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गड़बड़ गणित गठबंधन का : वहां भी पसरी है हिस्सेदारी की रार!

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संजय वर्मा
26 जनवरी 2024

Patna : हिस्सेदारी का बखेड़ा सिर्फ महागठबंधन में ही नहीं है. इस मामले में राजग के अंदरूनी हालात भी बहुत कुछ ऐसे ही बताये जा रहे हैं. 2019 में जदयू महागठबंधन में नहीं था. भाजपा के साथ राजग में था. राजग का तीसरा घटक लोजपा थी. बस इतना ही बड़ा कुनबा था. वर्तमान में जदयू महागठबंधन का हिस्सा है. जीतनराम मांझी के ‘हम’ और उपेन्द्र कुशवाहा के रालोजद का राजग से जुड़ाव है. 2019 में दोनों महागठबंधन में थे. आपसी वैमनस्यता के बावजूद विघटित लोजपा के दोनों धड़ों का ठांव राजग में ही है. इस तरह तीन दलों का राजग अब पांच दलों का हो गया है.

इस बार क्या होगा?
2019 में सीटों का बंटवारा 17ः 17: 06 के अनुपात में हुआ था. 17-17 भाजपा और जदयू के हिस्से में गया था. 06 लोजपा के हिस्से में. भाजपा और लोजपा की जीत सभी सीटों पर हुई थी. विवादास्पद छवि (Controversial Image) के एक उम्मीदवार को छोड़ जदयू के भी सभी निर्वाचित हुए थे. यानी कुल 40 में 39 पर राजग की जीत हुई थी. बंटवारे का फार्मूला इस बार क्या होगा, यह अभी अस्पष्ट है. यह कहा जाये कि महागठबंधन में असहज दिख रहे जदयू के संभावित ‘निर्णय’ की प्रत्याशा में इसे अटका कर रखा गया है, तो वह कोई अतिश्योक्ति (Exaggeration) नहीं होगी. जदयू का निर्णय भाजपा के अनुकूल होता है, तो फिर दोनों गठबंधनों का स्वरूप बदल जा सकता है.

बदल जायेंगे हालात
कुछ घटक दल इस डाल से उस डाल पर छलांग लगा ले सकते हैं. इसकी पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. लोजपा (रामविलास), रालोजद और ‘हम’ बदल रहे हालात पर गंभीर दिखने लगे हैं. जदयू की राजग में वापसी होती है, तो और के लिए तो नहीं, लोजपा (रामविलास) सुप्रीमो चिराग पासवान (Chirag Paswan) के लिए बहुत असहज स्थिति उत्पन्न हो जायेगी. क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. जदयू का निर्णय भाजपा को सुकून पहुंचाने जैसा हुआ तो हाशिये पर भविष्य संवार रहे जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और वीआईपी सुप्रीमो मुकेश सहनी के भाग्य जग जा सकते हैं. महागठबंधन का द्वार इनके लिए खुल जा सकता है.


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उतना आसान नहीं
जदयू (JDU) अपनी जगह बना रहा, तो राजग (NDA) में सीटों का बंटवारा उतना आसान नहीं होगा, जितना समझा जा रहा है. खासकर लोजपा के दोनों धड़ों को एक साथ साधना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा. 2019 में छह सीटों पर लोजपा की जीत हुई थी. उन छह सीटों पर दोनों धड़ों का दावा है. राजनीति की थोड़ी बहुत भी समझ रखने वाला आदमी कहेगा कि रामविलास पासवान की लोजपा का जनाधार मुकम्मल रूप में चिराग पासवान के नेतृत्व को समर्पित है.

हकीकत से वाकिफ है भाजपा
भाजपा (BJP) भी इस हकीकत से वाकिफ है. ऐसे में कमजोर जनाधार वाले पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) के लिए वह चिराग पासवान का साथ नहीं खोना चाहेगी. ज्यादा से ज्यादा पशुपति कुमार पारस के लिए एक सीट का जुगाड़ बैठा दे सकती है- समस्तीपुर की सीट. चिराग पासवान को यह भी मान्य नहीं हुआ तब राज्यसभा की सदस्यता दिला दे सकती है. इससे ज्यादा कुछ नहीं.

पेंच फंसा है हाजीपुर पर
पशुपति कुमार पारस भी इस तथ्य को बखूबी समझते हैं. हवा बयार बांधने के बाद अंततः राज्यसभा की सदस्यता से संतोष कर ले सकते हैं. चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच हाजीपुर (Hajipur) को लेकर पेंच फंसा हुआ है. दोनों इसे छोड़ना नहीं चाह रहे हैं. पशुपति कुमार पारस की बात नहीं बनी तब हाजीपुर से उम्मीदवारी के रूप में उन्हें महागठबंधन का सहारा मिल सकता है. उनके लिए वह कितना फलदायक होगा, यह नहीं कहा जा सकता.अभी जो संकेत मिल रहे हैं उसके मुताबिक लोजपा (रामविलास) को पांच और रालोजपा (RLJP) को एक सीट मिल सकती है.

रालोजद का दावा
चिराग पासवान की जिद उनकी पार्टी के लिए एक सीट की बढ़ोतरी करा दे सकती है. ऊपर से राज्यसभा की एक सदस्यता भी मिल सकती है. अधिकतम दो सीटें उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की पार्टी रालोजद को मिल सकती है. दावा उनका चार सीटों का है. जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ को एकमात्र गया की सीट दी जा सकती है. जीतनराम मांझी (Jitan Ram Manjhi) के लिए राज्यसभा में जगह बनाये जाने की भी चर्चा है. लब्बोलुआव यह कि भाजपा खुद 30 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है. सहयोगी दलों के लिए उसने दस सीटें चिह्न्ति कर रखी है. मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) के जुड़ाव पर यह संख्या 11 हो जा सकती है. (जारी)

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