पूर्णिया संसदीय क्षेत्र : आसान नहीं होगा उन्हें हाशिये पर डालना
अशोक कुमार
28 जनवरी 2024
Purnia : पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में 2024 के चुनाव में क्या होगा? महागठबंधन में बिना किचकिच सीटों का बंटवारा हो जायेगा? हो भी जायेगा, सीटिंग गेटिंग पर सहमति बन भी जायेगी, तो क्या जदयू का कब्जा कायम रह पायेगा या भाजपा का कुम्हलाया कमल फिर से खिल उठेगा? या इन सबसे अलग जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव का ‘राज’ दोबारा स्थापित हो जायेगा? सीमांचल से लेकर राजधानी पटना (Patna) तक की राजनीति (Politics) फिलहाल इन्हीं सवालों को सुलझाने में व्यस्त है. इस संसदीय क्षेत्र में महागठबंधन में स्थानीय स्तर पर क्या सब हो रहा है और आगे क्या सब हो सकता है, पहले इस पर प्रकाश डालते हैं.
खाली है राजद का हाथ
कोसी और महानंदा अंचलों में खगड़िया से लेकर किशनगंज तक सात संसदीय क्षेत्र हैं. उनमें चार- मधेपुरा, सुपौल, कटिहार और पूर्णिया पर जदयू काबिज है. खगड़िया पर रालोजपा, अररिया पर भाजपा और किशनगंज पर कांग्रेस का कब्जा है. छह दलों के महागठबंधन के सबसे बड़े घटक राजद (RJD) का हाथ खाली है. 2024 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) में सीटिंग गेटिंग का फार्मूला लागू हुआ तो राजद के हिस्से में भाजपा और रालोजपा के कब्जे वाली अररिया और खगड़िया की सीटें जा सकती हैं. इसलिए भी कि इन पर दूसरा कोई घटक दल दावा नहीं जतायेगा. लेकिन, सीटिंग गेटिंग पर सहमति बन पायेगी, इसकी संभावना (Possibility) कम है.
कटिहार पर दावा
जदयू (JDU) महागठबंधन का हिस्सा रहा और सीटिंग गेटिंग पर सहमति बन गयी तब उसे कम से कम दो सीटिंग सीटों का नुकसान उठाना पड़ जायेग. मतलब कि चुनाव से पहले ही दो सीटें उसकी मुट्ठी से निकल जायेगी. आसार ऐसे दिख रहे हैं कि महागठबंधन में कांग्रेस किशनगंज के अलावा कटिहार पर भी दावा जता सकती है. आधार यह कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तारिक अनवर लगभग दो दशक से उस क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. कभी जीत तो कभी हार हुई है. मुस्लिम हैं, इस वजह से भी उनकी दावेदारी को नजरंदाज करना महागठबंधन के लिए आसान नहीं होगा. कांग्रेस (Congress) ने इस सीट को अपनी प्राथमिकता सूची में शामिल कर रखा है. ऐसे में जदयू को उसके लिए यह सीट छोड़नी पड़ जा सकती है.
राजद में जायेंगे कैसर!
इसी तरह यादव समाज में प्रभुत्व बनाये रखने के ख्याल से राजद मधेपुरा को अपने हिस्से में रखना चाहेगा. हालांकि, वहां उसका कोई दमदार चेहरा उभर नहीं रहा है. किसी नये चेहरे पर वह दांव खेल सकता है. खगड़िया से चौधरी महबूब अली कैसर अभी रालोजपा के सांसद हैं. उनके पुत्र युसूफ सलाहउद्दीन उसी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र से राजद के विधायक हैं. ऐसी चर्चा है कि चौधरी महबूब अली कैसर की भी राजद नेतृत्व से अप्रत्यक्ष (Indirect) निकटता बनी हुई है. इसको दृष्टिगत रख लोकसभा चुनाव में उन्हें खगड़िया से राजद की उम्मीदवारी मिलने की संभावना जतायी जा रही है. हालांकि, अभी वह रालोजपा (RLJP) में बने हुए हैं.
जदयू नहीं चाहेगा ऐसा
अररिया राजद के लिए खुला क्षेत्र है. इन सबके मद्देनजर खगड़िया, मधेपुरा और अररिया राजद, किशनगंज और कटिहार कांग्रेस और सुपौल एवं पूर्णिया जदयू के हिस्से में रह सकते हैं. हालांकि, इसमें थोड़ा परिवर्तन की भी गुंजाइश बनी हुई है. राजद के बराबर हिस्सा के लिए जदयू कांग्रेस के दावे को खारिज कर कटिहार में पांव जमाये रख सकता है. सुपौल और पूर्णिया को अपने हिस्से में रखने की उसकी विवशता है. कुशवाहा और अत्यंत पिछड़ा समाज जदयू समर्थक सामाजिक समूह हैं. ऐसा माना जाता है कि जनाधार में क्षरण के वर्तमान दौर में उन्हें निराशा में डाल वह खुद अपने पांव में कुल्हाड़ी नहीं मारना चाहेगा.
तब भी मिलेगी उम्मीदवारी
संतोष कुशवाहा (Santosh Kushwaha) पूर्णिया से जदयू के सांसद हैं. लगातार दो चुनावों में उनकी जीत हुई है. हालांकि, उनके खिलाफ मतदाताओं में गहरा असंतोष है. अधिकतर लोग उन्हें ‘किसी काम के लायक’ नहीं मानते हैं. इसके बावजूद जदयू में उनकी दावेदारी में दम है. उन्हें हाशिये पर डाल इस समाज की नाराजगी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कतई मोल नहीं लेना चाहेंगे. जदयू में और भी दावेदार हैं. खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री लेसी सिंह और पूर्व मंत्री बीमा भारती आदि. पर, महागठबंधन में यह सीट उसके कोटे में बनी रही तो उम्मीदवारी संतोष कुशवाहा को ही मिलेगी, यह करीब-करीब तय है. राजद के दावेदारों में कोई बड़ा चेहरा नहीं दिख रहा है.
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क्या करेंगे उदय सिंह?
कांग्रेस में पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह तो हैं, पर वह इस पार्टी की उम्मीदवारी की बाबत ज्यादा आशान्वित नहीं दिख रहे हैं. इस बात को वह भी अच्छी तरह समझ रहे हैं कि कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनी रही, तो किसी भी सूरत में पूर्णिया की सीट उसके कोटे में नहीं जायेगी. कांग्रेस को किशनगंज और कटिहार की सीटें मिल जाये, वही बहुत होगा. उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह तीन बार भाजपा के सांसद रहे हैं. भाजपा (BJP) से पुनर्जुड़ाव की कोशिश में तो हैं, पर वहां कोई घास डालने वाला नहीं है. इसलिए प्रख्यात चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के ‘जन सुराज’ से लगाव-जुड़ाव बनाये हुए हैं.
सहारा जनसुराज का
प्रत्यक्ष रूप में वह कांग्रेस के संभावित उम्मीदवार के तौर पर प्रारंभिक अभियान चला रहे हैं, पर जन सुराज की टीम उनके जनाधार को विस्तार देने में अपनी ऊर्जा खपा रही है. इससे स्पष्ट संकेत मिल रहा है कि महागठबंधन में कांग्रेस की उम्मीदवारी नहीं मिलने की स्थिति में भी उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह चुनाव मैदान में उतरेंगे. उम्मीदवार (Candidate) किस पार्टी के होंगे, यह वक्त बतायेगा. वैसे, ज्यादा संभावना जन सुराज के समर्थन से चुनाव लड़ने की बनती दिख रही है.
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