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पोद्दार रामावतार अरुण : ‘कवि निवास’ की जर्जरता से झांकती तेजस्विता

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अश्विनी कुमार आलोक
08 फरवरी 2024

मस्तीपुर शहर का ही एक भाग है पेठिया गाछी. पेठिया गाछी का अर्थ है, वह बाग जहां हाट लगती हो. लेकिन, वहां न पेठिया है और न गाछी ही बची है. समस्तीपुर को ‘समस्तीपुर’ कहे जाने के अनेक तर्क हैं. उन्हीं में से कुछ तर्कों के पक्षधरों ने समस्तीपुर को ‘समसुद्दीनपुर’ मानकर यह बताने की चेष्टा की है कि यह क्षेत्र मुगलकालीन (Mughal Period) पुरावशेषों एवं उनसे संबंधित कथाओं की उपजीव्य नगरी रहा होगा. कोई क्षेत्र नगर या शहर अचानक नहीं बनता. कालक्रम में अनेक सोपान चढ़़ता है, तब उसे यह पहचान मिलती है. समस्तीपुर (Samastipur) का नाम जमीन के पुराने खाते-खतियानों में समसुद्दीनपुर है.

‘समस्ता’ पहचान है
पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण (Poddar Ramavatar Arun) ने अपनी जन्मभूमि को इस रूप में चित्रित किया था-‘यह भू-भाग मैथिली, बज्जिका, मागघी और अंगिका के संगम पर एक विशिष्टता के रूप में अवस्थित है. यहां से हिमालय कुछ दूर और गंगा बिल्कुल पास है. ‘समस्ता’ इसकी आंतरिक पहचान है. हरीतिमा इसकी ग्रामगंधी संगीतिका है.’ इतिहासविद् (Historian) बताते हैं कि विशिष्ट प्रकार की खैनी के उत्पादन के लिए पहचाने गये इस क्षेत्र तक अमेरिका (America) के उद्योगपति एवं कृषि वैज्ञानिक खिंचे चले आये थे. 1784 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस देश पर आर्थिक आधिपत्य के जरिये प्रशासनिक शक्ति (Administrative Power) प्राप्त कर ली थी, तब की अनेक घटनाएं इतिहास की पुस्तकों में पढ़ी-समझी जा रही हैं.

भूमि की है यह कहानी
उन्हीं घटनाओं में एक यह भी है कि 5 जुलाई 1784 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी से 1500 सिक्के में बंधक के रूप में पूसा की भूमि ली गयी थी, अश्वपालन के लिए. कैप्टन डब्ल्यू फ्रेजर पहले अधीक्षक बने थे. बाद में यह क्षेत्र तम्बाकू (Tobacco) प्रौद्योगिकी का केन्द्र बन गया. 1877 में डनलप एंड कंपनी ने यह भूमि अधिग्रहीत की. फिर राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना ने कृषि के तम्बाकू सहित अन्य उत्पादनों को लेकर शोध एवं अध्ययन के संसाधनों को विस्तार दिया जाने लगा. उसी राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय से कोई बीस-बाईस किलोमीटर पूरब है पेठिया गाछी. व्यापार-वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र गोला बाजार इसी से लगा हुआ है.

मसाले की हाट लगती थी
यहां पेठिया गाछी नाम की कोई जगह रही होगी, जहां हाट लगती थी. कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि परमेश्वर चौधरी की जमीन में हाट लगती थी. बाजार समिति हुई तो गांव की हाट को बाजार ने समेट लिया. पेठिया गाछी के मालिक परमेश्वर चौधरी भी गांव पर नगर का आधिपत्य स्वीकार कर नगरपालिका (Municipality) का चुनाव लड़ गये. अध्यक्ष भी बन गये. कभी यहां मसाले की हाट लगती थी, नेपाल (Nepal) से आयातित हल्दी गांव-देहात तक जाती थी. अब, हल्दी का उत्पादन भी यहां बड़े पैमाने पर हो रहा है.


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वहीं है ‘कवि निवास’
पेठिया गाछी नहीं रही. वे लोग भी नहीं रहे. उन दिनों के अन्य लोगों को खोजने-पूछनेवालों को भी फुर्सत में नहीं देखा जा रहा. खासकर, लिखने-पढ़नेवालों के विषय में. शहर की तंग और परेशान गलियों के रूप में पेठिया गाछी की सड़क भी पहचानी जाती है, क्योंकि इधर ही से गोला रोड के लिए सौदा-सुलुफ करने वाले लोगों की आवाजाही होती है. मैं इसी सड़क के जिस किनारे आकर खड़ा हुआ था, उसके पूरब में दुर्गा स्थान चौक, पश्चिम में गोला बाजार चौक, दक्षिण में बंगाली टोला एवं रेलवे स्टेशन तथा उत्तर में बूढ़ी गंडक नदी पर बना हुआ पुल एवं दरभंगा (Darbhanga) की ओर निकलती चौड़ी प्रशस्त सड़क. इसी सड़क के किनारे अन्य मकानों की अपेक्षा एक दो मंजिला मकान है ‘कवि निवास’. जर्जर, उपेक्षित और परेशान.

इसलिए थी रुचि
परेशान इस तरह जैसे एक पिता को उसके कई बेटों ने अपनी ओर अलग-अलग खींचा हो और वह पिता हर एक की ओर खिंचे चले जाने के मोह में अपना पुरुषत्व न बचा सका हो. इस मकान को कई जगहों से बांटे जाने की कोशिश दिखी. मकान के बारे में मेरी रुचि का एकमात्र कारण था कि यह पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण का मकान रहा है. वही पद्मश्री पोद्दार रामावतार अरुण जिनके कवित्व ने छायावादोत्तर काव्य साहित्य (Poetic Literature) में इतनी तेजी से स्थान बनाया था कि हिन्दी साहित्य के विद्याविदों ने उन्हें कविता के साथ-साथ आलोचना कर्म की महनीय प्रतिभा का सूर्य बता दिया था.

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