शहाबुद्दीन और लालू परिवार : राजद से अलग मतलब खेल खत्म!
राजद और लालू-राबड़ी परिवार तथा शहाबुद्दीन परिवार के आपसी गहरे रिश्ते में गांठ क्यों पड़ गयी? प्रस्तुत है पांच किस्तों के आलेख की अंतिम किस्त…
राजेश पाठक
05 दिसम्बर, 2022
SIWAN : सीवान के राजद विधायक पूर्व मंत्री अवधबिहारी चौधरी (Awadh Bihari Chaudhary) का भी शहाबुद्दीन परिवार (Shahabuddin Family) से गहरा लगाव-जुड़ाव रहा है. हालांकि, इस रिश्ते में यदाकदा खटास भी आती रही है. इसके बावजूद वह इस परिवार के साथ रहे. लेकिन, अब उनका भी रुख पूरी तरह बदला हुआ दिख रहा है. विधानसभा के अध्यक्ष का पद मिल जाने के बाद दूरियां कुछ अधिक बढ़ गयी हैं. सोशल मीडिया (Social Media) पर गाली-गलौज के मामले में खूब नाम कमा रहे पूर्व विधान पार्षद टुन्ना जी पांडेय (Tunna Ji Pandey) ने एक बार खुला ऐलान किया था कि शहाबुद्दीन परिवार के किसी सदस्य को सदन में जगह नहीं मिलने तक वह हर तरह के चुनाव से अलग रहेंगे. यानी चुनाव नहीं लड़ेंगे. राजद (RJD) ने इस परिवार को जिस हालात में ला दिया है उसके मद्देनजर टुन्ना जी पांडेय उक्त वचन पर शायद ही कायम रह पायेंगे. टुन्ना जी पांडेय के भाई हैं बच्चा पांडेय (Bacha Pandey). बड़हरिया से राजद के विधायक हैं. बदले हालात में वह भी शहाबुद्दीन परिवार से दूर-दूर ही दिख रहे हैं. सीवान से हाल फिलहाल विधान पार्षद बने विनोद जायसवाल (Vinod Jaiswal) की जीत में भी इस परिवार की भूमिका रही है. निराशा उस ओर से भी मिली है. ऐसा उनके समर्थकों का कहना है.
सीवान का राजनीतिक-सामाजिक समीकरण सिर्फ एआईएमआईएम के बूते कुछ हासिल करने लायक नहीं है. यही सब कारण है कि बगावत के लिए उठे हीना शहाब के पांव ठिठक गये. समझ यह कि जिस पृष्ठभूमि से आती हैं उसमें राजद में रहने पर ही देर-सबेर कुछ हासिल हो सकता है, अन्यत्र नहीं.
जिनपे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे
पूर्व विधान पार्षद परमात्मा राम (Parmatma Ram) और सीवान जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष लीलावती गिरि (Lilawati Giri) का साथ मन से है या नहीं, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. मतलब कि जिनपे तकिया था वही पत्ते हवा देने लगे. बहरहाल, नेताओं ने जब दूरी बना ली है तब कार्यकर्त्ता खुद-ब-खुद दूर हो ही जायेंगे. ऐसे में यक्ष प्रश्न यह है कि हीना शहाब (Hina Shahab) राजद से अलग हो जाती हैं, तो उन्हें हासिल क्या होगा? शायद कुछ भी नहीं. इधर, पहली बार एक कार्यक्रम में भाजपा (BJP) के नेताओं से भरे मंच पर वह विराजमान दिखीं. इसके बावजूद कुछ हासिल करने के लिए भाजपा में जायेंगी नहीं. कांग्रेस (Congress) और जदयू (JDU) उन्हें जोड़ेगा नहीं. विकल्प एआईएमआईएम (AIMIM) बचता है. वह उनकी धर्मनिरपेक्ष राजनीति (Politics) को रास आयेगा इसमें संदेह है.
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इस वजह से ठिठक गये पांव
वैसे, सीवान (Siwan) का राजनीतिक-सामाजिक समीकरण सिर्फ एआईएमआईएम के बूते कुछ हासिल करने लायक नहीं है. यही सब कारण है कि बगावत के लिए उठे हीना शहाब (Hina Shahab) के पांव ठिठक गये. समझ यह कि जिस पृष्ठभूमि से आती हैं उसमें राजद में रहने पर ही देर-सबेर कुछ हासिल हो सकता है, अन्यत्र नहीं. जहां तक मुस्लिम (Muslim) जनाधार की बात है तो उसकी धारा बिल्कुल साफ है. भाजपा (BJP) विरोध की धारा. इस धारा के रुख को बड़े-बड़े मुस्लिम बाहुबली नहीं मोड़ पा रहे हैं, तो ढहे-ढनमनाये जनाधार के सहारे हीना शहाब क्या मोड़ पायेंगी! दिक्कत यह भी है कि सीवान में नयी राजनीतिक ताकत के रूप में उभर रहे बाहुबली रईस खान भी मुस्लिम जनाधार का बहुत बड़ा हिस्सेदार बन गये हैं. विधान परिषद (Vidhan Parishad) के चुनाव की उनकी उपलब्धि ऐसा ही कुछ दर्शाती है. बदले हालात में उनका जुड़ाव राजद से हो जाये, तो वह चौंकने-चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी. वन एवं पर्यावरण मंत्री तेजप्रताप यादव (Tejpratap Yadav) से हाल में हुई उनकी मुलाकात से इस संभावना को बल मिलता है. जो हो, इस तकिया कलाम को यहां दुहराया जा सकता है – राजनीति के खेल में कब क्या हो जायेगा, यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. (समाप्त)
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