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नजर सांसद पर पड़ी और वह उखड़ गये!

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विशेष प्रतिनिधि
06 दिसम्बर‌ 2023

Patna : केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) अपने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से थोड़ा अलग किस्म के हैं. ऐसा राजनीति महसूस करती है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का सूत्र वाक्य है-न हम किसी को फंसाते हैं, न किसी को बचाते हैं. अमित शाह का सूत्र वाक्य ठीक उलटा है- राजनीति में हम फंसाते भी हैं और बचाते भी हैं. यह अलग बात है कि बचाते कम, फंसाते अधिक हैं. बात थोड़ी पुरानी है, पर है बहुत रोचक. उत्तर बिहार की पिछली यात्रा के समय अमित शाह ने मिथिलांचल के एक पार्टी सांसद को बुरी तरह फंसा दिया. सांसद महोदय मिथिला के हैं. पहचान यही है कि गाड़ी में पाग और मिथिला पेंटिंग से रंगी चादर बोरा में भर कर रखते हैं. मखाना की माला भी. जहां कोई पात्र मिल जाता है, झट से माथे पर पाग पहना कर कंधे पर चादर रख देते हैं. प्रभावशाली (Impressive) पात्र को मखाना की माला भी पहना देते हैं. कई लोग तो इतनी बार इनसे पाग,चादर और मखाना की माला ग्रहण कर चुके हैं कि नजर मिलते ही रास्ता बदल देते हैं.

नजर पड़ी और उखड़ गये
उस दिन अमित शाह सामने पड़े तो पाग और चादर से स्वागत कर दिया. हां, सावधानी यह बरती कि उनके पांव नहीं धरे. पांव धरने वाली उनकी तस्वीर पूरे क्षेत्र में वायरल हो गयी थी. सो, उन्होंने तय किया कि बंद कमरे में भले ही पांव कई – कई बार धर लें, कैमरे के सामने नहीं धरेंगे. यह पांव न धरने का खराब असर था या कुछ और नजर जैसे ही सांसद पर पड़ी, वह उखड़ गये. कहा कि दरभंगा एम्स (Darbhanga AIIMS) का मामला क्यों उलझा कर रखे हुए हैं. सांसद ने गड़बड़ जमीन का मामला उठाया. अमित शाह ने झिड़की दे दी-इतनी समझ नहीं है कि एम्स गडढे में भी बनेगा तो नाम भारत सरकार का ही होगा. सांसद ने स्वीकारात्मक मुद्रा में सिर हिला दिया. अमित शाह ने कहा कि दरभंगा एम्स के लिए कुछ करो. सांसद की जिज्ञासा (Curiosity) हुई कि क्या करें? उनके मुंह से कुछ निकले इससे पहले आदेश मिल गया कि धरना दो. अनशन करो. सांसद को बात समझ में आ गयी. कह दिया कि धरना से भी कठिन अनुष्ठान (Ritual) करेंगे. अनशन कर देंगे.


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गनीमत रही कि…
अमित शाह उनके प्रण को सुनने के लिए खड़े नहीं थे. वे दूसरे नेताओं से मुखातिब हो गये. सांसद ने ऐलान कर दिया कि अमित शाह ने अनशन के लिए कहा है, तो अनशन करके ही रहेंगे. अगली चिंता यह हुई कि अनशन पर बैठ गये और कोई अनशन तुड़वाने नहीं आया तब क्या करेंगे? कहीं भूख से कोई दूसरी ब्याधि हो गयी तो परेशानी होगी. चुनाव सिर पर है. इधर-उधर के नेताओं की बात रहती तो टाल भी देते. अमित शाह का दिया वचन खाली हुआ तो टिकट भी कट सकता है. बेचारे अनशन पर बैठ गये. गनीमत रही कि तीन दिन बाद ही अनशन खत्म करने का अवसर मिल गया और जान बच गयी.

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