बागेश्वर धाम : क्यों तिलमिला उठी सत्ता-राजनीति?
बहुचर्चित बागेश्वर बालाजी धाम और पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री से संबंधित किस्तवार आलेख की यह पहली कड़ी है :
राजकिशोर सिंह
23 मई 2023
PATNA : सुर्खियों में छाये बागेश्वर बालाजी धाम (Bageshwar Balaji Dham) के आचार्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री (Acharya Pandit Dhirendra Krishna Shastri) एक अवांछित तबके की गीदड़भभकियों को धूल की तरह झाड़ते हुए पटना (Patna) आये. समीपवर्ती नौबतपुर(Naubatpur) के पौराणिक तरेत पाली मठ (Teret Pali Math) परिसर में आयोजित पांच दिवसीय हनुमंत कथा (Hanumant Katha) में प्रतिदिन उपस्थित पांच से सात लाख सनातनी लोगों के बीच ‘हिन्दू-हिन्दू’ की बात कर ‘हिन्दू राष्ट्र की ज्वाला’ बिहार (Bihar) से उठने का हुंकार भर चले गये. महत्वपूर्ण बात यह कि इस रूप में इस राज्य में हिन्दुत्व (Hindutva) के ठहरे हुए पानी में ‘हिन्दू राष्ट्र’ रूपी कंकड़ उछाल उन्होंने जो हलचल पैदा कर दी, उससे विश्लेषकों की नजर में बिहार की ‘सत्ता -राजनीति’ की बुनियाद हिल गयी. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पटना में नाक-भौं सिकोड़ रखी सत्ता की ‘धर्मनिरपेक्ष नाक’ के सामने पांच दिनों तक दहाड़ते रहे, सनातन धर्म (Sanaatan Dharm) में शास्त्र और शस्त्र के महत्व को व्याख्यायित करते रहे, हिन्दुओं (Hindus) की एकजुटता पर जोर देते रहे. और, फिर बड़े इत्मीनान से बागेश्वर बालाजी धाम लौट गये.
घरों में दुबक गये
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को ढ़ोंगी बता उनके ‘दिव्य दरबार’ (Divy Darabaar) को पाखंड (Pakhand) के सिवा और कुछ नहीं मानने वाले लोग पटना में एयरपोर्ट से बाहर नहीं निकलने देने, जेल में डाल देने जैसे प्रलाप ही करते रह गये. युवा सनातनी संत के पांच दिवसीय पवित्र प्रवास के दौरान घरों से निकलने की हिम्म्त नहीं जुटा पाये. धर्मनिरपेक्ष भारतीय संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं रहने और दूर-दूर तक ऐसी कोई संभावना नहीं दिखने के बावजूद पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ‘हिन्दू राष्ट्र’ की गर्जना करते लौट गये. बार-बार बिहार आने का वादा कर वर्तमान सत्ता-राजनीति में सिहरन भी भर गये. पर, उनके इस हुंकार से बिहार की राजनीति की दिशा बदल जायेगी, ऐसा समझना जल्दीबाजी होगी. बहरहाल, जो नहीं जानते हैं उनके जेहन में यह सवाल अवश्य कौंधता होगा कि बिल्कुल बेखौफ अंदाज में इतनी बुलंदी से सनातन धर्म का अलख जगाने वाले पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री आखिर हैं कौन? बागेश्वर बालाजी धाम है क्या? साथ में और भी कई सवाल दिमाग को मथते होंगे.
सचमुच प्राप्त है अलौकिक शक्ति?
मसलन पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को सचमुच अलौकिक शक्ति प्राप्त है? सच में वह लोगों के मन की बात जान लेते हैं? दरबार में अर्जी लगा देने भर से वाकई तमाम दुख दूर हो जाते हैं? पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के भक्त और समर्थक जिसे सिद्धि या चमत्कार (Siddhi ya Chamatkar) बता रहे हैं, वास्तव में उसमें वैसा कुछ है या यह भी अंधविश्वास (Andhavishwas) का हिस्सा ही है? यह जानकर आश्चर्य होगा कि इन तमाम सवालों का जवाब सिर्फ भारत में ही नहीं, विविध कारणों से इस देश की धर्म-संस्कृति में विशेष दिलचस्पी रखने वाले विश्व के अन्य कई देशों में भी तलाशा जा रहा है. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री खुद चमत्कार या अन्य किसी प्रकार का कोई दावा नहीं करते. खुद को साधु-संत, महात्मा या ईश्वर का प्रतिरूप नहीं, बालाजी का सेवक बताते हैं. इतना अवश्य कहते हैं कि ईश्वर की कृपा, संतों का आशीर्वाद, तपस्या का फल और दादा गुरु की गद्दी की महिमा है कि कागज- कलम पकड़ते हैं, भगवान का ध्यान लगाते हैं और उन्हें सामने वाले का सब कुछ मालूम हो जाता है. न कोई बुलावा, न कोई शुल्क और न गंडा-ताबीज. यही गद्दी की परंपरा है.
अंधश्रद्धा और न अंधविश्वास!
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री कहते हैं कि जो श्रद्धालु बागेश्वर धाम के दरबार में अर्जियां लगाते हैं उन्हें भगवान बालाजी (हनुमानजी) तक पहुंचाने का वह माध्यम मात्र हैं. समाधान तो भगवान बताते हैं. न छल-कपट, न ठगी और न मुद्रामोचन. विशुद्ध सनातनी श्रद्धा और विश्वास. परन्तु, अनीश्वरवादी लोग इससे इत्तेफाक नहीं रखते. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की इस साधना और साध्य को ढोंग, पाखंड, अंधश्रद्धा और अंधविश्वास मानते-बताते हैं. महाराष्ट्र की अखिल भारतीय अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति (Andhashraddha Nirmoolan Samiti) ने तो उन्हें ‘चमत्कार’ सिद्ध करने की खुली चुनौती दे उनके खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज करा दी. लगभग इसी धुन पर पटना में भी विरोध का राग अलापा गया. ऐसा मुख्य रूप से राजनीतिज्ञों के वैसे तबके द्वारा किया गया तो तुष्टिकरण नीति के तहत हिन्दू हित की बात से परहेज करता है, कभी-कभी विरोध भी कर बैठता है.
विज्ञान के लिए भी अबूझ
पहले यह जानते हैं कि बागेश्वर बालाजी धाम है क्या? अपने देश में ऐसे अनेक ऐतिहासिक व प्रतिष्ठित मंदिर, आश्रम एवं धाम हैं, जिनसे सनातन धर्मावलंबियों की गहरी आस्था जुड़ी है. इनमें कई की परंपराएं अचंभित करती हैं. इसी देश में है दिव्य सिद्ध बागेश्वर बालाजी धाम, जिस पर भारत के ही नहीं, दूसरे कुछ देशों के धर्मानुरागियों का भी अटूट विश्वास है. यह ‘चमत्कारिक धाम’ वैज्ञानिकों के लिए अबूझ बना हुआ है. ऐसा होता भी है या नहीं, विवेचना का यह एक अलग विषय है, सनातनियों की धारणा है कि यहां दैविक और भौतिक समस्याओं से तो निजात मिलती ही है, प्रेत-बाधा से भी मुक्ति मिल जाती है. प्रेत-बाधा मुक्ति के लिए बजाप्ते प्रेत राज सरकार का दरबार लगता है. कई पेशियों के बाद त्राण मिल जाने की बात कही जाती है. अनीश्वरवादियों एवं विधर्मियों की नजर में यह अंधविश्वास हो सकता है, परन्तु आस्थावानों का दावा है कि ऐसी अन्य समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए भी बागेश्वर धाम में नित नये-नये दैवीय चमत्कार होते हैं. उनकी समझ है कि बालाजी सरकार के दरबार में जो कोई भी सिर नवाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता है. झोली भरकर ले जाता है. दरबार में मन लगाना नहीं पड़ता है, बालाजी के चरणों में स्वतः रम जाता है. उनके दर्शन मात्र से तमाम व्याधियां एवं मानसिक-शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं. यही है अखंड आस्था और श्रद्धा!
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बागेश्वर महादेव भी हैं
बागेश्वर बालाजी धाम (Bageshwar Balaji Dham) मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के छोटे-से गांव गढ़ा में है. यह राजनगर तहसील के तहत आता है. विश्व विख्यात खजुराहो (Khajuraho) इसी छतरपुर में है. स्थानीय लोगों की मानें तो पहाड़ी के नीचे पंचायत भवन था. परिवर्तित स्वरूप में वही बागेश्वर धाम है. छतरपुर बुंदेलखंड (Bundelkhand) का महत्वपूर्ण हिस्सा है. कुछ लोग इसे संत-महात्माओं का अतिप्राचीन तप स्थल बताते हैं. लगभग तीन सौ वर्षों से केन और बेतवा नदियों के संगम पर स्थित पहाड़ियों पर स्वयंभू महादेव विराजमान हैं. ऐसी मान्यता है कि उत्तराखंड के बागेश्वर धाम से शिवलिंग (Shivling) लाकर यहां स्थापित किया गया था. इसलिए इसे बागेश्वर महादेव कहा जाता है. पहाड़ी के पास ही श्मशान था. बुंदेलखंड पिछड़ा इलाका है. अन्य इलाकों की तरह यहां भी तंत्र-मंत्र सिद्धि और जादू-टोना-टोटका में विश्वास करने वाले लोग हैं. छोटे स्तर पर यह सब श्मशान में ही हुआ करता है. 1986 में महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ.1987 में संत बब्बाजी सेतुलालजी महाराज नामक संन्यासी आकर जम गये. कहां के थे, कैसे आये यह नहीं मालूम. बगल के गांव गढ़ागंज में रहने वाले भगवान दास गर्ग उनसे मिलने-जुलने लगे. मंदिर में पूजा-पाठ करने लगे.
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आखिर, है क्या बागेश्वर बालाजी धाम?
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