तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

सीतामढ़ी : आखिरी दांव … नहीं चल पाया तब?

शेयर करें:

मदनमोहन ठाकुर
14 मई 2024

Sitamarhi : थोड़ा-बहुत उलटफेर के साथ सीतामढ़ी संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक एवं सामाजिक हालात 2019 जैसे ही दिख रहे हैं. पर, इस बार इसकी चर्चा कुछ अधिक हो रही है. इसलिए कि सामान्य समझ में पिछड़ावाद की राजनीति (Politics) के लिए उर्वर सीतामढ़ी में सवर्ण उम्मीदवार उतार जदयू (JDU) ने जोखिम भरा प्रयोग किया है. अतीत में झांकें तो एक-दो अपवादों को छोड़ यहां तमाम बड़े राजनीतिक दलों के उम्मीदवार पिछड़ा वर्ग से ही होते रहे हैं. चौंकाऊ निर्णय के तहत जदयू की उम्मीदवारी बिहार विधान परिषद के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) को मिल गयी जो ब्राह्मण समाज से हैं. मुकाबला उनका राजद प्रत्याशी अर्जुन राय (Arjun Ray) से है.

यही है मुख्य मुद्दा
काफी जद्दोजहद के बाद उम्मीदवारी पाये अर्जुन राय 2019 में भी राजद के उम्मीदवार थे. भाजपाई पृष्ठभूमि के जदयू उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटू (Sunil Kumar Pintu) से 02 लाख 56 हजार 539 मतों के विशाल अंतर से मात खा गये थे. यहां जानने वाली बात है कि वैश्य बिरादरी के सुनील कुमार पिंटू के मैदान में रहने के कारण तब अगड़ा बनाम पिछड़ा का दांव नहीं चल पाया था. राजनीति महसूस कर रही है कि जाने-अनजाने इस बार यही मुख्य मुद्दा बन गया है.

अगड़ा बनाम पिछड़ा
वैसे भी उपमुख्यमंत्री के तौर पर सरकारी नौकरी देने के दावे का मजाक उड़ने और महंगाई, बेरोजगारी एवं विकास जैसे मुद्दों के समर्थक सामाजिक समूहों में सिमट जाने से हताश राजद (RJD) अघोषित तौर पर चुनावी समीकरणों को अगड़ा बनाम पिछड़ा का रूप देने लगा है. कहीं खुलेआम तो कहीं छिपे रूप में. विश्लेषकों को उसके अगड़ा बनाम पिछड़ा में भी बेशर्मी दिख रही है. मसलन जहां अगड़ों के समर्थन की जरूरत है वहां ‘ए टू जेड’ और ‘बाप’ का राग अलापा जा रहा है. अन्य क्षेत्रों में पिछड़ावाद.

कारगर नहीं
स्वार्थ भरे पिछड़ावाद की इसकी अपनी अलग परिभाषा है. जो राजद के साथ है वही पिछड़ा है. यही वजह है कि इस दोरंगी नीति और दोमुंही बातों का असर समर्थक सामाजिक समूहों के दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहा है. दूसरे सामाजिक समूहों पर प्रभाव नहीं डाल पा रहा है. विश्लेषकों की मानें तो ऐसा इसलिए है कि इस पिछड़ावाद में उस ‘जातिवाद’ की झलक दिख जा रही है जिसका दर्द अब भी सीने में बसा हुआ है. विशेष कर अत्यंत पिछड़ा वर्ग के सीने में. फलस्वरूप यह आखिरी दांव भी कारगर साबित होता नजर नहीं आ रहा है.


ये भी पढ़ें :
उजियारपुर : रह जायेगी फिर भुकभुका के?
उजियारपुर : कट जायेगी नाक…?
मुस्लिम सियासत : उबल रहा आक्रोश!
महागठबंधन‌ को नहीं है अतिपिछड़ों की जरूरत!


दावेदार कई थे
बहरहाल, सीतामढ़ी से देवेश चन्द्र ठाकुर की उम्मीदवारी के संदर्भ में जदयू के नेताओं का तर्क है कि एनडीए (NDA) में कई सक्षम-समर्थ दावेदार थे. उन्हें अवसर इस खासियत के मद्देनजर उपलब्ध कराया गया है कि सीतामढ़ी में उनकी सर्वजातीय व सर्ववर्गीय स्वीकार्यता है. नेताओं का तर्क जो हो, एनडीए के दूसरे दावेदारों में इस निर्णय पर गुस्सा उफनाना था, उफनाया. ऐसा उफनाया कि देवेश चन्द्र ठाकुर को ही नहीं, जदयू नेतृत्व को भी चिंता में डाल दिया. विशेष कर सुनील कुमार पिंटू को नजरंदाज कर दिये जाने से वैश्य बिरादरी में उपजी निराशा ने एनडीए में हताशा भर दी. उधर, प्रतिद्वंद्वी खेमे को इस निराशा को अगड़ा बनाम पिछड़ा का रूप दैने का मौका मिल गया. कोशिश भी हुई. कामयाब नहीं हो पायी.

यह है सबसे बड़ी बात
इस दौरान एकाध अपवादों को छोड़ एनडीए (NDA) के क्षुब्ध नेताओं का गुस्सा शांत पड़ जाने, कार्यकर्ताओं का असंतोष मिट जाने और समर्थक मतदाताओं का मिजाज अनुकूल दिखने के बाद भी देवेश चन्द्र ठाकुर के विजय पथ में अनेक अवरोध बनेही हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि सामाजिक समीकरण तो अनुकूल नहीं ही है, एनडीए समर्थक मतों में बिखराव का खतरा भी इत्मीनान में खलल डाले हुए है. वैसे, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की चुनावी सभाओं के बाद हालात बदलने की उम्मीद जगी है. एनडीए के घटक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं में समन्वय कायम हुआ है. इससे विजय पथ बहुत हद तक निरापद हो जा सकता है.

#TapmanLive

अपनी राय दें