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वाह, क्या सोच है…’खैरात’ बांटने के लिए चाहिये नीतीश कुमार को विशेष राज्य!

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विष्णुकांत मिश्र
24 नवंबर 2023

Patna : अपनी ही सरकारों से छले तबकों के बीच चर्चा होने लगी है, सवाल उठने लगे हैं कि बिहार में 33 साल से पिछड़ा वर्ग (Backward Class) का शासन है. हालात बदलने के लिए 33 वर्ष कम नहीं होते. गौर करने वाली बात यह कि बिहार देश का ऐसा राज्य है जहां लंबे समय तक पिछड़ा वर्ग का ही शासन रहा है. वर्तमान में भी है. तब भी पिछड़ों-दलितों का विकास अवरुद्ध है. आखिर, क्यों? ‘अपनी सरकार’ से ‘खैरात’ के अलावा इन वर्गों को क्या मिला? यह तल्ख सच्चाई है कि जुल्म की चक्की में पिस रहे लोगों के शोषण-उत्पीड़न में कमी नहीं आयी है. बदलाव इतना भर आया है कि शोषकोें-उत्पीड़कों का सामाजिक समूह बदल गया है. ‘सामाजिक न्याय’ के दौर में जातीय उन्माद पैदा हुआ. सामाजिक-राजनीतिक जीवन में जातिवाद (Casteism) पहले भी जगह बनाये हुए था. उस कालखंड में वर्चस्व ऊंची जातियों का था. ‘सामाजिक न्याय’ के प्रतिफलन के रूप में वह पिछड़े वर्ग की दो दबंग जातियों का हो गया.

कहीं कुछ नहीं हुआ
जहां तक विकास की बात है तो औद्योगिक विकास (Industrial Development) नहीं हो रहा है. पलायन की रफ्तार निरंतर बढ़ रही है. शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था चौपट है. थोड़ी-बहुत चमक सड़कों के मामले में दिखती है. इसके अलावा कहीं कुछ नहीं. ‘सामाजिक न्याय’ के दायरे के ही योग्य और सक्षम-समर्थ लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा विकास का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता था. लेकिन, राजनीतिक स्वार्थ में ऐसा नहीं किया गया. ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌प्रशासन में ऐसे लोग हाशिये पर रहे. अयोग्य चांदी काटते रहे. शासन की इस अकर्मण्यता और असमर्थता पर सवाल नहीं खड़ा हो, गाहे – बगाहे विशेष राज्य (Special State) जैसे अर्थहीन मुद्दे में लोगों को उलझा दिया जा रहा है. यह कहने की बात भर नहीं है, उस तबके के लोग भी इस तथ्य को समझ रहे हैं.

सबसे गरीब राज्य
विकास और बदहाली से संबंधित आधिकारिक आंकड़ों की बात करें, तो नीति आयोग (Niti Aayog) की 2021 की बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट बताती है कि बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है. इस राज्य की 51.91 प्रतिशत आबादी गरीब है. 51.9 प्रतिशत लोग कुपोषण के शिकार हैं. स्वास्थ्य (Health) के मामले में भी स्थिति काफी चिंताजनक है. 2019-20 के लिए नीति आयोग ने राज्य स्वास्थ्य सूचकांक का चौथा संस्करण जारी किया था. उसमें 19 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 18वें पायदान पर है. शिक्षा (Education) के मामले में भी यह राज्य काफी पिछड़ा हुआ है. विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में शिक्षकों की घोर कमी है. न तो समय से कक्षाएं चलती हैं और न परीक्षाएं होती हैं. विद्यालयी शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक के दूसरे संस्करण के बड़े राज्यों की सूची में बिहार 19वें पायदान पर है.


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14 प्रतिशत पलायन बिहार से
शिक्षा मंत्रालय की 2020-21 की परफार्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स में बिहार 773 अंकों के साथ 27वें पायदान पर है. 2022 में एनआईआरएफ की रैकिंग में टॉप एक सौ संस्थानों में इस राज्य का एक भी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय नहीं है. इन्हीं वजहों से बिहार के लोग पलायन (Getaway) करते हैं. 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश के 14 प्रतिशत पलायन बिहार (Bihar) से संबंध रखते हैं. भारतीय जनसंख्या अध्ययन संस्थान के एक शोध के मुताबिक बिहार की आधी जनसंख्या का पलायन से सीधा जुड़ाव है. वैसे भी रोजगार की तलाश में पलायन लंबे समय से बिहार के लोगों की मजबूरी रही है. इन तमाम मोर्चों पर विफल रहे मायावी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को बिहार के तेज आर्थिक विकास के लिए नहीं , किश्तों में ‘खैरात’ बांटने के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहिए. खुद सोचिए, ऐसी तुच्छ सोच किसी स्वस्थ मानसिकता की हो सकती है क्या?

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