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रामवृक्ष बेनीपुरी : कारागार में भी लिखते रहे लगातार

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बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह और पं.. जनार्दन प्रसाद झा द्विज की साहित्यिक विरासत की उपेक्षा को उजागर करने के बाद अब ‘कलम के जादूगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी की स्मृति के साथ समाज और सरकार के स्तर से जो व्यवहार हो रहा है उस पर दृष्टि डाली जा रही है. संबंधित किस्तवार आलेख की यह तीसरी कड़ी है.


अश्विनी कुमार आलोक
04 जनवरी 2023

रामवृक्ष बेनीपुरी कुल चौदह बार जेल गये. लगभग साठे नौ वर्षों तक वे जेल में रहे. इस अवधि में भी वह लगातार लिखते रहे. उनकी अधिकतर प्रसिद्ध रचनाएं कारावास (Jail) में ही लिखी गयी थीं, जिनमें ‘अंबपाली’, ‘पतितों के देश में’ आदि प्रमुख हैं. मौलिक लेखन के अतिरिक्त उन्होंने मिखाइल सोलोखे नामक रुसी क्रांतिकारी के उपन्यास ‘पिखिए दोन’ का संक्षिप्त हिन्दी अनुवाद ‘दोन के किनारे’ नाम से किया. उन्होंने रवीन्द्रनाथ ठाकुर (Rabindranath Thakur) की बहुत-सी कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया, जो ‘रवीन्द्र भारती’ नाम से प्रकाशित है. उन्होंने अंगरेजी के कई रोमांटिक कवि वर्डस्नर्थ, शेली, वायरन की कविताओं का हिन्दी अनुवाद किया, जो ‘ट्युलिप्स’ के नाम से प्रकाशित है. जोश मलीहाबादी नामक उर्दू के प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि की कुछ कविताओं का हिन्दी अनुवाद रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri) ने किया था, उन्हें भी ग्रंथावली में संकलित कर लिया गया है.

साहित्य से हटकर
साहित्य से अलग हटकर उन्होंने इतिहास, दर्शन और संस्कृति के क्षेत्र में भी कई महत्वपूर्ण लेखन किये थे, जिनमें प्रमुख हैं ‘जयप्रकाश’, ‘जयप्रकाश की विचारधारा’, ‘कार्ल मार्क्स’, ‘लाल चीन’, ‘लाल रूस’, ‘रूस की क्रांति’, ‘रोजा लग्जम्बर्ग’ (फ्रांस की क्रांतिकारी महिला, भारत की लक्ष्मीबाई की तरह प्रसिद्ध). रामवृक्ष बेनीपुरी अनेक दूसरे देशों की यात्राएं कीं. उन यात्राओं से संबंधित वृत्तांत ‘उड़ते चलो, उड़ते चलो’, ‘पैरों में पंख बांधकर’ उपलब्ध हैं, जबकि ‘पेरिस नहीं भूलती’ की पांडुलिपि (Manuscript) नहीं बचायी जा सकी. कहते हैं कि इसे पटना (Patna) के ज्ञानदा प्रकाशन ने छापा था. बेनीपुरी जी के जेल चले जाने के बाद संभवतः वे किताब नष्ट हो गयी.

वृत्तचित्र भी बना
उन्होंने अन्य देशों के विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों की भी यात्राएं कीं, जो ‘अत्र-तत्र’ के नाम से प्रकाशित हुई. ये पुस्तक तत्कालीन बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी पाठ्यक्रम में सम्मिलित थी. यह बात 1975-77 की होगी. भारत सरकार के फिल्म प्रभाग द्वारा वृत्त चित्र निर्माण उनके जन्मशताब्दी वर्ष के अवसर पर 1999 में किया गया था. इस वृत्त चित्र (Documentary Film) के निर्माण में लेखकीय और परामर्शदातृ की भूमिका में डा. राजेश्वर प्रसाद सिंह एवं रामवृक्ष बेनीपुरी के छोटे बेटे डा. महेन्द्र कुमार बेनीपुरी का योगदान महत्वपूर्ण रहा.

जेलों में फिल्मांकन
इस सिलसिले में हजारीबाग सेंट्रल जेल, बांकीपुर जेल, गया, छपरा, मुजफ्फरपुर आदि जेलों का फिल्मांकन किया गया था. इन्हीं जेलों में रामवृक्ष बेनीपुरी के जेल जीवन का बहुलांश बीता था. हजारीबाग सेंट्रल जेल से जयप्रकाश नारायण, शालिग्राम सिंह, गुलाबी सोनार, सूरजनारायण सिंह, रामनंदन मिश्र, योगेन्द्र शुक्ल जैसे छह स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) बेनीपुरी जी के सहयोग से फरार होने में सफल रहे थे. 1942 की क्रांति के पूर्व ही स्वतंत्रता आन्दोलन को कमजोर करने की नीयत से ब्रिटिश हुकूमत (British Rule) ने प्रमुख समाजवादी नेताओं को अलग-अलग इन जेलों में बंद कर दिया था. इनमें समवृक्ष बेनीपुरी और उनके सहयोगी हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद किये गये थे.


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दिवाली की रात…
दिवाली की रात दीपमालाओं को सजाकर भजन-कीर्तन एवं नाटक कर सेनानियों को बाहर निकालने की योजना बनायी गयी थी. उस योजना को रामवृक्ष बेनीपुरी ने सफल किया था. इन दिनों वह जेल जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारागृह के नाम से जानी जाती है. इस वृत्तांत को उन्होंने ‘जंजीरें और दीवारें’, ‘मुझे याद है’ जैसी संस्मरण-पुस्तकों में समाहित किया. इसी समय उन्होंने प्रसिद्ध रेखाचित्र रचना ‘माटी की मूरतें’ भी रची थी. इसे देश की आजादी के बाद आठ प्रमुख भाषाओं में अनुवादित किया गया था. यह कार्य संविधान (Constitution) की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित भाषाओं में किया गया था. इस कार्य में सरकार की सहृदयता दिखी. रामवृक्ष बेनीपुरी के जन्म शताब्दी वर्ष में ही भारत सरकार के संचार मंत्रालय ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी कर दिया.

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