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वैशाली और राजद : रामा सिंह या लवली आनंद?

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प्रभुनाथ प्रसाद राजा
24 जनवरी 2024

Hajipur : राजद में दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की वैशाली संसदीय क्षेत्र की विरासत संभालने का अवसर किसे मिलेगा? उनके पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को या पूर्व सांसद लवली आनंद को या रामकिशोर सिंह उर्फ रामा सिंह को या फिर किसी गैर राजपूत नेता को? 13 सितम्बर 2020 को स्वर्ग सिधार गये डा. रघुवंश प्रसाद सिंह कोई साधारण नेता नहीं थे. जीवन के आखिरी दो चुनावों में उन्हें हार का सामना भले करना पड़ गया, पर राजनीति के वर्तमान दूषित दौर में भी वह सादगी, शुचिता और शालीनता के वास्तविक प्रतिमान थे. राज्य के दूसरे ‘अहंकारी नेता’ की तरह आकाशी नहीं. वह बड़े समाजवादी नेता थे, राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) के सच्चे अनुयायी थे. इस वजह से भी उनकी विरासत पर सम्पूर्ण राज्य की नजर है.

ऐसा शायद नहीं करेगा
सामान्य समझ है कि चुनावी राजनीति की अभी की परिपाटी के मुताबिक, डा. रघुवंश प्रसाद सिंह (Dr. Raghuvansh Prasad Singh) के परिवारवाद के पक्षधर नहीं रहने के बावजूद, उनकी विरासत संभालने का अवसर उनके पुत्र सत्यप्रकाश सिंह को मिलना चाहिये. सत्यप्रकाश सिंह फिलहाल जदयू (JDU) में हैं. जदयू भी उसी महागठबंधन का हिस्सा है जिसमें राजद है. उसने जैसे अपने दिवंगत सांसद बैद्यनाथ महतो की वाल्मीकिनगर संसदीय क्षेत्र की विरासत उनके पुत्र सुनील कुमार कुशवाहा को संभालने का अवसर उपलब्ध कराया था, वैसी ही पहल वैशाली (Vaishali) के मामले में करनी चाहिये. लेकिन, ऐसा वह शायद ही करेगा.

नजरें जमी हैं दोनों की
बात अब लवली आनंद और रामकिशोर सिंह उर्फ रामा सिंह की. पूर्व में दोनों इस क्षेत्र से एक-एक बार सांसद रहे हैं. अभी दोनों के दोनों ‘बेरोजगार’ हैं. दोनों का जुड़ाव राजद (RJD) से है. लवली आनंद के पुत्र चेतन आनंद शिवहर से इस पार्टी के विधायक हैं, तो रामकिशोर सिंह उर्फ रामा सिंह की पत्नी महनार से. इस कारण भी इनकी दावेदारी के अटकलों को मजबूती मिलती है. वैसे, समान रूप से दोनों की नजरें राजपूत बहुल शिवहर संसदीय क्षेत्र (Sheohar Parliamentary Constituency) पर भी जमी हुई है. शिवहर का राजनीतिक चरित्र कुछ भिन्न है. इससे अलग वैशाली संसदीय क्षेत्र का जो राजनीतिक संस्कार और सामाजिक आधार है उसके मद्देनजर 2024 के चुनाव में उम्मीदवारी के मामले में प्राथमिकता राजपूत समाज को मिलने की संभावना ही बलवती है.

सांसद बनने की लंबी चाहत
वैसे, राजद के संभावित उम्मीदवार के तौर पर लोग पूर्व मंत्री वृष्णि पटेल और मीनापुर के विधायक राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव के नाम की भी चर्चा करते हैं. वृष्णि पटेल (Vrishni Patel) की सांसद बनने की बहुत लंबी चाहत है. इस बार भी वह और उनके समर्थक उस चाहत का खुला इजहार कर रहे हैं. गौर करने वाली बात है कि समता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर वृष्णि पटेल पूर्व में दो बार किस्मत आजमा चुके हैं. 1996 और 1998 में. दोनों ही बार मुकाबला डा. रघुवंश प्रसाद सिंह से हुआ. वृष्णि पटेल को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा. जीत डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की हुई. उन्हीं दो चुनावों में ही नहीं, बाद के तीन और – 1999 , 2004 और 2009 में भी.

पहला अनुभव होगा
विधायक राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव को उम्मीदवारी मिलती है, तो संसदीय चुनाव लड़ने का यह उनका पहला अनुभव होगा. वैसे, उन्ही की बिरादरी के पूर्व विधायक शशि कुमार राय 1998 में जनता दल के और 1999 में निर्दलीय थाह लगा चुके थे. दोनों ही चुनावों में उन्हें लगभग बराबर संख्या में मत मिले थे. 1998 में 01 लाख 11 हजार 067 और1999 में 01 लाख 12 हजार 450 मत. राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव उम्मीदवार होते हैं, तो उन्हें क्या हासिल होगा, इससे अंदाज लगाया जा सकता है.

कहीं कोई वजूद नहीं
वैशाली संसदीय क्षेत्र 1977 में अस्तित्व में आया. इसकी जो भौगोलिक बनावट है उसमें नाम भले वैशाली है, पर वैशाली जिले का मात्र एक वैशाली विधानसभा क्षेत्र इसमें समाहित है. शेष पांच -पारू, साहेबगंज, बरुराज, कांटी और मीनापुर विधानसभा क्षेत्र मुजफ्फरपुर जिले के हैं. इन छह में तीन – पारू, साहेबगंज और बरुराज पर भाजपा काबिज है. दो – कांटी और मीनापुर पर राजद तथा जदयू एकमात्र वैशाली पर . सांसद रालोजपा की वीणा देवी (Veena Devi) हैं, पर इस रूप में इस पार्टी का कहीं कोई वजूद नहीं है.


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राजपूत बनाम भूमिहार
जाति की राजनीति की गहन जानकारी रखने वालों के मुताबिक वैशाली संसदीय क्षेत्र में राजपूत, भूमिहार और यादव समाज के मतदाताओं की बहुलता है. मुस्लिम और वैश्य मत भी प्रभावकारी संख्या में हैं. परिणाम के रुख को मोड़ने की हैसियत रखते हैं. सहनी, कुर्मी, कुशवाहा, दलित एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों के मत भी काफी मायने रखते हैं. इस संसदीय क्षेत्र का इतिहास बताता है कि एक – दो अपवादों को छोड़ मुख्य मुकाबला राजपूत और भूमिहार समाज के उम्मीदवारों के बीच ही होता रहा है. यह अलग बात है कि इधर के कुछ चुनावों में राजपूत समाज के उम्मीदवार (Candidate) आपस में टकराते रहे हैं.

चौंक गयी राजनीति
हालांकि, इस टकराव की शुरुआत 1994 के उपचुनाव में ही हो गयी थी. सामाजिक न्याय (Social Justice) की राजनीति के उस दौर में राजद उम्मीदवार के तौर पर किशोरी सिन्हा और तब की बिपीपा की उम्मीदवार के रूप में लवली आनंद टकरा गयी थीं. जीत लवली आनंद की हुई थी. बिहार (Bihar) में राजपूत समाज के सिरमौर समझे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंहा की पत्नी किशोरी सिन्हा इस क्षेत्र से लगातार दो चुनावों में निर्वाचित हुई थीं. 1980 और 1984 में. उपचुनाव में राजद उम्मीदवार के रूप में उनकी हार से न सिर्फ राजनीति चौंक गयी, बल्कि राज्य की सामाजिक न्याय की राजनीति (Politics) की दिशा भी बदल गयी.

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