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शराबबंदी : मजबूत हुई माफियागिरी !

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विष्णुकांत मिश्र
30 नवम्बर 2023

Patna : सामान्य समझ है कि शासन-प्रशासन के संबद्ध धनलोलुपों के संरक्षण में आकार बढ़ाती अंदर की माफियागिरी और राज्य की खुली सीमाएं लाख प्रयत्नों के बावजूद शराबबंदी सफल नहीं होने देगी. हुआ वैसा ही, पाताल गंगा की तरह शराब का दरिया बह रहा है. धंधेबाजों की बात अलग, शराबबंदी (Liquor ban) को सफल बनाने की जिम्मेवारी संभाल रहा प्रायः हर तबका, हर शख्स बेखौफ-बेहिचक इसमें हाथ धो रहा है. हैरानी इस बात पर कि साधारण-सी यह बात शासन की समझ में नहीं आयी. आयी भी होगी तो सत्ता के गुरुर में ‘तालिबानी फरमान’ जारी करने से पहले इसके आशंकित अंजाम पर गौर नहीं किया गया.

राजस्व का भारी नुकसान
लगभग सात हजार करोड़ रुपये के सालाना राजस्व नुकसान, याचित-आकांक्षित पूंजी निवेश की संभावनाओं पर विराम एवं शराब व्यवसाय पर प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से आश्रित पांच लाख से अधिक लोगों की रोजी-रोटी को दांव पर लगा बिहार को ‘दारू मुक्त’ घोषित कर दिया गया. निर्णय (Decision) को साहसिक मान उसकी सराहना की गयी. इस उम्मीद में कि शराबबंदी के रूप में ‘सामाजिक परिवर्तन’ की इस पहल से नशे की लत में भटकी पीढ़ी (Lost Generation) को बेहतरी की राह मिलेगी, टूटी-फूटी झोपड़ियों में शराब जनित दरिद्रता का अट्टहास नहीं गूंजेगा, निम्न एवं मध्यवर्गीय परिवार रोज-रोज के कलह (Discord) से उबर जायेंगे, ऐसे परिवारों की महिलाओं को सुकून मिलेगा. नयी पीढ़ी का भविष्य संवरेगा.

नरेन्द्र मोदी ने सराहा
बहुसंख्य आंखों में खिली इसी चमक के चलते सबने शराबबंदी का समर्थन किया, साथ दिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने भी सराहा-‘नशा मुक्ति का जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने अभियान चलाया है, आनेवाली पीढ़ियों को बचाने के लिए उन्होंने जो बीड़ा उठाया है, मैं उनका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं.’ लेकिन, अब सब छलावा साबित होता नजर आ रहा है. शराबबंदी अप्रैल 2016 में लागू हुई. नीतीश कुमार और उनके सलाहकार-रणनीतिकार इसको सफल बताते हैं. अन्य को कहीं कोई सफलता नहीं दिखती.

शराब बंदी के लिए मानव शृंखला.

रंग बदलती राजनीति
जिस तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के कंधे पर नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा मचल रही है, उन्हें भी अगस्त 2022 से पहले विफलता ही विफलता दिखती थी. और कहीं नहीं, भरी विधानसभा में वह इस विफलता पर सरकार की बखिया उघेड़ते थे. चिल्ला-चिल्लाकर नीतीश कुमार को सबसे बड़ा शराब माफिया बताते थे. राजद के विधान पार्षद डा. सुनील कुमार सिंह ने सदन में ही कहा था कि और जगहों की बात अलग, मुख्यमंत्री आवास के निकट भी शराब की उपलब्धता है. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने भी शराबबंदी पर कई बार सवाल उठाये थे. इसे पूरी तरह विफल बताया था.


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बदल गया नजरिया
लेकिन, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पलटीमार प्रवृत्ति आधारित सत्ता में आते ही उन सबका नजरिया बदल गया. सुर बदल गये. संवेदनाएं भी मर-सूख गयीं. ऐसी कि लालू प्रसाद की कर्मभूमि सारण में हुई जहरीली शराब (Poisonous Liquor) से दर्जनाधिक मौतों पर भी सहानुभूति (Sympathy) के शब्द नहीं निकले. हद यह कि इन मौतों की तुलना दूसरे राज्यों में हुई मौतों से कर तेजस्वी प्रसाद यादव ने पीड़ित-प्रभावित परिवार के जख्म को और कुरेद ही दिया. यही है अभी की राजनीति का चरित्र! कैसा चरित्र यह बताने की शायद जरूरत नहीं. एक लोकोक्ति है ‘सावन के अंधे को सबकुछ हरा-हरा ही दिखता है.’

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