तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

सभा गाछी : सरकार नहीं देती कोई महत्व

शेयर करें:

मैथिल ब्राह्मणों की शादी की अनूठी पद्धति से जुड़ी सौराठ सभा पान, मखान, मांछ और मीठी मुस्कान के लिए विख्यात मिथिलांचल की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है. पाश्चात्य सभ्यता जनित आधुनिकता इसकी पौराणिकता को निगल रही है. इससे मिथिलांचल के ब्राह्मणों के विश्व के इस इकलौते सामाजिक-सांस्कृतिक आयोजन के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है. क्या है सौराठ सभा का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व और क्यों उत्पन हो गया है इसके अस्तित्व पर खतरा, इस आलेख में इसपर दृष्टि डाली गयी है. प्रस्तुत है उसकी अंतिम कड़ी :


विजयशंकर पांडेय
07 जुलाई, 2022

MADHUBANI : महत्वपूर्ण बात यह भी कि राज्य सरकार (State Government) के स्तर पर इस सामाजिक सांस्कृतिक आयोजन को कभी कोई खास महत्व नहीं मिला. नब्बे के दशक के पूर्व की कांग्रेस (Congress) की सरकार हो या फिर उसके बाद की लालू-राबड़ी (Lalu-Rabri) एवं नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार, किसी ने भी इसकी गरिमा बचाये रखने की पहल नहीं की. 2014 में राजकीय आयोजन का दर्जा मिल जाने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा. सभावासियों की सुविधा के लिए सभा गाछी में प्रशासन (Administration) के स्तर पर कभी-कभार कुछ व्यवस्था जरूर हुई. पेयजल के लिए चापाकल, पंजीकारों की बैठकी, पोखर के किनारे चबूतरा आदि बनवाये गये. लेकिन, समुचित देखरेख के अभाव में सब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में ही पड़े रहते हैं.

माधवेश्वरनाथ महादेव मंदिर.

इधर जगा है कुछ सौभाग्य
इसे सौराठ सभा (Saurath Sabha) का सौभाग्य जगना ही माना जायेगा कि प्रतीक्षा भले लंबी करनी पड़ी, वहां मिथिला चित्रकला संस्थान (Mithila Chitrakala Sansthan) और मिथिला ललित संग्रहालय (Mithila Lalit Sangrahalya) अस्तित्व में आ गया है. इसमें जल संसाधन मंत्री संजय झा (Sanjay Jha) का अतुलनीय योगदान रहा है. निस्संदेह इससे मधुबनी चित्रकला संरक्षित और मिथिला की कला-संस्कृति संवर्द्धित होगी. सभा गाछी की एक पीड़ा यह है कि उसकी ढेर सारी जमीन अतिक्रमित हो गयी है, आसपास के लोगों द्वारा. कहा जाता है कि अतिक्रमणकारियों में ब्राह्मण (Brahman) समाज के लोग ही अधिक हैं. ऐसे में जब अपनों की सोच ऐसी हो तो सुधार की बात बेमानी लगती है. निरंतरता बनी रहेगी या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है,


इन्हें भी पढ़ें :
सभा गाछी : पंजी प्रथा और सिद्धांत का अब कोई मतलब नहीं
सभा गाछी : गाछी तो है, सभा समा गयी है औपचारिकता में…
सभा गाछी : अब न दूल्हे जुटते हैं और न मेला जमता है


मिट रही पहचान
अस्तित्वविहीनता की ओर बढ़ रही सौराठ सभा (Saurath Sabha) की परंपरा को बनाये रखने के लिए कुछ सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग आगे आये. पहचान खो रही मिथिलांचल की संस्कृति, रीति-रिवाज, प्रथा एवं परम्परा को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाया. लेकिन, ये तमाम प्रयास मुकम्मल रूप में तभी कारगर होंगे जब मैथिलों की नयी पीढ़ी अपनी अनूठी संस्कृति (Sanskriti) की विशेषताओं को जानेगी, समझेगी और सांस्कृतिक धरोहरों की मिट रही पहचान को बनाये रखने के प्रति सजग, सचेत एवं तत्पर होगी. पर, आधुनिकता (Modernity) में आकंठ डूबी यह पीढ़ी ऐसा कुछ करेगी, दूर-दूर तक इसकी कोई संभावना नहीं दिखती. इसलिए कि सभा गाछी में पारम्परिक पोशाक धोती-कुर्त्ता, चादर एवं सिर पर पाग धारण कर ललाट पर चंदन-टीका लगा चादर बिछा कर बैठे वर का दर्शन शायद ही कभी होता है. जरूरत परंपरा (Legacy) और आधुनिकता (Modernity) में समन्वय स्थापित कर जन चेतना जागृत करने की है. लेकिन, सवाल यह है कि इसके लिए पहल करेगा भी तो कौन? (समाप्त)

#TapmanLive

अपनी राय दें