जद (यू) : छल हुआ उपेन्द्र कुशवाहा के साथ!
राजकिशोर सिंह
02 अगस्त, 2021
पटना. जद(यू) की राष्ट्रीय कार्यसमिति की दिल्ली में हुई हालिया बैठक के मंच पर उपेन्द्र कुशवाहा को नहीं देख लोग चकित रह गये. पार्टी के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का यह ‘अपमान’ आम समझ से परे रहा. ऐसा क्यों हुआ इसको लेकर लोग अब भी माथापच्ची कर रहे हैं. मुख्य विपक्षी दल राजद ने भी तंज कसा है. राजद के प्रधान महासचिव आलोक मेहता ने कहा है कि उपेन्द्र कुशवाहा को न तो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया और न महत्वपूर्ण संगठनात्मक मंच पर जगह उपलब्ध करायी गयी. लेकिन, उपेन्द्र कुशवाहा की इस रूप में ‘उपेक्षा’ क्यों हुई इसका तकनीकी पक्ष बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा. वैसे लोग इसे उपेन्द्र कुशवाहा के साथ ‘छल’ मान रहे हैं. दरअसल रालोसपा के विलय के वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हर्षातिरेक में उपेन्द्र कुशवाहा को पार्टी के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष तो घोषित कर दिया, लेकिन उसके तकनीकी पक्ष पर गौर नहीं किया. फलतः उपेन्द्र कुशवाहा इस पद को विधिवत हासिल नहीं कर पाये, नामित ही रह गये. नामित पदधारी को कोई अधिकार नहीं होता. ऐसा जान बूझकर किया गया या उच्च स्तर से चूक हो गयी, यह नहीं कहा जा सकता. संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष की जरूरत आमतौर पर चुनाव के वक्त होती है. इधर ऐसी कोई जरूरत हुई नहीं, इसलिए यह मामला गौण रहा.
मुख्य रूप से आरसीपी सिंह की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से रुखसती के लिए दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का मुद्दा सामने आया. पार्टी के संविधान में संशोधन का प्रस्ताव पारित हुआ. अभी तक का प्रावधान यही है कि जो कोई जद(यू) का राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा वही संसदीय बोर्ड का भी अध्यक्ष होगा. इस दृष्टि से उपेन्द्र कुशवाहा को यदि अध्यक्ष पद पर मनोनयन से संबंधित कोई पत्र मिला होगा तो निःसंदेह उसे अवैध माना जायेगा. ऐसा कोई पत्र नहीं मिला होगा तब उन्हें संसदीय बोर्ड का नामित अध्यक्ष ही समझा जायेगा. पार्टी के संविधान में इस बाबत जो संशोधन होना है उसमें जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष मनोनीत करने का अधिकार दिया जाने वाला है. जद(यू) के सूत्रों के मुताबिक इस पर अंतिम निर्णय इसी माह में संभावित पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लिया जायेगा. बैठक पटना में होगी, इसकी संभावना है.