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गड़बड़ गणित गठबंधन का : तब राजद के लिए बचेगा क्या?

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संजय वर्मा
26 जनवरी 2024

Patna : महागठबंधन में छह दल हैं. राजद, जदयू और कांग्रेस के अलावा तीन वामपंथी दल-भाकपा-माले, भाकपा और माकपा. 2019 के चुनाव में इस गठबंधन से जदयू का जुड़ाव नहीं था तब राजद ने 19 उम्मीदवार उतारे थे. सबके सब मुंह की खा गये. कांग्रेस के हिस्से में 09 सीटें गयी थीं. सिर्फ किशनगंज में जीत हुई. बाकी को हार का सामना करना पड़ गया. रालोसपा (वर्तमान में रालोजद) , ‘हम’ और मुकेश सहनी की ‘वीआईपी’ उस वक्त महागठबंधन में ही थे. रालोसपा को 05, ‘हम’ को 03 और वीआईपी को भी 03 सीटें दी गयी थीं. सबको शून्य हाथ लगे.

साथ नहीं थे वामपंथी
वामपंथी दल महागठबंधन के साथ नहीं थे. लेकिन, राजद (RJD) ने अपने हिस्से की एक सीट भाकपा- माले को दे दी थी, आरा की सीट. यह त्याग उसने पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में राजद प्रत्याशी मीसा भारती की जीत सुनिश्चित कराने के लिए किया था. राज्यसभा की सदस्य मीसा भारती राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की बड़ी संतान हैं. पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र में भाकपा-माले का मजबूत जनाधार है. राजद के उस त्याग के प्रतिदान में उसने पाटलिपुत्र में अपना उम्मीदवार नहीं उतारा. मीसा भारती (Misa Bharti) की जीत के लिए पूरी ताकत भी लगाया, पर 2014 के चुनाव की तरह 2019 में भी उनकी किस्मत रूठी ही रह गयी. 2024 में क्या होता है यह देखना दिलचस्प होगा. वैसे, लगातार हुई हार से राजद की राजनीतिक साख (Political Credibility) पर जो आंच आयी है उसके मद्देनजर उन्हें विश्राम दिया जा सकता है.

दो विधायकों की नजर
इसी समझ के तहत दानापुर के विधायक रीतलाल यादव और मनेर के विधायक भाई वीरेन्द्र पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र (Patliputra Parliamentary Constituency) पर नजर जमाये हुए हैं. क्षेत्र में दोनों की मजबूत पकड़ भी है. पर, विश्लेषकों का मानना है कि इनमें से किसी एक को अवसर मिला, तो फिर इनकी महत्वाकांक्षा का टकराव महागठबंधन का अहित कर दे सकता है. ऐसे में यह आशंका भी मीसा भारती की तीसरी बार की उम्मीदवारी का आधार बन जाये, तो वह हैरान करने वाली बात नहीं होगी. वैसे, इस क्षेत्र पर दावेदारी भाकपा- माले ने भी पेश कर रखी है. राजद का संकट टालने के लिए पाटलिपुत्र की सीट उसके हिस्से में दी जा सकती है.


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मर्जी चलेगी जदयू की!
सीटों के बंटवारे पर महागठबंधन में सहमति अभी नहीं बन पायी है. घटक दलों के बीच दो- तीन तरह के प्रस्ताव घूम रहे हैं. किसी में राजद और जदयू के 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है तो किसी में 16-16 सीटों पर. कांग्रेस को चार से छह और वामदलों को दो से तीन सीटों में सलटा देने का प्रस्ताव है. जदयू (JDU) की ओर से खुले तौर पर कह दिया गया है कि 16 सीटिंग सांसद उसके हैं. उतनी सीटों पर वह चुनाव लड़ेगा ही. शेष जो 24 सीटें बचती हैं, राजद, कांग्रेस और वामदल आपस में बांट लें. वैसे, कुछ सीटों पर अदला बदली के लिए वह तैयार है, पर उन सीटों को कतई नहीं छोड़ेगा, जहां उसके सांसद कुर्मी- कुशवाहा और अतिपिछड़ी जातियों के हैं. मतलब कि सीटों की अदला बदली में भी उसी की मर्जी चलेगी, महागठबंधन के अन्य घटक दलों को उसे मानना पड़ेगा.

कांग्रेस का दावा
उधर, राजद ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रखा है. शेष सात सीटों में पांच कांग्रेस (Congress) को और एक- एक भाकपा- माले और भाकपा को मिल सकती है. कांग्रेस का दावा दस सीटों का है. इस दावे का उसके पास ठोस आधार है. 2019 में वाल्मीकिनगर, समस्तीपुर, सुपौल, पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, मुंगेर, पटना साहिब और सासाराम से उसके उम्मीदवार थे. किशनगंज में जीत हुई थी. शेष आठ निर्वाचन क्षेत्रों (Constituencies) में वह दूसरे स्थान पर रही थी. इन आठ में से पांच पर जदयू काबिज है. दो पर भाजपा (BJP) और एक पर रालोजपा (RLJP).

बेगूसराय नहीं
किशनगंज के अलावा यह तीन सीट उसके हिस्से में जा सकती है. औरंगाबाद (Aurangabad) की सीट भाजपा के कब्जे में है. यह भी उसे मिल सकती है. औरंगाबाद कांग्रेस नेता पूर्व सांसद निखिल कुमार की पुश्तैनी सीट है. 2019 में यह सीट महागठबंधन के तब के घटक ‘हम’ को दे दी गयी थी. इस बार वैसी गलती शायद नहीं होगी. यहां गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस ने वाल्मीकिनगर, मुंगेर और पटना साहिब पर अपना दावा छोड़ दस की सूची में बेतिया, मधुबनी, नवादा और औरंगाबाद को जोड़ दिया है. उसके दावे में बेगूसराय (Begusarai) नहीं है. इसका मतलब यह कि बड़ी उम्मीद लिये कांग्रेस में शामिल हुए कन्हैया कुमार इस बार बेगूसराय के चुनाव मैदान में नहीं होंगे. (समाप्त)

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