बेगूसराय : नहीं होगा तब भाजपा के लिए आसान, मचेगा घमासान!
विनोद कर्ण
06 फरवरी 2024
Begusarai : आगे कुछ हो या नहीं, बेगूसराय की राजनीति के ठहरे हुए पानी में ‘जनसंवाद’ रूपी कंकर उछाल विकास वैभव ने हलचल तो पैदा कर ही दी. धीरे-धीरे साख जमा जनता का विश्वास हासिल कर रहे ‘लेट्स इंस्पायर बिहार’ के बैनर तले हुए ‘जनसंवाद’ के आयोजन से अन्य दलों में तो नहीं, भाजपा के उन नेताओं में बेचैनी समा गयी जो बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी की उम्मीद को इत्मीनान देने के प्रयास में जुटे हैं. ‘जनसंवाद’ में विकास वैभव (Vikas Vaibhav) ने चुनाव लड़ने का कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया, खुले रूप में उनकी वैसी कोई तैयारी भी नहीं दिख रही है. इसके बावजूद स्थानीय राजनीति उन्हें बेगूसराय संसदीय क्षेत्र से भाजपा (BJP) के मजबूत दावेदार के रूप में देख व समझ रही है. सिर्फ विकास वैभव ही नहीं, ऐसे और भी इच्छुक प्रभावशाली लोग हैं, जो अपनी संभावना संवार रहे हैं. चूंकि दावेदार अनेक हैं इसलिए उम्मीदवारी के लिए उनके बीच चुनाव (Election) से पहले घमासान मच सकता है.
क्या होगा कन्हैया कुमार का?
यहां यह जानने की जरूरत अवश्य महसूस होगी कि आखिर उम्मीदवारी के लिए भाजपा में घमासान मचेगा क्यों? केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) बेगूसराय से भाजपा के सांसद हैं. राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों में रहने वाले 2019 के चुनाव में उन्होंने भाकपा के बहुचर्चित व बहुविवादित युवा उम्मीदवार कन्हैया कुमार के नरेन्द्र मोदी विरोधी ताकतों द्वारा संरक्षित-समर्थित मंसूबे 04 लाख 22 हजार 217 मतों के भारी अंतर से धो दिया था. चुनाव बाद भाकपा के लिए अपच हो गये कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) अभी कांग्रेस में हैं. हैसियत सामान्य नेता की नहीं, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के ‘प्रियपात्र’ की है. हालात बताते हैं कि 2024 के संसदीय चुनाव में शायद बेगूसराय क्षेत्र से वह उम्मीदवार (Candidate) नहीं होंगे. राज्यसभा की सदस्यता नहीं मिली, तो दिल्ली के किसी संसदीय क्षेत्र से किस्मत आजमा सकते हैं.
जितनी बड़ी जीत, उससे बड़ी निराशा
बात अब गिरिराज सिंह के विकल्प की. कोई विशेष परिस्थिति पैदा हो जाये तो वह अलग बात होगी, सामान्य हालात में भाजपा में गिरिराज सिंह की उम्मीदवारी के दुहराव की उम्मीद उनके समर्थकों ने बांध रखी है. पर, उनकी बढ़ी उम्र और ढीले स्वास्थ्य समर्थकों की उम्मीदों पर पानी फेर दे तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. लोग देख-सुन रहे हैं कि गिरिराज सिंह 70 साल पार के हो गये हैं. इसके बावजूद हर वक्त जवान दिखने-दिखाने की कोशिश करते रहते हैं. दोबारा उम्मीदवारी के मामले में यह सब तो नकारात्मक (Negative) है ही, उनके लिए परेशानी की बात यह भी है कि 2019 में उनकी जितनी बड़ी जीत हुई थी, वर्तमान में क्षेत्र में उतनी ही बड़ी निराशा पसरी हुई है.
सिर्फ ‘गोल-गोल बोल’
जहां तक विकास की बात है, तो गिरिराज सिंह और उनके समर्थकों का दावा भले लंबा-चौड़ा हो, सामान्य धारणा है कि लगभग पांच वर्षीय सांसद-कार्यकाल के दौरान ‘गोल-गोल बोल’ के अलावा बेगूसराय संसदीय क्षेत्र (Begusarai Parliamentary Constituency) को और कुछ नहीं मिला. भाजपा के सूत्रों पर भरोसा करें, तो पार्टी की ओर से हाल में कराये गये आंतरिक सर्वेक्षण का निष्कर्ष भी बहुत कुछ इसी तरह का सामने आया है. इसमें सच्चई है तो यह उन्हें ‘विश्राम’ की मुद्रा में लाने का आधार बन जा सकता है. यही वह संभावना है, जो भाजपा में घमासान मचने की आशंका को बल दे रही है. वैसे, क्या होता है क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. गिरिराज सिंह की जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक भाजपा में जो पकड़ है, जो पैठ है उसमें एकबारगी उन्हें हाशिये पर डालना शायद संभव नहीं होगा. बेगूसराय जिला भाजपा के अध्यक्ष राजीव वर्मा से लेकर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष एवं उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (Samrat Chaudhary) तक उनके हिमायती हैं.
नवादा में मिल सकता है मौका
हिन्दुत्व के प्रति अति मुखरता को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के भी वह ‘प्रिय’ हैं. परन्तु, बेगूसराय जिला भाजपा के कार्यकर्त्ताओं एवं समर्थकों में अधिसंख्य बदलाव के पक्ष में दिखते हैं. विश्लेषकों (Analysts) का मानना है कि गिरिराज सिंह को उम्मीदवारी से वंचित किया भी जायेगा, तो उनकी सहमति से ही. विकल्प के चयन में भी उनके मंतव्य को महत्व मिलेगा. वैसे, एक संभावना (Possibility) उन्हें किसी दूसरे क्षेत्र से चुनाव लड़ाने की भी है. वह संसदीय क्षेत्र नवादा हो सकता है.2014 में वह वहीं से निर्वाचित हुए थे. नरेन्द्र मोदी की प्रथम सरकार में मंत्री बने थे. बहरहाल, इस हां और ना के बीच अंततः गिरिराज सिंह को दोबारा उम्मीदवारी नहीं मिली, तो उनका विकल्प कौन होगा? जिले की राजनीति (Politics) में इन दिनों यही सवाल मुख्य चर्चा का विषय बना हुआ है.
संकेत मिला है, आश्वासन नहीं
दावेदार अनेक हैं. पर, गिरिराज सिंह के विकल्प के तौर पर राज्यसभा सदस्य प्रो. राकेश कुमार सिन्हा, भारतीय पुलिस सेवा के चर्चित युवा अधिकारी विकास वैभव, विधान पार्षद सर्वेश कुमार और पूर्व विधान पार्षद रजनीश कुमार के नाम की चर्चा कुछ अधिक है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक भाजपा नेतृत्व ने गिरिराज सिंह और प्रो. राकेश कुमार सिन्हा को चुनाव की तैयारी करने का संकेत तो दे दिया है, पर उम्मीदवारी बेगूसराय से ही मिलेगी ऐसा आश्वासन दोनों में से किसी को नहीं मिला है. प्रो. राकेश कुमार सिन्हा (Pro. Rakesh Kumar Sinha) बेगूसराय जिले के ही रहने वाले हैं. साहेबपुर कमाल विधानसभा क्षेत्र के मनसेरपुर गांव में उनका पैतृक घर है. क्षेत्रीय हैं, यह 2019 के संसदीय चुनाव से पहले बहुत कम लोगों को मालूम था.
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जानने-पहचानने लगे हैं लोग
वजह यह कि मुख्य रूप से वह दिल्ली की राजनीति में सक्रिय थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रवक्ता की भूमिका निभाते थे. 2019 के संसदीय चुनाव से कुछ समय पूर्व राज्यसभा का सदस्य मनोनीत हो गये. कहा जाता है कि 2019 में भी उन्होंने बेगूसराय से उम्मीदवारी के लिए हाथ-पांव चलाया था. अवसर नहीं मिल पाया. इससे हताश नहीं हुए. अगली बार के लिए उसी समय से बेगूसराय में पांव जमाने का उपक्रम करने लगे. इसमें बहुत हद तक कामयाबी भी मिली है. 2019 से पहले न वह अपने जिले से अच्छी तरह वाकिफ थे और न उनका जिला उनसे. अब वैसी बात नहीं है. वह तो जिले के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हो ही गये हैं, जिले के लोग भी उन्हें जानने-पहचानने लगे हैं. शाम्हो और मटिहानी के बीच गंगा नदी पर पुल निर्माण की स्वीकृति में उनकी जो भूमिका रही है, उससे एक अलग किस्म की पहचान मिली है.
कुछ अधिक मुखर है विरोधी गुट
बेगूसराय जिले में रेलवे स्टेशनों के सौन्दर्यीकरण, फ्लाई ओवर आदि के निर्माण के मामले में सक्रियता ने उन्हें आमलोगों से जोड़ दिया है. ऐसा उनके समर्थक ही नहीं, आलोचक भी मानते हैं. यह भी कि उनकी ईमानदारी और कर्त्तव्यनिष्ठा सवालों से परे है. पर, इतना कुछ होने के बाद भी बेगूसराय जिला भाजपा के एक तबके को वह स्वीकार्य नहीं हैं. यह हर कोई जानता है कि जिला भाजपा गुटों में बंटी है. एक गुट प्रो. राकेश कुमार सिन्हा से जुड़ा है. उनकी उम्मीदवारी (Candidacy) के लिए आवाज उठा रहा है. पर, दिक्कत यह है कि इस गुट की आवाज जोरदार तरीके से भाजपा नेतृत्व तक नहीं पहुंच पा रही है. इसकी तुलना में विरोधी गुट कुछ अधिक मुखर है. पार्टी नेतृत्व को अपनी मुखरता का अहसास कराने में समर्थ है.
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