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ऐसा जोखिम शायद ही उठायेंगे लालू प्रसाद

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संजय वर्मा
24 नवम्बर 2023

Patna : बिहार की अभी की राजनीति के ‘कृष्ण बनाम कंस’ के आभासी युद्ध से झलकती यादवी जनाधार में टूट की आशंका से उबरने के लिए नित्यानंद राय को लक्षित कर लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने एक बड़ा बयान दिया. केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Rai) इस युद्ध में एक पक्ष के ‘सेनापति’ हैं. यादव समाज से आते हैं. उजियारपुर से भाजपा के सांसद हैं. लगातार दो बार निर्वाचित हुए हैं. गोवर्द्धन पूजा के दिन एक कार्यक्रम में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा कि नित्यानंद राय खूब कूद रहे हैं. अपने बड़े पुत्र तेजप्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) को उजियारपुर में उतार देंगे तो वह चारो खाने चित हो जायेंगे. लालू प्रसाद का बयान भाजपा के पटना में आयोजित ‘यादव जुटान’ के संदर्भ में आया.

यही गया संदेश
यादव जुटान में परिवारवाद (familism) को लेकर भाजपा के यादव नेताओं- नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव, नवलकिशोर यादव आदि ने लालू प्रसाद को खूब कोसा. नित्यानंद राय के बारे में लालू प्रसाद ने ऐसा मजाक में कहा या इसमें गंभीरता भी थी, यह एक अलग विषय है. उनके बयान से लोगों में संदेश यही गया कि उजियारपुर में उनके ही परिवार का कोई सदस्य नित्यानंद राय को पछाड़ जीत हासिल कर सकता है. अश्वमेघ देवी, आलोक मेहता, विजय कुमार चौधरी आदि कोई नहीं. लालू प्रसाद बोलने को तो ऐसा बोल गये, लेकिन पूर्व के संसदीय चुनावों में इस परिवार के उम्मीदवारों के हस्र पर नजर डालें तो इसे उनका दंभ ही कहा जा सकता है, और कुछ नहीं.

दोनों में से कोई मुफीद नहीं
बहरहाल,तेजप्रताप यादव को चुनाव में उतारने की बातों में दम हो या नहीं, चर्चा लालू परिवार की बहू राजश्री यादव को चुनाव लड़ाने की खूब हो रही है. पर, यादवों के गढ़ की पहचान रखने वाले पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र (Patliputra Parliamentary Constituency) में पहले लालू प्रसाद और बाद के दो चुनावों में उनकी बड़ी पुत्री मीसा भारती की हार को दृष्टिगत रख 2024 के संसदीय चुनाव में राजश्री यादव को उतारने पर निर्णय शायद ही हो पायेगा. तब भी सारण और उजियारपुर से उनकी उम्मीदवारी की चर्चा होती रहती है. जबकि उनके लिए मुफीद दोनों में से कोई क्षेत्र नहीं है.

पटना में आयोजित भाजपा का ‘यादव जुटान’.

छपरा से जुड़ा अपशकुन
यह सच है कि सारण संसदीय क्षेत्र लालू प्रसाद की कर्मभूमि रही है. उनके संसदीय जीवन की शुरूआत इसी क्षेत्र से हुई थी. 1977 में वह पहली बार छपरा से सांसद निर्वाचित हुए थे. बाद में भी एकाध बार विजयी हुए. लेकिन, इस परिवार के लिए इस क्षेत्र में राबड़ी देवी (Rabri Devi) की हार के रूप में एक अपशकुन जुड़ा है, जो राजश्री यादव के वहां से चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर अर्द्धविराम लगा देता है. 2019 के चुनाव में इसी क्षेत्र में हुई लालू प्रसाद के समधी पूर्व मंत्री डा.चन्द्रिका राय की बड़ी हार से भी इसको बल मिलता है.

तब भी हार गये
सारण में राजद और लालू प्रसाद की मजबूत पकड़ तो है ही, डा. चन्द्रिका राय का भी अपना पुश्तैनी जनाधार है. इसके बावजूद वह मुंह की खा गये, तो निश्चय ही कोई बड़ी वजह रही होगी. विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के निर्वाचन क्षेत्रों में राजद के खिलाफ अन्य मुद्दे तो होते ही हैं, परिवारवाद के विरोध के रूप में भी मतों का धु्रवीकरण हो जाया करता है. राजश्री यादव (Rajshree Yadav) चुनाव मैदान में उतरती हैं तो यह खतरा और अधिक बढ़ जा सकता है. विश्लेषकों की मानें, तो परिवारवाद के आरोपों से बिंधे लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव इससे बचना चाहेंगे. राजश्री यादव भी शायद ही चुनाव लड़ना चाहेंगी.


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खतरा बराबर का
इसके बाद भी दबाव बढ़ा या पार्टी को जरूरत महसूस हुई तो खतरा बराबर का रहने पर भी सारण (Saran) की तुलना में उजियारपुर (Ujiarpur) संसदीय क्षेत्र राजश्री यादव के लिए ज्यादा उपयुक्त होगा. हार-जीत तो मतदाताओं के हाथ में रहती है, कुछ भाग्य पर भी निर्भर करता है. राजश्री यादव की उम्मीदवारी से मुकाबला तो दिलचस्प हो ही जायेगा, नित्यानंद राय को पहली बार कड़ी चुनौती भी मिल सकती है. राजश्री यादव के लिए सारण संसदीय क्षेत्र को इस कारण भी खतरा से खाली नहीं माना जा रहा है कि तलाक (Divorce) के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रही लालू प्रसाद की बड़ी बहू और तेजप्रताप यादव की पत्नी ऐश्वर्या राय इसी क्षेत्र के एक प्रभावशाली परिवार से आती हैं.

मुद्दा तो बन ही जायेगा
ऐश्वर्या राय पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय की पौत्री और पूर्व मंत्री डा. चन्द्रिका राय की पुत्री हैं. वैसे, राजश्री यादव के मैदान में उतरने से यादव मतों पर ऐश्वर्या राय का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, पर विपक्ष तलाक प्रकरण को चुनाव का मुद्दा बना परेशानी तो पैदा कर ही दे सकता है. यहां जानने वाली बात है कि डा. चन्द्रिका राय अभी जदयू में हैं. जदयू महागठबंधन का हिस्सा है. ऐसे में संसदीय चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी, इसे आसानी से समझा जा सकता है.

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