पटना : ललन सिंह से तो नहीं फंसा रहे पंगा?
राजीव रत्नेश
23 अप्रैल, 2023
PATNA : सरकारी कार्यक्रम हो या राजनीतिक, सामाजिक, मांगलिक आयोजन या फिर दरबार (Darbar) की ‘भूंजा संध्या’ ऐसा अक्सर देखा जाता है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के अगल-बगल विजय कुमार चौधरी (Vijay Kumar Choudhary), अशोक चौधरी (Ashok Choudhary) और संजय झा (Sanjay Jha) तीन दिशाओं में विनीत भाव से विराजमान रहते हैं. विशेष परिस्थिति में ही कभी-कभार कोई चौथा चेहरा नजर आता है. एकाध अवसर पर इन चेहरों में से कोई एक नजर नहीं आता है तब खबर बन जाती है. शिगूफों का सिलसिला चल पड़ता है. इधर के ही दिनों की बात है. विपक्षी एकता पर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से मुलाकात के वक्त जदयू (JDU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) के अलावा विजय कुमार चौधरी और संजय झा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ थे. अशोक चौधरी नहीं थे. क्यों नहीं थे, इसकी तह में गये बगैर ललन सिंह से उनके अंदरुनी टकराव की खबर फैला दी गयी. वैसे, इसमें कुछ न कुछ सच्चाई है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता.
यही तीन क्यों?
चलें फिर मूल विषय पर. मांगलिक आयोजनों में निजी तौर पर कोई बुलाये या नहीं, मुख्यमंत्री (Chief Minister) के साथ उक्त तीन चेहरों की मौजूदगी रहती ही है. नीतीश कुमार को निमंत्रित करने वाले भी ऐसा मानकर चलते हैं. तदनुरूप तैयारी रखते हैं, यह सामान्य समझ है. संभव है मुख्यमंत्री को निमंत्रित करने वाले अलग से इन्हें भी आमंत्रित करते हों. जो हो, यह आमंत्रण-निमंत्रण की बात है. यहां सवाल (Question) यह है कि महागठबंधन की सरकार में महत्वपूर्ण विभाग संभालने वाले ये तीनों वरिष्ठ मंत्री ही नीतीश कुमार के साथ साये की तरह क्यों चिपके रहते हैं? वे और उनके समर्थक निश्चित तौर पर इसे ‘राजनीतिक व शासनिक शिष्टाचार’ कहेंगे. यह अतार्किक भी नहीं है. लेकिन, लोग यह जानना अवश्य चाहेंगे कि ऐसा ‘शिष्टाचार’ सिर्फ इन्हीं तीनों मंत्रियों (Ministers) के लिए है, अन्य के लिए नहीं? सरकार (Government) में और भी तो मंत्री हैं? आम धारणा है कि यह और कुछ नहीं, मुख्यमंत्री के अतिविश्वसीय होने का सार्वजनिक प्रदर्शन भर है.
अंकुश क्यों नहीं?
सामान्य लोग भी वर्तमान में इन सबको नीतीश कुमार के अतिकरीबी के तौर पर मानते-जानते हैं. इनके राजनीतिक (Political) आचरणों एवं कार्यकलापों को उनकी भावना के अनुरूप समझते हैं. विश्वास इतना कि ऐसा कोई काम ये कर ही नहीं सकते हैं जिससे नीतीश कुमार या जदयू (JDU) का हित प्रभावित हो. इस परिप्रेक्ष्य में यह सवाल उठना लाजिमी है कि अशोक चौधरी (Ashok Choudhary) ने बरबीघा (Barbigha) के अपनी ही पार्टी के विधायक सुदर्शन कुमार (Sudarshan Kumar) के खिलाफ जो मुहिम चला रखी है क्या वह भी नीतीश कुमार की भावना के अनुरूप है? नहीं, तो फिर जदयू नेतृत्व सुदर्शन कुमार के संदर्भ में उनकी ‘बहकी-बहकी बातों’ पर अंकुश क्यों नहीं लगा रहा है? कहीं इस रूप में जदयू के अंदर किसी दूसरी बड़ी राजनीति की पृष्ठभूमि तो तैयार नहीं हो रही है?
मिल रहा जवाब भी
इन तमाम सवालों का जवाब वक्त देगा. फिलहाल चर्चा अशोक चौधरी और सुदर्शन कुमार के शीतयुद्ध की, जो बरबीघा विधानसभा क्षेत्र से जुड़ा है. हालांकि, यह शीतयुद्ध करीब-करीब एकतरफा है. अशोक चौधरी हमलावर हैं, सुदर्शन कुमार का रुख रक्षात्मक दिखता है. वैसे, अशोक चौधरी को भी लगभग उनके ही अंदाज में जवाब मिला है. उस मोर्चे को उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के कट्टर समर्थक विधान पार्षद रामेश्वर महतो (Rameshwar Mahto) ने संभाल रखा था. अशोक चौधरी पर उन्होंने जदयू (JDU) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को कमजोर करने की साजिश रचने का आरोप तक मढ़ दिया था.
यह हर कोई जानता है कि आचार्य किशोर कुणाल का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेहतर संबंध हैं. वैसे तो अशोक चौधरी बेटी या दामाद को विधानसभा का चुनाव लड़ाने की संभावना से साफ इनकार करते हैं, पर क्षेत्रीय लोगों को उनके इस इनकार पर एतवार नहीं. ऐसा इसलिए कि उनकी दिलचस्पी और सक्रियता आचार्य किशोर कुणाल से समधियाना कायम होने के बाद ही बढ़ी है.
सक्रियता के पीछे मंशा क्या?
बहरहाल, बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में अशोक चौधरी की अचानक बढ़ी दिलचस्पी ने राजनीति में रुचि रखने वालों को यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर इसके पीछे उनकी मंशा क्या है? इस सक्रियता को कुछ लोग 2024 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Election) से जोड़कर देख रहे हैं. अशोक चौधरी के जमुई (Jamui) संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने की संभावना है. लेकिन, गौर करने वाली बात यह है कि बरबीघा विधानसभा क्षेत्र जमुई संसदीय क्षेत्र के तहत है नहीं, शेखपुरा (Sheikhpura) है. वैसे भी महागठबंधन में उदयनारायण चौधरी (Udaynarayan Choudhary), श्याम रजक (Shyam Rajak), भूदेव चौधरी (Bhudev Choudhary) सरीखे और भी ताकतवर दावेदार हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) का मन भी मचल जा सकता है. ऐसा राजनीति महसूस कर रही है. ऐसे में अशोक चौधरी की बात बन जायेगी, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता.
बता रहे हैं भूल
इन सबके मद्देनजर सवाल यह भी उठता है कि तब अशोक चौधरी बरबीघा (Barbigha) की ठहरी हुई राजनीति में कंकड़ उछाल हलचल क्यों पैदा कर रहे हैं? जैसा कि वह दावा करते हैं, जदयू विधायक सुदर्शन कुमार को सियासत में जो हैसियत मिली हुई है वह उन्हीं की देन है. यह सच है, तो फिर उनकी इस हैसियत को मिटाने का पाप क्यों अपने सिर पर लेना चाह रहे हैं? उनकी इस राजनीति में जदयू का हित निहित है या खुद का कोई स्वार्थ है. अशोक चौधरी खुले तौर पर कह रहे हैं कि सुदर्शन कुमार को लोजपा (LJP) से लाकर पहले कांग्रेस (Congress) और फिर जदयू (JDU) का विधायक बनवाना उनकी सबसे बड़ी भूल थी. आरोप यह भी कि विधायक (MLA) बनने के बाद से ही वह (सुदर्शन कुमार) उनके सहयोगियों-समर्थकों को सम्मान नहीं दे रहे हैं. उपेक्षित रख रहे हैं. इससे सब असहज हैं.
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बरबीघा में हस्तक्षेप क्यों ?
इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि बरबीघा विधानसभा क्षेत्र कभी अशोक चौधरी का ‘पुश्तैनी गढ़’ था. क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित था. महावीर चौधरी (Mahavir Choudhary) विधायक निर्वाचित होते थे. 2000 में यहां की विरासत उन्होंने पुत्र अशोक चौधरी को सौंप दी. लगातार दो चुनावों में उनकी जीत हुई. 32 साल बाद 2010 में यह क्षेत्र आरक्षण से मुक्त हो गया. तब भी अशोक चौधरी का मोह खत्म नहीं हुआ. जनाधार पर गुमान इतना कि 2010 में भी मैदान में उतर गये. जदयू के गजानन शाही (Gajanan Shahi) ने उनके मंसूबे को रौंद दिया. उस शर्मनाक पराजय के बाद उन्होंने बरबीघा से मुंह मोड़ लिया. इधर, लगभग 12 साल बाद इस क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी फिर से दिखने लगी है. विधायक सुदर्शन कुमार इन दिनों राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह से जुड़े हुए हैं. इसके मद्देनजर अशोक चौधरी के विधायक विरोधी अभियान को लोग अंदरुनी टकराव के नजरिये से भी देख रहे हैं.
इंकार पर एतबार नहीं
अशोक चौधरी की सक्रियता के बारे में लोग चर्चा करते हैं कि वह बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में फिर से अपना वर्चस्व कायम करना चाहते हैं. खुद विधानसभा का चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं हैं. पुत्री शांभवी (Shambhavi) या दामाद सायण (Sayan) में से किसी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं. शांभवी फिलहाल स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही हैं. 2025 का चुनाव आते-आते उनकी पढ़ाई पूरी हो जायेगी. सायण पटना के महावीर मंदिर (Mahavir Mandir) के न्यासी आचार्य किशोर कुमार (Acharya Kishor Kunal) के पुत्र हैं. विधि स्नातक हैं. पटना (Patna) के बहुचर्चित और बहुप्रतिष्ठित स्कूल ज्ञान निकेतन (Gyan Niketan) को संभाल रहे हैं. यह हर कोई जानता है कि आचार्य किशोर कुणाल का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बेहतर संबंध हैं. वैसे तो अशोक चौधरी बेटी या दामाद को विधानसभा का चुनाव लड़ाने की संभावना से साफ इनकार करते हैं, पर क्षेत्रीय लोगों को उनके इस इनकार पर एतवार नहीं. ऐसा इसलिए कि उनकी दिलचस्पी और सक्रियता आचार्य किशोर कुणाल से समधियाना कायम होने के बाद ही बढ़ी है.
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