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बिहार में शिक्षा : बड़े बजट के बावजूद यह बदहाली !

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राजकिशोर सिंह
30 सितम्बर 2023
Patna : शिक्षकों (teachers) की कमी दूर करने के लिए संख्या बढ़ाने की प्रक्रिया चल रही है. पहले सृजित-स्वीकृत पदों पर भी नियुक्ति नहीं हो पा रही थी. शिक्षक सेवानिवृत्त (retired) हो रहे थे. उनकी जगह पर नयी बहाली नहीं हो रही है. इससे प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च, सभी स्तर पर शिक्षा के कार्य बाधित हो रहे थे. वर्तमान में जितने शिक्षकों की बहाली की प्रक्रिया चल रही है उससे इस समस्या का समाधान हो जायेगा, वैसी बात भी नहीं. छात्र-शिक्षक अनुपात थोड़ा सुधर जायेगा. इसके अलावा ज्यादा कुछ नहीं होगा. इसलिए भी नहीं कि बहाली शिक्षा (Education) में सुधार के मकसद से नहीं, वोट के नजरिये से हो रही है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि 90 प्रतिशत विद्यालयों (schools) में शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं हो सका है. राज्य (State) में वैसे भी नामांकन कम होते हैं. लेकिन, जितने बच्चे नामांकन कराते हैं उनमें बहुत सारे शिक्षा पूरी नहीं कर पाते. लगभग 50 प्रतिशत बच्चों की शिक्षा बीच में ही छूट जाती है.

बीच में छूट जाती है शिक्षा
शिक्षा के क्षेत्र में यह भी एक बड़ी समस्या है जो आर्थिक मजबूरी के साथ-साथ अभिभावकों (parents) की उदासीनता से जुड़ी है. इसलिए ‘सबके लिए शिक्षा’ संभव नहीं हो पा रही है. शिक्षा विभाग  (education Department) द्वारा हाल में कराये गये ‘औचक निरीक्षण’ (Surprise inspection) की रिपोर्ट को सही मानें तो विद्यालयों में नामांकित बच्चों की तुलना में 10 से 20 प्रतिशत बच्चे गैरहाजिर पाये गये. इसके बाद भी सरकार (Government) यह दिखाने में जुटी रहती है कि विद्यालयों में दाखिला में इजाफा हुआ है. दाखिले और उपस्थिति के आंकड़े को छुपाया जा रहा है. शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए जो प्रयास होना चाहिये वह नहीं हो रहा है. योग्य और समर्पित शिक्षकों की घोर कमी है. सरकारी स्कूलों में नियुक्त नियोजित शिक्षकों में ऐसे ही शिक्षकों की संख्या अधिक है जो अपने विषय तक की जानकारी नहीं रखते हैं. हैरानी की बात यह कि ऐसे लोग भी शिक्षक बन गये हैं जिनका सामान्य ज्ञान शून्य है. इन्हीं सब कारणों से शिक्षा के मानकों पर बिहार देश में सबसे निचले पायदान पर है. ऐसे में के के पाठक () के ‘सुधार अभियान’ से तस्वीर कितनी बदलती है, यह देखना दिलचस्प होगा.


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शिक्षा सूचकांक में भी है पिछड़ा
शिक्षा के क्षेत्र में बड़े राज्यों में पश्चिम बंगाल (West Bengal) शीर्ष पर है तो बिहार सबसे नीचे है. ऐसा प्रधानमंत्री (Prime Minister) की आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट कहती है. रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय औसत 28.05 है. बिहार का प्रदर्शन इससे काफी नीचे है. पहली से पांचवीं कक्षा तक की शिक्षा व्यवस्था के आधार पर दस साल से कम उम्र के बच्चों में साक्षरता को लेकर यह रिपोर्ट तैयार की गयी. पांच आधारों पर प्राथमिक शिक्षा सूचकांक जारी किया गया. शैक्षणिक बुनियादी ढांचा, शिक्षा तक पहुंच, बुनियादी स्वास्थ्य, सीखने के परिणाम और शासन जैसे पांच आधारों पर रिपोर्ट जारी की गयी. इसमें बड़े राज्यों में बिहार फिसड्डी साबित हुआ. छोटे राज्यों में केरल शीर्ष पर तो झारखंड (Jharkhand) सबसे नीचे है.

तब भी है यह दुर्गति
रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वर्ग दो के 23.5 प्रतिशत बच्चे ही वर्ग दो स्तर की किताब पढ़ पाते हैं. 28.4 प्रतिशत ही जोड़-घटाव कर पाते हैं. वर्ग पांच के 41.3 प्रतिशत बच्चे ही वर्ग दो स्तर की किताब (Book) पढ़ सके. 29.9 प्रतिशत ही गुणा-भाग कर पाये. वर्ग सात के 71.2 प्रतिशत बच्चे ही वर्ग दो स्तर की किताब पढ़ पाये. 56.9 प्रतिशत ही गुणा-भाग कर सके. शिक्षा के मामले में बिहार कहां है, इन आंकड़ों से साफ पता चल जाता है. महत्वपूर्ण बात यह कि 39 हजार 192 करोड़ से अधिक का शिक्षा का बजट रहने के बाद भी शिक्षा के मामले में बिहार की यह दुर्गति है.

राज्य सरकार की प्राथमिकता नहीं
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार अपने बजट का लगभग 16.5 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है. जीडीपी (gdp) की 6 प्रतिशत से ज्यादा राशि इस पर खर्च हो रही है. समग्र शिक्षा अभियान के तहत केन्द्र से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बाद बिहार (Bihar) को ही सर्वाधिक राशि मिलती है. इसमें स्कूल भवन, बुनियादी ढांचे और शिक्षकों के वेतन पर ही ज्यादा खर्च हो रहे हैं. आश्चर्य इस बात की कि पानी की तरह पैसा बहाये जाने के बाद भी शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों का अभाव राज्य सरकार की प्राथमिकता सूची में नहीं है. शैक्षणिक पिछड़ापन का यह भी एक कारण है. बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के ढाई लाख से अधिक पद खाली हैं.

रिक्त पड़े हैं शिक्षकों के पद
संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक समग्र शिक्षा अभियान के तहत बिहार में विभिन्न स्तरों के शिक्षकों के 5 लाख 92 हजार पद स्वीकृत हैं. उनमें 2 लाख 23 हजार पद रिक्त पड़े हैं. इन्हीं पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है. उच्च माध्यमिक विद्यालयों के लिए 43 हजार शिक्षकों के पद स्वीकृत हुए थे. नियुक्ति सिर्फ 11 हजार पदों पर हुई. 32 हजार पद अब भी रिक्त पड़े हैं. इसी तरह प्रधानाध्यापकों (Principals) के पद भी खाली पड़े हैं. इस पद के लायक योग्य शिक्षक इस राज्य में हैं ही नहीं. यह गप नहीं, हकीकत है. हाल ही में प्रधानाध्यापक पद के लिए ‘पात्रता परीक्षा’ (patrata pareksha) आयोजित हुई. गिने-चुने शिक्षक ही अपनी योग्यता सिद्ध कर पाये. गौर करने वाली बात यह भी है कि नीतीश कुमार की सरकार ने सवा लाख शिक्षकों की एक साथ भर्ती का ख्वाब दिखाया था. चार वर्षों से भर्ती की प्रक्रिया ही चल रही है.

स्वीकार्यता पर सवाल
सड़कों पर संघर्ष कर रहे शिक्षक पात्रता परीक्षा पास अभ्यर्थियों की लाठियों से पिटाई के अलावा विशेष कुछ नहीं हो रहा है. यही है बिहार के विकास का नीतीश मॉडल! नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनेंगे, तो पूरे देश में इसे ही लागू करेंगे! दिलचस्प बात यह कि दूसरों को छोड़ दें, उनकी ही सरकार के शिक्षा मंत्री प्रो. चन्द्रशेखर(Education Minister Prof. Chandrashekhar)  शिक्षा के इस मॉडल को अव्यावहारिक और अनुपयोगी मानते हैं. बदलाव की बात करते हैं. प्रो. चन्द्रशेखर राजद (RJD) कोटे के मंत्री हैं. यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब ‘नीतीश मॉडल’ (Nitish Model) की स्वीकार्यता बिहार की उनकी अपनी ही सरकार में नहीं है, तो शेष भारत को वह कैसे और क्यों स्वीकार होगा?

चित्र सोशल मीडिया

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