डा. इकरा अली खान : खुल गया भाग्य… अब क्या करेंगे दिलीप राय?

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विजयशंकर पांडेय
08 अक्तूबर 2024

Sitamarhi : डा. इकरा अली खान (Dr. Iqra Ali Khan) आखिरकार जदयू (JDU) की हो गयीं. जदयू से जुड़ाव के लिए वह और उनकी मां शमा अली खान (Shama Ali Khan) तकरीबन चार वर्षों से प्रयासरत थीं. इस बाबत बड़े नेताओं से उनकी मुलाकात-बात भी हुई थी. परन्तु, बात नहीं बन पा रही थी. ऐसा कहा जा सकता है कि जदयू नेतृत्व उन्हें महत्व नहीं दे रहा था. इसकी खास वजह थी. डा. इकरा अली खान दिवंगत पूर्व मंत्री शाहिद अली खान (Shahid Ali Khan) की पुत्री हैं. राजद (RJD) से विलगाव के बाद से शाहिद अली खान जदयू में थे. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के विश्वस्तों में शुमार थे.

यही कारण था महत्व नहीं मिलने का
कारण जो रहा हो, जदयू के 2014-15 के सत्ता-संग्राम में नीतीश कुमार से नाता तोड़ वह जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के साथ हो गये थे. सत्ता से हटने के बाद जीतनराम मांझी ने हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (Hindustani Awam Morcha) के नाम से राजनीतिक पार्टी बनायी तो उन्हें उसका राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया. जदयू नेतृत्व द्वारा डा. इकरा अली को महत्व नहीं दिये जाने का संभवतः यही कारण था. लेकिन, वक्त बदला तो उसी जदयू ने पूरे सम्मान के साथ डा. इकरा अली को पार्टी में शामिल कर लिया. जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा (Sanjay Jha) ने सदस्यता दिलाते हुए उम्मीद जतायी कि उनके जुड़ने से पार्टी को मजबूती मिलेगी.


मकसद चुनाव लड़ाना है
यहां सवाल यह उठता है कि आखिर डा. इकरा अली को लेकर जदयू नेतृत्व का रूख इस ढंग से नरम क्यों पड़ गया? विश्लेषकों का मानना है कि डा. इकरा अली का जदयू में जिस गर्मजोशी से स्वागत हुआ है उसका सीधा मतलब है कि किसी विशेष मकसद से उन्हें पार्टी में शामिल कराया गया है. वह मकसद 2025 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सीतामढ़ी जिले के सुरसंड (Sursand) से जदयू का उम्मीदवार बनाने का हो सकता है. शाहिद अली खान सुरसंड से चुनाव लड़ते थे. एक- दो बार‌ पुपुरी (Pupri) से भी उन्होंने किस्मत आजमायी थी. 2015 से पहले निर्वाचित भी होते थे. सुरसंड- पुपरी में उनका पुश्तैनी जनाधार है.


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उम्मीद जगी‌ उम्मीदवारी की
यह अलग बात है कि 2015 में सुरसंड से ‘हम’ का उम्मीदवार रहते चुनाव हार गये थे. 05 जनवरी 2018 को उनका असामयिक निधन हो गया. शाहिद अली खान की सिर्फ तीन पुत्रियां हैं. उनके निधन के बाद सुरसंड की राजनीतिक विरासत संभालने के लिए डा. इकरा अली ने खूब जोर लगाया. 2020 में सुरसंड से ‘हम’ की उम्मीदवारी पाने की पूरजोर कोशिश की. कामयाबी नहीं मिली. जीतनराम मांझी ने शायद उनके लिए एनडीए में कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं किया. ‘हम’ तब अभी की तरह एनडीए (NDA) का ही हिस्सा था. जदयू से जुड़ने के बाद डा. इकरा अली की सुरसंड से उम्मीदवारी की उम्मीद जगी है.

तलाशेंगे और कहीं ठांव
वैसे, अभी दिलीप राय (Dilip Rai) वहां से जदयू के ही विधायक हैं. उनका पत्ता संभवतः इस वजह से साफ हो जा सकता है कि एनडीए सरकार के पिछले शक्ति परीक्षण में उनकी भूमिका को जदयू नेतृत्व ने संदिग्ध माना था. क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. फिलहाल कहा जाता है कि दिलीप राय के विकल्प के रूप ही डा. इकरा अली को जदयू में शामिल कराया गया है. अगर ऐसा ही हुआ तब दिलीप राय क्या करेंगे? दूसरे किसी दल में ठा़ंव तलाशेंगे? लेकिन, सवाल यहां यह है कि किसमें? राजद में पूर्व विधायक अबु दोजाना का दावा इतना पुख्ता है कि उन्हें बेदखल कराने की कुव्वत वह नहीं रखते हैं. इसके बाद विकल्प तो निर्दलीय ही बचता है.

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