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उजियारपुर : कट जायेगी नाक…?

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प्रवीण कुमार सिन्हा
13 मई 2024

Samastipur : उजियारपुर संसदीय क्षेत्र में भाजपा (B J P) और राजद (RJD) दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर है. केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) भाजपा के उम्मीदवार हैं, तो पूर्व मंत्री आलोक मेहता (Alok Mehta) राजद के. नित्यानंद राय तीसरी जीत के लिए जोर लगा रहे थे, तो 2009 और 2014 के चुनावों में मुंह की खा गये आलोक मेहता इस संसदीय क्षेत्र में पहली जीत हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे. 2019 में नित्यानंद राय की बड़ी जीत हुई थी. सीधे मुकाबले में उन्होंने उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) को 02 लाख 77 हजार 278 मतों के विशाल अंतर से धूल चटा दी थी. नित्यानंद राय को 05 लाख 43 हजार 906 और उपेन्द्र कुशवाहा को 02 लाख 66 हजार 628 मत प्राप्त हुए थे.

मुकाबला आमने-सामने का
इस बार भी मुकाबला आमने- सामने का है. अंतर सिर्फ इतना कि नित्यानंद राय के खिलाफ उपेन्द्र कुशवाहा की जगह आलोक मेहता मैदान में हैं. इस अंतर के अलावा राजनीतिक और सामाजिक समीकरण करीब – करीब वैसे ही हैं जो 2019 में थे. तब भी भाजपा प्रत्याशी नित्यानंद राय को इत्मीनान नहीं है. कारण चुनाव में प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझना पड़ा है. प्रतिकूलता की वजह मंहगाई, बेरोजगारी और विकास का मुद्दा नहीं है. विश्लेषकों की समझ में ये मुद्दे आमतौर पर राजद समर्थक सामाजिक समूहों के बीच उठ रहे हैं. अन्य सामाजिक समूहों के लिए इसका कोई खास चुनावी मतलब नहीं है.

उदासीनता बड़ी चुनौती
नित्यानंद राय के लिए सत्ता विरोधी रूझान और राष्ट्रवाद आधारित हिन्दुत्व का एकबारगी लुप्त हो जाना परेशानी का सबब बना हुआ था. इसके अलावा एनडीए (NDA) समर्थक सामाजिक समूहों में पसरी उदासीनता ने भी संभावनाओं के सिकुड़ जाने का बड़ा खतरा उत्पन्न कर रखा था. इससे उबर पाना उनके लिए बड़ी चुनौती थी. उबर पाये या नहीं, मतदान के रूझान में स्पष्ट नहीं हो पाया. राजद समर्थक सामाजिक समूहों को एकजुट रखने के रूप में चुनौती आलोक मेहता के समक्ष भी थी. नये सिरे से यह चुनौती समस्तीपुर (Samastipur) जिला युवा राजद के पूर्व अध्यक्ष अमरेश राय (Amresh Rai) ने पेश कर रखी थी. मतदान के रूख में उस चुनौती से पार पाते वह नजर नहीं आये.


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मिल गया इस बार भी
मतदान के रूख को भांपने वालों की मानें, तो यादव और मुस्लिम मतों का साथ उन्हें मिला पर, पिछले चुनावों में जिन यादव मतों का समर्थन नित्यानंद राय को मिला था, तमाम असंतोष के बावजूद थोड़ा बहुत इधर-उधर के साथ इस बार भी मिल ही गया. सबसे बड़ी बात यह रही कि निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर अमरेश राय के रूप में यादव मतों का एक और हिस्सेदार खड़ा हो गया. क्षेत्र विशेष में ही सही स्वजातीय समाज पर उनकी पकड़ है. सोमवार को मतदान में उसकी झलक दिखी. मत प्राप्ति के रूप में उनकी जो उपलब्धि होगी वह आलोक मेहता को ही नुकसान पहुंचायेगी.

टूट गयी मायूसी
अन्य क्षेत्रों की तरह यहां भी मुस्लिम मतों में चुनाव पूर्व मायूसी दिख रही थी. भाजपा विरोध के नाम पर मतदान कें दिन मिट गयी. बात कुशवाहा (Kushwaha) मतों की. 2019 में उपेन्द्र कुशवाहा के मैदान में रहने के बाद भी इन मतों में एकजुटता नहीं रह पायी थी. आलोक मेहता के समक्ष वैसा कोई खतरा नहीं दिखा. विश्लेषकों की समझ में माकपा (CPI(M)) के महागठबंधन का हिस्सा रहने के कारण इन मतों में ज्यादा बिखराव नहीं हुआ. ‘सन आफ मल्लाह’ मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) 2019 में भी महागठबंधन में थे. उनके साथ रहते तब महागठबंधन को जो कुछ हासिल हुआ था, हवाबाजी जो हो, उसमें घटाव – बढ़ाव होते नजर नहीं आया. सहनी समाज का एक बड़ा तबका ‘राम के नाम’ से प्रभावित दिखा.

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