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उम्मीदवारी पर सवाल, महागठबंधन में बवाल!

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मदनमोहन ठाकुर
14 दिसम्बर 2023

Sitamarhi : आधिकारिक घोषणा या किसी ठोस आश्वासन का अभी सार्वजनिक खुलासा नहीं हुआ है, विधान परिषद के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) सीतामढ़ी संसदीय क्षेत्र से खुद को जदयू (JDU) का उम्मीदवार मान जन- सम्पर्क अभियान चला रहे हैं. उनके समर्थक इसे खूब प्रचारित कर रहे हैं. उनके हिसाब से इसमें कहीं कुछ गलत नहीं है. पर, इस आक्रामक अंदाज में दावेदारी महागठबंधन के दूसरे दावेदारों को रास नहीं आ रही है. उनकी ऐसी सक्रियता पर वे सवाल उठा रहे हैं. ऐसा स्वाभाविक भी है. महागठबंधन के बड़े घटक राजद (RJD) में कई दावेदार हैं. विधायक मुकेश कुमार यादव, शैलेन्द्र कुमार उर्फ कबू खिरहर‌ आदि को तो उतना नहीं, पूर्व सांसद अर्जुन राय को देवेश चन्द्र ठाकुर की इस रूप में सक्रियता कुछ अधिक खल रही है. इसका सार्वजनिक इजहार भी वह कर रहे हैं.

सिमट गयी स्वीकार्यता
अर्जुन राय 2019 की‌ तरह राजद से अपनी उम्मीदवारी पक्की मान जन संवाद कार्यक्रम चला रहे हैं. गांव – गांव घूम रहे हैं. देवेश चन्द्र ठाकुर का नाम लिये बगैर अप्रत्यक्ष रूप से उनके चुनाव संबंधित बयान एवं अभियान पर सार्वजनिक कटाक्ष (Public Sarcasm) कर रहे हैं. लेकिन, उनके लिए परेशानी की बात यह है कि खुद के यादव समाज में ही उनकी स्वीकार्यता लगभग सिमट गयी है. ऐसी चर्चा है कि लगातार तीन चुनावों में हार के मद्देनजर यह समाज उनको राजनीतिक दृष्टिकोण (Political Views) से काफी कमजोर मान रहा है. समाज के अधिसंख्य लोगों का मानना है कि अर्जुन राय की तुलना में शैलेन्द्र कुमार उर्फ कबू खिरहर‌ कहीं अधिक सक्षम- समर्थ हैं. यहां समझने वाली बात है कि अर्जुन राय को जब स्वजातीय समाज में स्वीकार्यता नहीं के बराबर है तो फिर दूसरे समाज का समर्थन कैसे मिलेगा.

हाशिये पर क्यों रखा
देवेश चन्द्र ठाकुर की संभावित उम्मीदवारी पर महागठबंधन के अन्य दावेदार भी सवाल खड़ा कर रहे हैं, पर बंद कमरे में. अर्जुन राय (Arjun Rai) की तरह खुले रूप में नहीं. वैसे दावेदारों में पूर्व सांसद रामकुमार शर्मा भी हैं, जो अपने लोगों के बीच देवेश चन्द्र ठाकुर के दावे का यह कह मजाक उड़ा रहे हैं कि ऐसा आश्वासन तो‌ उन्हें (रामकुमार शर्मा) भी मिला हुआ है, वह कहां ढोल पीट रहे हैं. कहने का तात्पर्य यह कि देवेश चन्द्र ठाकुर की सक्रियता पर महागठबंधन की राजनीति में बवाल मचा हुआ है. वैसे, रामकुमार शर्मा (Ram Kumar Sharma) की काबिलियत पर अंगुली उठाने वाले भी कम नहीं हैं. ऐसे लोगों का कहना है कि जब वह इतने सक्षम हैं तो 2019 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) में जदयू ने उन्हें महत्व क्यों नहीं दिया? हाशिये पर क्यों छोड़ दिया?

कर रहे हैं तैयारी
विधान पार्षद रामेश्वर महतो जदयू के दावेदार ही नहीं हैं, उम्मीदवारी को लेकर काफी आशान्वित भी हैं. चुपचाप चुनाव की प्रारंभिक तैयारी में जुटे हैं. सबसे पहले वह अपने आवासीय परिसर को उस लायक़ बना रहे हैं. सीतामढ़ी – पुपरी पथ में भासर चौक के निकट उनका मूल निवास है. इसी आवासीय परिसर को चुनाव अभियान चलाने लायक रूप दे रहे हैं. छोटी-मोटी सभा के लिए जगह बना रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने 2018 में रामेश्वर महतो को मनोनयन कोटा से विधान पार्षद बनवाया था. 2024 में उसका कार्यकाल समाप्त हो जायेगा. उसी साल लोकसभा का चुनाव होगा. विधान पार्षद का दूसरा कार्यकाल मिलने की संभावना नहीं रहने के मद्देनजर उन्होंने संसदीय चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा से नीतीश कुमार को अवगत करा रखा है.


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इन्हें भी मिला है‌ आश्वासन‌
रामेश्वर महतो कुछ समय पूर्व जदयू के कुछ नेताओं के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के साथ जाने वाले थे. नीतीश कुमार द्वारा बेहतरी का भरोसा दिये जाने पर जदयू में बने रहे. नाराजगी दूर करने के दौरान उन्हें लोकसभा के चुनाव में जदयू की उम्मीदवारी का आश्वासन‌ भी मिला था. नीतीश कुमार के प्रति समर्पण दुहराते हुए रामेश्वर महतो (Rameshwar Mahato) ने कहा कि उन्होंने उन्हें सड़क से सदन तक पहुंचाया. अपने राजनीतिक जीवन में उनसे अलग होकर कभी किसी दूसरे राजनीतिक दल या राजनेता के साथ नहीं जायेंगे. विधान परिषद (Legislative Assembly) के सभापति देवेश चन्द्र ठाकुर‌ की उम्मीदवारी की चर्चा पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष करते हुए रामेश्वर महतो कहते हैं कि समय से पूर्व अपने को उम्मीदवार घोषित कर लेना स्वघोषित उम्मीदवार की श्रेणी में आता है. आधिकारिक घोषणा से पहले‌ वह‌ क्षेत्र में कभी यह कहने नहीं जायेंगे कि उनकी जदयू की उम्मीदवारी‌ तय है. जदयू के अन्य दावेदार (Challenger) भी इस मुद्दे पर ऐसी ही कुछ बातें कहते और सुने जा रहे हैं.

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