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नजर लागी राजा…: कुछ अधिक मारक है भ्रष्टाचार का यह दूसरा चरण

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विष्णुकांत मिश्र
08 अगस्त 2023

Patna : एक तरह से कहा जाये तो चारा घोटाला (Chara Ghotala) की तुलना में इन मामलों में मारक शक्ति बहुत अधिक है. कारण जो रहा हो, लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और तेजस्वी प्रसाद यादव इसे गंभीरता से लेते नहीं दिख रहे हैं. चारा घोटाले में घिरने के वक्त भी लालू प्रसाद ने ‘गरीब-गुरबों’ से जुड़ीं भावनात्मक बातों से कानून को बरगलाने और जनता को भरमाने का प्रसास किया था. परिणाम सामने है. भ्रष्टाचार का यह दूसरा चरण जिस ढंग से लालू प्रसाद के साथ-साथ उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) को अपनी गिरफ्त में ले रहा है उससे देर-सबेर यह परिवार और पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन जा सकता है. दिन-प्रतिदिन बढ़ रहीं कानूनी उलझनें संकट की विकरालता को विस्तार दे रही हैं.

भविष्य दांव पर
औरों की बात अपनी जगह है, इससे तेजस्वी प्रसाद यादव का राजनीतिक भविष्य दांव पर लग जा सकता है.चिंता इस बात की अधिक है कि तेजस्वी प्रसाद यादव की कमी को पूरा करने लायक परिवार में दूसरी कोई सक्षम शख्सियत नहीं दिखती है. यह बिल्कुल साफ है कि लालू परिवार की कानूनी लड़ाई का दूसरा चरण लंबा चलेगा. लेकिन, उससे कहीं अधिक खतरनाक राजनीति का मोर्चा है. भाव-भंगिमा बताती है कि विपक्षी दल भाजपा (BJP) को तेजस्वी प्रसाद यादव की ‘राजनीतिक बलि’ तुरंत चाहिये. इसके लिए वह तेजस्वी प्रसाद यादव को घपलों-घोटालों से संबद्ध मामलों में तो घसीट ही रही है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को भी ‘नैतिकता’ में घेर रही है. भाजपा चाहती है कि भ्रष्टाचार के इस मुद्दे पर नीतीश कुमार 2017 की तरह लालू-राबड़ी परिवार से पिंड छुड़ा लें, महागठबंधन से अलग हो जायें. ऐसा नहीं, तो फिर उसके समर्थन में खुलकर आयें. ताकि उनके ‘जीरो टॉलरेंस (Zero Tolerance)’ वाले चरित्र में आये बदलाव को देश-दुनिया देखे और समझे. परन्तु, राजनीति जिस पड़ाव पर है उसमें अभी ऐसी कोई संभावना बनती नहीं दिख रही है. नीतीश कुमार आदतन मौन हैं. पर, जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (Lalan Singh) लाठी लेकर इस परिवार के पक्ष में खड़ा है.

राबड़ी देवी का आवास.

नेतृत्व का क्या होगा?
बहरहाल, कानूनी उलझनों के बीच लालू परिवार ही नहीं, पूरा राजद (RJD) परिवार दो बड़े राजनीतिक सवालों से सीधे तौर पर जूझ रहा है. पहला यह कि राजद में नेतृत्व का क्या होगा? दूसरा लालू परिवार की गैर मौजूदगी में यह एक बना रहेगा? दोनों यक्ष प्रश्न हैं. पहले का उत्तर लालू प्रसाद के पास है तो दूसरे का समय के पास. लालू प्रसाद इस हकीकत को अच्छी तरह जानते व समझते हैं कि तेजस्वी प्रसाद यादव के अलावा उनकी अन्य किसी संतति में राजनीतिक उत्तराधिकारी होने की काबिलियत नहीं है. भ्रष्टाचार  (Corruption) के मामलों में तेजस्वी प्रसाद यादव का क्या होगा, यह कोई नहीं जानता. विषम परिस्थिति पैदा होने पर लालू प्रसाद को नेतृत्व के संदर्भ में नये सिरे से सोचना होगा.


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महागठबंधन रह पायेगा?
लेकिन, दिक्कत यह है कि वंश के बाहर के नेतृत्व के लिए उन्होंने राजद में न तो कोई जगह छोड़ी और न कोई पंक्ति तैयार की. पार्टी में नेतृत्व और लाभ का अवसर पत्नी और संतानों के लिए ही सुरक्षित रखा. इन सबके साथ एक और सवाल राजनीति को मथ रहा है कि सत्तारूढ़ महागठबंधन अपने मौजूदा स्वरूप में रह पायेगा? वैसे तो राजनीति में कब क्या हो जायेगा, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. जहां तक महागठबंधन की बात है तो सत्ता की खातिर फिलहाल यह अस्तित्व में रहेगा. ऐसा इसलिए भी कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार, दोनों के पास महागठबंधन (Mahagathbandhan) को बनाये रखने के अलावा दूसरा कोई ठोस विकल्प नहीं है. विकल्पहीनता की यह स्थिति राजद को कम, जदयू को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है.

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