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साइबर ठगी : हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा!

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राजकिशोर सिंह
31 अगस्त, 2023
Jamtara : पुलिस का दावा जो हो, जामताड़ा (Jamtara) , करमाटांड़ (Karmatand) और नारायणपुर (Narayanpur) थानों में तकनीकी सेल के गठन और अलग साइबर थाना (Cyber Police Station) खुल जाने के बावजूद साइबर ठगी अपनी रफ्तार में है. अंतर सिर्फ इतना आया है कि अपराध का तरीका बहुत कुछ बदल गया है. धंधे से जुड़े लोग अब गांव-घर से दूर जंगलों में कहीं छिप कर या फिर लंबी यात्रा पर चलती गाड़ियों में बैठकर इसे अंजाम दे रहे हैं. ऐसा इसलिए कि इससे जगह की पहचान नहीं हो पाती है . पुलिस भटक कर रह जाती है. सामाजिक स्वीकार्यता और जरूरत से ज्यादा लचीला कानून भी इस अपराध (Crime) पर अंकुश लगाने में बड़ा बाधक बना हुआ है. ‘हींग लगे न फिटकरी, रंग चोखा’ के रूप में हो रही अंधाधुंध अवैध कमाई में लिप्त युवक पढ़े-लिखे भले कम हों, साइबर कानून (Cyber law) का उन्हें पूरा ज्ञान है.

सामाजिक स्वीकार्यता
साइबर क्राइम में तीन से पांच साल तक की सजा का प्रावधान है. जमानत आसानी से मिल जाती है. इस कारण मनमाफिक धन प्राप्ति के लिए धंधेबाज बेहिचक तैयार रहते हैं. जहां तक सामाजिक स्वीकार्यता (social acceptability) की बात है तो युवकों को इस अपराध में आमतौर पर माता-पिता और गांव के लोग ही झोंकते हैं, संरक्षण भी देते हैं. अहिल्यापुर का मनोज मंडल इसका साबुत उदाहरण है. सरकारी सेवा में अवसर के लिए वह प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहा था. गांव के भटके युवकों की अल्पकाल की संपन्नता से प्रभावित माता-पिता और गांव के अन्य कई लोगों के दबाव में साइबर क्रिमिनल (Cyber criminal) बन गया.

ऐसी ही जगहों में हैं अड्डे.

ठगी को बना लिया रोजगार
करमाटांड़ (Karmatand) से तकरीबन तीन किलोमीटर दूर बसा है कासीटांड़ (kasitand) गांव. वहां का पप्पू मंडल हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़कर धंधे में शामिल हो गया. थोड़े ही समय में उसकी आर्थिक स्थिति अन्य युवकों के धंधे से जुड़ने का बड़ा अधार बन गयी. राजेश मंडल और सुशील मंडल सगे भाई हैं. करमाटांड़ थाना क्षेत्र के सियाटांड़ गांव के रहने वाले हैं. हाल में दोनों की गिरफ्तारी हुई. पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली कि सियाटांड़ गांव के नब्बे प्रतिशत युवकों ने इसे अपना करियर बना रखा है. सिर्फ कासीटांड़ और सियाटांड़ ही नहीं, माड़टांड़, झिलुआ, कालाझरिया, दुधानी आदि गांव के दिग्भ्रमित युवा भी सीताराम मंडल को अपना आदर्श मानते हैं.

गलत नहीं मानता परिवार
ऐसे लोगों की समझ में स्कूली पढ़ाई-लिखाई बेकार है. साइबर अपराधी बन जाना उससे बेहतर है. इलाकाई लोग साइबर अपराधियों को ‘लायक बेटा’ मानते हैं. तर्क यह कि परिवार के लिए मेहनत करता है तो इसमें गलत क्या है? यही वह सोच है कि पुलिस जब कभी इन साइबर अपराधियों पर हाथ डालने की कोशिश करती है तो लगभग पूरा गांव अपराधियों के पक्ष में खड़ा हो उठता है. ईंट-पत्थर से खदेड़ देता है. पुलिस के आलाधिकारियों का मानना है कि बैंक और टेलीकाम कंपनियों के सहयोग एवं स्थानीय पुलिस के संरक्षण में यह अपराध विस्तार पा रहा है.


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सतर्क रहने की जरूरत
शुरुआती दौर की बात अलग है, भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) समेत सभी बैंक और बीमा कंपनियां (insurance companies) वर्तमान में आमलोगों को निरंतर जागरूक कर रही है. स्पष्ट शब्दों में बताया जा रहा है कि कोई भी बैंक अधिकारी या कर्मचारी कभी किसी खाताधारक से निजी जानकारी नहीं पूछता है. खाताधारकों को किसी भी परिस्थिति में किसी से भी पासवर्ड या पिन नम्बर शेयर नहीं करने को कहा जा रहा है. इसे विडंबना ही कहेंगे कि इस तरह आगाह किये जाने के बावजूद लोग चूक कर अपने खाते में चूना लगवा लेते हैं. इधर के दिनों में एटीएम (ATM) से पैसा निकालने में ओटीपी (OTP) अनिवार्य कर दिया गया है. यह कितना प्रभावी होता है इसे जानने- समझने में थोड़ा वक्त लगेगा.

बदलना होगा नजरिया
बहरहाल, सरकारी तंत्र (government system) को और कारगर बनाने तथा वित्तीय संस्थाओं के डेटा को सुरक्षित करने की जरूरत है. लेकिन, सिर्फ इतना भर से ही साइबर क्राइम पर अंकुश नहीं लग पायेगा. इसके लिए हर व्यक्ति को सजग और सतर्क रहना होगा और समाज को भी साइबर अपराधियों के प्रति नजरिया बदलना होगा. उन्हें आम अपराधी से कहीं अधिक खतरनाक मानना होगा. साइबर क्राइम को तभी नासूर बनने से रोका जा सकता है.अन्यथा पुलिस के साथ इन अपराधियों का ‘तू डाल-डाल तो मैं पात-पात’ का ही खेल चलता रहेगा….

#tapmanlive

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