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बेगूसराय : चाय की चुस्कियों से टपकती राजनीति!

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विनोद कर्ण
02 दिसम्बर, 2022

BEGUSARAI : चाय पर चर्चा’ को सुर्खियां मिलती रहती हैं. उसकी राजनीतिक बातों को लोग गंभीरता से लेते भी हैं. परन्तु, चाय (Tea) की सामान्य दुकान में राजनीति पर जो चर्चाएं होती हैं वे वहीं सिमट कर रह जाती हैं. न उन्हें कभी मीडिया (Media) में जगह मिल पाती है और न लोग उसे महत्व देते हैं. जबकि वहां होने वाले ‘सामान्य विश्लेषण’ में भी काफी दम होता है. तर्कों और विचारों से गंभीरता झलकती है. राजनीति (Politics) की संभावित दिशा का संकेत मिलता है. इसके बावजूद लोग उन्हें बेमतलब का मानते हैं. अतीत में झांकें, तो बड़े शहरों (Towns) में पहले ऐसी चर्चाओं के लिए काफी हाउस (Coffee House) होता था. नेता, पत्रकार और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग, सभी पहुंचते थे. वहां की चर्चाएं मीडिया के माध्यम से दूर-दूर तक पहुंचती थीं. काफी हाउस बंद हुए तो टुकड़े-टुकड़े में चर्चाएं शहर की चाय की चर्चित दुकानों में पसर गयीं. चाय की एक ऐसी ही दुकान बेगूसराय में है.

हर शाम गुलजार होती हैं दुकान
शहर के मध्य में स्थित यह छोटी-सी दुकान गनौरी की है. वहां चाय के सामान्य तलबगारों के साथ अच्छी संख्या में हर स्तर के गप्पबाज पहुंचते हैं. कभी-कभी गंभीर चर्चा करने वाले भी. गप्पबाजों की उपस्थिति करीब-करीब रोज होती है. राजनीति (Politics) की कोई बात शुरू हुई नहीं कि चाय की चुस्कियों के साथ चर्चाओं का सिलसिला चल पड़ता है. जो चाहे इसमें शामिल हो अपना ज्ञान बांच सकता है. कोई बंदिश नहीं, पूरी आजादीमौन रह राजनीति का ज्ञान बढ़ाने पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं. यह दुकान हर शाम गुलजार होती है. राजनीतिक कार्यकर्ता, विभिन्न विभागों के सेवानिवृत्त पदाधिकारी (Retired Officer) व कर्मचारी प्रायः प्रतिदिन जुटते हैं. वैसे, यहां की चाय का स्वाद केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh), पूर्व विधायक अमिता भूषण (Amita Bhushan), पूर्व विधान पार्षद रूदल राय (Rudal Ray) भी ले चुके हैं. जाने-अनजाने राजनीतिक चर्चाओं का आनंद उठा चुके हैं. पूर्व में भी नामचीन हस्तियां पहुंचते रहे हैं.

कन्हैया कुमार और भाकपा
इन दिनों वामपंथी धारा के लोगों का जमावड़ा थोड़ा अधिक होता है. इधर के दिनों में बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से महागठबंधन (Mahagathbandhan) के संभावित प्रत्याशी पर कुछ अधिक चर्चा होती है. गप्पबाजों के दावे-प्रतिदावे पर जोरदार बहस हुआ करती है. चर्चाओं में 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणाम को आधार बनाकर तर्क रखे जातेे हैं. एक दिन की चर्चा में कुछ लोग कहते हैं कि 2019 के चुनाव में कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) 4 लाख 19 हजार मतों से पिछड़ने के बावजूद दूसरे स्थान पर रहे थे. राजद के डा. तनवीर हसन (Tanveer Hasan) तीसरे नंबर पर चले गये थे. कन्हैया कुमार भले ही भाकपा (CPI) छोड़ कर कांग्रेस (Congress) में जम गये हैं, लेकिन उन्हें चुनाव लड़ने आता है. उनकी हार मतों के विशाल अंतर से हुई हो, महागठबंधन के प्रत्याशी के तौर पर राजग (NDA) को वही हरा सकते हैं. ऐसा कहने वाले के सामने बैठे सज्जन का जवाब आया – आप राजनीति का गणित नहीं जानते. कन्हैया कुमार को जितना वोट आया उसमें 75 प्रतिशत पार्टी का था. मतलब भाकपा का था. महागठबंधन ने कन्हैया कुमार को उम्मीदवार बनाया तो भाकपा कभी उसे स्वीकार नहीं करेगी. महागठबंधन ठोक-ठठाके प्रत्याशी तय करेगी. चर्चा आगे बढ़ती है.

भाकपा में नहीं है दूसरा कोई
सवाल उठता है कि भाकपा के पास वर्तमान में सिर्फ एक नेता बचे हैं- पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह (Satrughan Prasad Singh). उम्र के मामले में अस्सी पार कर चुके हैं. इसके बावजूद चुनावी अखाड़े में ताल ठोंकने को तैयार हैं. लेकिन, भाकपा नेतृत्व उन्हें इसकी इजाजत शायद नहीं देगा. बढ़ी उम्र के कारण दरकिनार कर दिये जायेंगे. भाकपा के पास दूसरा ऐसा कोई मजबूत प्रत्याशी नहीं है, जो लोकसभा (Lok Sabha) का चुनाव लड़ सके. दूसरी आवाज गूंजी -2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में वामपंथियों को चार सीटें मिली थीं, दो सीटों पर ही जीत हो पायी. दो विधायकों के बूते लोकसभा की सीट मिलना संभव नहीं. राजद (RJD) के पास भी तो दो ही विधायक (MLA) हैं – जबाव इन शब्दों में मिला. किसी ने कहा राजद ने तो जीती हुई बखरी (Bakhari) की सीट छोड़ दी थी. अन्यथा उसके तीन विधायक होते.


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तब फिर हिट हो जायेगा पुराना नारा
राजद बेगूसराय संसदीय क्षेत्र पर अपनी दावेदारी हरगिज नहीं छोड़ेगी. इस पर प्रतिक्रिया हुई – हां, तो फिर वही तनवीर हसन (Tanveer Hasan)! भाजपा हिन्दू-मुस्लिम करेगी और जीत जायेगी. गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) इसमें माहिर हैं. कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) को प्रत्याशी बनाया गया तो गिरिराज सिंह को नारा गढ़ने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी. टुकड़े-टुकड़े गैंग का पुराना नारा फिर हिट हो जायेगा और गिरिराज सिंह बाजी मार लेंगे. बीच में बात आ जाती है चेरियावरियारपुर के विधायक राजवंशी महतो (Rajvanshi Mahto) की. जो सांसद भी रह चुके हैं. कई लोग एक साथ बोलते हैं नहीं चलेगा. महागठबंधन को बेगूसराय की सीट निकालनी है तो भूमिहार (Bhumihar) वोट में दरार पैदा करनी होगी. महागठबंधन (Mahagathbandhan) के किसी भी दल से हो, यहां भूमिहार ही चलेगा.

बात अटक जाती है प्रधानमंत्री पर
चर्चा के क्रम में कांग्रेस की पूर्व विधायक अमिता भूषण (Amita Bhushan) की बात आ जाती है. महागठबंधन यदि अमिता भूषण को प्रत्याशी बनाता है तो फिर राजग (NDA) के लिए मुश्किल पैदा हो जा सकती है. पूर्व सांसद चन्द्रभानु देवी (Chandra Bhanu Devi) की पुत्री अमिता भूषण की छवि स्वच्छ है. चुनावी कला भी वह जान चुकी हैं. लोकसभा का चुनाव लड़ चुकी हैं. एक ने इसका समर्थन किया – हां अमिता भूषण को उम्मीदवारी मिल सकती है. बेहतर प्रत्याशी होंगी. कांग्रेस में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) से भी अच्छे संबंध हैं. 2015 में बेगूसराय विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवारी में उनका भी योगदान रहा है. एक सज्जन ने बात काटी – बहस बेतुकी है. पहले तय हो जाने दीजिये कि महागठबंधन में यह सीट किसके कोटे में जाती है. फिर आयेगी प्रत्याशी की बात. राजग की चर्चा होते ही सब मानते हैं कि भाजपा (BJP) ही यहां से चुनाव लड़ेगी. उस पार्टी में गिरिराज सिंह सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं. कुछ ने सांसद प्रो. राकेश कुमार सिन्हा (Rakesh Kumar Sinha) का नाम लिया. गप्पबाजी में भाजपा के दो खेमों की चर्चा भी होती है. यह दीगर बात है कि भाजपा नेतृत्व कभी भी यह स्वीकार नहीं करेगा कि पार्टी के भीतर कोई गुटबाजी है. विधान पार्षद सर्वेश कुमार (Sarvesh Kumar) को गुटनिरपेक्ष माना जाता है. बीच-बीच में पूर्व विधान पार्षद रजनीश कुमार (Rajneesh Kumar) का नाम भी उछल जा रहा है. फिर बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) व अमित शाह (Amit Shah) पर अटक जाती है. तब तक चाय की प्याली भी खाली जो जाती है.

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