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बड़ा बदलाव : कानून अब अंधा नहीं रह गया!

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तापमान लाइव ब्यूरो
03 नवम्बर 2024

New Delhi : ‘न्याय की देवी’ का स्वरूप बहुत कुछ बदल गया है. तकरीबन 75 साल बाद हुए इस ऐतिहासिक बदलाव का संदेश यह है कि कानून (Law) अंधा (Blind) नहीं है. ‘न्याय की देवी’ (Goddess of Justice) के बदले स्वरूप में तलवार की जगह संविधान है. इसका मतलब हर आरोपित के खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई से है. देश के सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ (DY Chandrachud) के आदेश पर अदालतों में दिखने वाली ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा में ये अहम बदलाव किये गये हैं. प्रतिमा की आंखों पर पहले पट्टी बंधी रहती थी. अब उसे खोल दिया गया है. तीन महीने की कड़ी मशक्कत के बाद शिल्पकार (Craftsman) विनोद गोस्वामी (Vinod Goswami) ने इसे बनाया है. उन्होंने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ के मार्गदर्शन में इस काम को पूरा किया है.

खुल गयी हैं बंद आंखें
‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा की आंखों पर पहले पट्टी तो बंधी थी ही, हाथों में तलवार थी और पहनावा गाउन था. नयी प्रतिमा (New Image) का स्वरूप देश की धरोहर, संविधान और प्रतीक से जुड़ा है. शिल्पकार विनोद गोस्वामी के मुताबिक फाइबर ग्लास से निर्मित प्रतिमा साढ़े छह फीट की है. वजन सवा सौ किलो है. गाउन (Gown) की जगह भारतीय नारी की पहचान साड़ी (Sadi) पहनायी गयी है. नयी प्रतिमा के एक हाथ में तराजू (Balance) और दूसरे में संविधान (Constitution) रखा गया है. स्पष्ट है कि इससे आमलोगों को यह संदेश देने की कोशिश की गयी है कि कानून अंधा नहीं (Law is Not Blind) है. आमतौर पर पहले लोग इसी प्रतिमा का हवाला देकर कहा करते थे कि कानून अंधा होता है.


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प्रधान न्यायधीश की सराहनीय पहल
हालांकि, पहले प्रतिमा की आंखों पर बंधी पट्टी (Blindfold) का संदेश था कि न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अदालत मुंह देखकर फैसला नहीं सुनाती है. न्याय (Justice) हर व्यक्ति के लिए समान (Same for Every Person) होता है. ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा के बायें हाथ में तलवार की जगह संविधान रख यह बताने का प्रयास किया गया है कि हर आरोपित के खिलाफ विधिसम्मत कार्रवाई की जायेगी. गौरतलब है कि अदालतों में लगी ‘न्याय की देवी’ की प्रतिमा ब्रिटिश काल (British Period) से ही चलन में है. नयी प्रतिमा के रूप में न्यायपालिका (Judiciary) की छवि में समय के अनुरूप बदलाव की पहल की गयी है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चन्द्रचूड़ ने न्यायिक प्रक्रिया में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही परिपाटी को बदलकर उसमें भारतीयता (Indianness) का भाव जगानेे और संविधान में समाहित समानता के अधिकार को जमीनी स्तर पर लागू करने की जो पहल की है वह निःसंदेह सराहनीय व वंदनीय है.

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