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सीमांचल : नीतीश कुमार ने नाप दी राजद और कांग्रेस की औकात‌ !

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अशोक कुमार
26 अक्तूबर 2023
Purnia : पहले नहीं भी हुआ, तो 2024 के संसदीय चुनाव के बाद बिहार की सत्ता से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की विदाई हो जायेगी. यह करीब- करीब तय है. विदाई स्वच्छेया होगी या जबरिया,तब की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा. राजनीतिक हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि चुनाव बाद की केन्द्र की राजनीति में उन्हें कोई बड़ी भूमिका मिले या नहीं, राज्य की राजनीति के लिए वह अप्रासंगिक हो जायेंगे. उसी आशंका का असर उनकी स्मरण शक्ति पर पड़ता दिख रहा है. नीतीश कुमार भी यह मान कर चल रहे हैं कि सत्ता से विदाई अब ज्यादा दूर नहीं है. सात – आठ माह बाद‌ कभी भी हो जा सकती है. इसी को दृष्टिगत रख उन्होंने जदयू (JDU) कार्यकर्ताओं को चिर प्रतीक्षित लाभ पहुंचाने का अभियान चला रखा है. फायदा राजद के कार्यकर्ताओं को भी मिल रहा है. ‘हाथ उठाई’ के रूप में महागठबंधन के अन्य घटकों – कांग्रेस एवं वामदलों को भी.

उल्टा पड़ रहा दांव
ऐसे ही खास अभियान के तहत राज्य के तमाम जिलों में 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति (सरकारी नाम जिला स्तरीय कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति) का गठन किया गया है. जिले के प्रभारी मंत्री को समिति का अध्यक्ष और महागठबंधन के दो घटक दलों के जिला अध्यक्षों को उपाध्यक्ष बनाया गया है. अपवाद के तौर पर किसी – किसी जिले में दूसरे नेता को भी अवसर उपलब्ध कराया गया है. हर जिले की समिति में 25 से 30 सदस्य हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्तर से बीस वर्षों के लम्बे अंतराल के बाद हुई इस पहल को आसन्न संसदीय चुनाव की बाबत कार्यकर्ताओं की हौसला अफ़ज़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है. पर, दांव उल्टा पड़ता नजर आ रहा है. इस रूप में कि इस लाभ से जितने कार्यकर्ता संतुष्ट नहीं हुए हैं उससे कई गुना अधिक असंतुष्ट हो गये हैं. कारण उन्हें मिलने वाली सरकारी सुविधाएं हैं.

गुस्सा तो उफनायेगा ही
जानकारों की मानें, तो जिला 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति के उपाध्यक्ष को उपमंत्री के समान सुविधाएं देय है‌, तो सदस्य को विधायक के समान. स्वाभाविक है कि जो नेता -कार्यकर्ता इससे वंचित रह गये हैं, उनमें से अधिकतर में पार्टी नेतृत्व के खिलाफ गुस्सा उफनायेगा और किसी न किसी रूप में वे इसे उतारेंगे ही. यह तो कार्यकर्ताओं की बात हुई. उपाध्यक्ष के पदों में समानुपातिक हिस्सा नहीं मिलने से असंतोष व आक्रोश महागठबंधन के घटक दलों में भी है. विशेष कर कांग्रेस और भाकपा- माले (CPI-ML) में. वजह यह कि राज्य के कुल 38 जिलों में 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति के 76 उपाध्यक्ष बनाये गये हैं. 33-33 यानी 66 पर राजद (RJD) और जदयू काबिज हो गयेे हैं. कांग्रेस, भाकपा – माले, भाकपा (CPI) और माकपा (CPM) को 10 में समाविष्ट कर दिया गया है. कांग्रेस (Congress) नेतृत्व मौन है, पर भाकपा- माले ने इस उपेक्षा पर कड़ी आपत्ति जतायी है.


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गजब का खेल हुआ चयन में
सीमांचल में संसदीय कार्य‌ मंत्री विजय कुमार चौधरी‌ पूर्णिया, शिक्षा मंत्री चन्द्रशेखर यादव कटिहार, सहकारिता मंत्री सुरेन्द्र प्रसाद यादव‌ अररिया और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहम्मद जमा खान किशनगंज‌ की जिला स्तरीय कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष होंगे. उपाध्यक्षों के चयन में गजब का खेल हुआ है. जनाधार अपेक्षाकृत कम रहने के बाद भी राजद और कांग्रेस की औकात नाप चारो जिलों में जदयू के उपाध्यक्ष बना दिये गये हैं. राजद और कांग्रेस के हिस्से में दो -दो पद गये हैं. दिलचस्प बात यह कि दूसरे जिलों में पार्टी के जिला अध्यक्षों को अवसर मिला, किशनगंज में कांग्रेस के नाम पर एक ऐसे शख्स को उपाध्यक्ष का पद दे दिया गया है जिसकी पार्टी के प्रति निष्ठा संदिग्ध मानी जाती है. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष को सिर्फ कटिहार में उपाध्यक्ष का पद मिला है, सुनील यादव को. वहां‌ दूसरे उपाध्यक्ष जदयू के जिला अध्यक्ष शमीम इकबाल बने हैं. हैरान करने वाली बात यह कि कटिहार जिला परिषद की अध्यक्ष रहीं जिला राजद की अध्यक्ष इशरत परवीन को भी सदस्य में समेट दिया गया है . इशरत परवीन वर्तमान में कटिहार जिला परिषद की उपाध्यक्ष हैं. इसको भी ध्यान में नहीं रखा गया.

सम्मान के साथ खिलवाड़
इसी तरह लोग सवाल उठा रहे हैं कि‌ नीतीश कुमार की नजर में किशनगंज की राजनीति के ‘भीष्म पितामह’ जदयू नेता बुलंद अख्तर हाशमी और किशनगंज जिला राजद के अध्यक्ष पूर्व विधायक कमरूल होदा को सामान्य सदस्य बना उनके सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं किया गया? पूर्णिया, किशनगंज और अररिया के जिला कांग्रेस अध्यक्षों को भी साधारण सदस्य की हैसियत मिली है. पूर्णिया‌ जिला कांग्रेस के अध्यक्ष नीरज सिंह उर्फ छोटू सिंह ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की. किशनगंज जिला कांग्रेस के अध्यक्ष इमाम अली चिंटू को आपत्ति इस बात पर हुई कि कांग्रेस के नाम पर जिस असगर अली पीटर को उपाध्यक्ष का पद दिया गया है वह पार्टी के प्रति निष्ठावान नहीं हैं. कांग्रेस के अन्य कई स्थानीय नेताओं का कहना है‌ कि असगर ‌‌अली पीटर ने ‌क्षेत्रीय काग्रेस‌ सांसद डा. जावेद आजाद , किशनगंज के कांग्रेस विधायक इजहारूल हुसैन और किशनगंज जिला कांग्रेस के अध्यक्ष इमाम अली चिंटू का सदैव विरोध किया. इतना ही नहीं, कभी वह एमआईएम तो कभी भाजपा की राजनीति से भी जुड़े रहे है.

जाकिर अनवर को आपत्ति
अररिया जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पूर्व विधायक जाकिर अनवर ने इस रूप में हुई काग्रेस की उपेक्षा पर गहरी नाराजगी जताते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को अररिया जिला 20 सूत्री कार्यक्रम कार्यान्वयन समिति की सदस्यता त्यागने का पत्र सौंप दिया. उनका कहना रहा कि यह कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के सम्मान के खिलाफ है, जो बर्दाश्त से बाहर की बात है. विश्लेषकों की मानें, तो जाकिर अनवर ने जो मुद्दा उठाया है उसे विस्तार मिल सकता है. यहां इस पर भी गौर फरमाने की जरूरत है कि इन दिनों महागठबंधन के महकमे में ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी’ का नारा खूब गूंज रहा है. सीमांचल के चारो जिलों में उपाध्यक्ष के आठ पदों में मुस्लिम समाज को तीन हासिल हुए हैं- कटिहार में शमीम इकबाल (जदयू) और किशनगंज में मास्टर मोजाहिद आलम (जदयू) एवं असगर अली पीटर (कांग्रेस) को. यादव को दो- कटिहार में सुनील यादव (कांग्रेस) और अररिया में मुकेश यादव (राजद) को. इसी तरह कुर्मी को भी दो मिले हैं- अररिया में आशीष कुमार पटेल (जदयू) और पूर्णिया में राकेश कुमार (जदयू) को. अत्यंत पिछड़ा वर्ग को राजद ने सम्मान दिया. पूर्णिया में मिथिलेश कुमार दास को मौका दिया‌, जो जिला राजद के अध्यक्ष‌ हैं. अन्य जातियां सिफर हैं.

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