दुर्गति की यह कहानी है अफसर से नेता और नेता से अफसर बनने की…
विशेष प्रतिनिधि
28 नवम्बर, 2022
PATNA : सुशासन बाबू की अफसरशाही से सिर्फ आम लोग ही परेशान नहीं. उनकी पार्टी के लोग भी परेशान हैं. आम और खास कार्यकर्ताओं के अलावा विधायकों और सांसदों को भी इसका अहसास रहा है कि दो अफसरशाहों (Bureaucrats) के बीच के टकराव के कारण पार्टी (Party) कहीं की नहीं रह जायेगी. ये दोनों कौन हैं? पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता आपको बता देगा. एक पुराने अफसरशाह हैं. इन दिनों पार्टी की नहीं, अपनी राह चल रहे हैं. अफसरी से राजनीति में आने के बाद उन्होंने खुद में बहुत सुधार किया. कोशिश करते हैं कि कार्यकर्ताओं से मिलें तो उन्हें अपनेपन का अहसास हो.
वह खुद को बड़ा भाई मानते हैं. अपनापन और सचमुच का बड़ा भाई (Brother) बताने के चक्कर में किसी के साथ तुम-तड़ाक कर बैठते हैं. कई इज्जतदार लोग इनकी तुम-तड़ाक वाली बोली से तंग आकर उनके घर का रास्ता भूल गये. किसी ने कभी उन्हें खराब व्यवहार के लिए नहीं टोका. टोकता भी कैसे? हमेशा हाथी (Hathi) के कान पर ही बैठे रहे हैं. लेकिन, व्यवहार के चलते पार्टी के गैरत वाले लोग उनसे दूर होते चले गये. अब तो हालत यह है कि दिल्ली (Delhi) का बड़ा ओहदा और पार्टी में महत्व खत्म हो जाने के बाद गिनती के लोग मिलने नहीं आते हैं.
इन्हें भी पढ़ें :
मखाना उत्पादन एवं कारोबार में खिलेगी अब मुस्कान
जयप्रकाश विश्वविद्यालय : तब पकड़ में नहीं आती निगरानी की ‘नादानी’
पटना वाले घर पर लोग आते थे. उस घर के साथ एक परेशानी थी. उनके यहां कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, सबकी खबर ली जाती थी. रिपोर्ट (Report) नये नेतृत्व को दी जाती थी. जिस किसी के बारे में खबर आती थी कि सिंह साहब (Singh Saheb) से मिलने गये थे, उनका पत्ता कट जाता था. अब तो पटना का वह घर भी नहीं रहा. गांव में ही दरबार सजता है. रौनकहीन दरबार! सिंह साहब में धैर्य है. इंतजार कर रहे हैं. समय पक्ष में होगा कि नाक से प्याज काट देंगे. इधर दूसरे दरबार का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है. कार्यकर्ताओं का आकलन है कि पहले वाले जन्मजात अफसर (Officer) थे. राजनीति (Politics) में आने के बाद नरम हो गये.
दूसरे दरबार वाले के बारे में कहा जा रहा है कि ये अफसर कभी नहीं रहे, लेकिन पावर (Power) मिलने पर बड़े अफसर बन जाते हैं. इनसे मिलने का समय है. घर पर चुनिन्दा लोगों से ही मिल पाते हैं. भला किसी पार्टी में चुनिन्दा लोगों की संख्या (Number) ही कितनी रहती है. सो, गिनती के लोग ही उन तक पहुंच पाते हैं. बिना समय लिए कोई कार्यकर्ता घर पर पहुंच जाये तो सुरक्षाकर्मी ही डांट कर भगा देते हैं. अफसर से नेता और नेता से अफसर बने इन दोनों के फेर में पार्टी कार्यकर्ताओं को पूरी तरह दुर्गति का अहसास होने लगा है. साइड इफेक्ट (Side Effect) तो आप देख ही रहे हैं.
#TapmanLive