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अब्दुल्ला नगर पर मंडरा रहे आफत के बादल

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अशोक कुमार
15 फरवरी 2024

Purnia : ऐसा ही कुछ मामला है पटना के राजीव नगर और नेपाली नगर का. अंतर यह कि वहां के विवाद में एक पक्ष राज्य सरकार है, तो दूसरा पक्ष अधिग्रहीत जमीन के खरीदार या फिर पट्टाधारी. कड़े प्रतिकार के बाद भी पटना में बुलडोजर की कार्रवाई हुई. कई बड़े-बड़े मकान जमींदोज कर दिये गये. अदालत ने हस्तक्षेप किया. बुलडोजर का कहर ठहर गया. मामला अदालत में है. पूर्णिया में बुलडोजर की कार्रवाई पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) के आदेश से ही हो रही है. जनप्रतिरोध की वजह से कामयाबी नहीं मिल पा रही है. तीन प्रयास विफल हो चुके हैं. प्रशासन के समक्ष असमंजस की स्थिति है. एक तरफ सैकड़ों लोगों के विस्थापन से जुड़ा मानवीय सवाल है, तो दूसरी तरफ अदालत के आदेश का अनुपालन न होने की स्थिति में अवमानना का भय. यह पूरा मामला है क्या, पहले इसकी चर्चा करते हैं.

सिहर रहे साढ़े तीन सौ मकान!
पूर्णिया नगर निगम (Purnia Municipal Corporation) के वार्ड संख्या 42 में है अब्दुल्ला नगर. लोग इसे आनंद नगर के नाम से भी जानते-पहचानते हैं. यह नगर निगम के पूर्वी अंचल के क्षेत्राधिकार में है. वहीं 22 एकड़ 73 डिसमिल के बड़े भूभाग पर तकरीबन साढ़े तीन सौ कच्चे-पक्के मकान हैं, जो ध्वस्त होने के कगार पर हैं. उन पर आफत के बादल मंडरा रहे हैं. बिजलिचयां गिरने की आशंका गहरा गयी है. नासमझी कहें या लालच, मकान बनाने वालों ने एक वैसे व्यक्ति से जमीन खरीद ली जिसका मालिकाना वैध नहीं था. वह व्यक्ति कटिहार के सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू थे. जानकारों के मुताबिक वह चौधरी स्टेट से जुड़े थे.

जालसाजी या चूक?
ऐसा कुछ दूसरे रास्ते से हुआ या संबद्ध कार्यालय से चूक हुई,1960 के आरएस सर्वे में इस जमीन के मालिक सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू हो गये. यानी खतियान उनके नाम बन गया. जबकि पुश्तैनी मालिकाना का दावा महादेव यादव का था. महादेव यादव पूर्णिया शहर के बेलौरी के रहने वाले हैं. उनके पुत्र हैं अनिरुद्ध कुमार यादव. मीडिया में जो खबर आयी है उसके मुताबिक महादेव यादव की ऊपर की पीढ़ी का सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू से उक्त जमीन का एग्रीमेंट हुआ था, जो बाद में खारिज हो गया. इस भूखंड को लेकर महादेव यादव और सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू के बीच पूर्णिया की अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) तक लंबी न्यायिक लड़ाई हुई.

अदालत में हुआ समझौता
वर्णित भूखंड का कुल रकबा 75 एकड़ 25 डिसमिल है. 1960 के सर्वे में 30 एकड़ जमीन सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू के नाम पर चढ़ गयी. महादेव यादव को जानकारी मिलती उससे पहले लगभग 07 एकड़ जमीन बिक गयी. किसी और ने नहीं, सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू ने बेच दी. 1983 में महादेव यादव अदालत की शरण में गये. करीब पन्द्रह साल बाद 1998 में अदालत ने महादेव यादव के मालिकाना को वैध ठहरा दिया. लेकिन, उनके हिस्से में 75 प्रतिशत रकबा ही दिया. शेष 25 प्रतिशत का मानवीय आधार पर मालिक सच्चिदानंद दास (Sachchidananda Das) को बना दिया. इसके लिए दोनों के बीच 164 के तहत समझौता (Agreement) कराया गया. सच्चिदानंद दास ने उस समझौते को नहीं माना और मामले को पटना उच्च न्यायालय में ले गये.

औने-पौने में बेच दिया
पटना उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और 2005 में भूखंड का सीमांकन करा दिया. वैसे, महादेव यादव के मालिकाना वाले 75 प्रतिशत हिस्से पर भी सच्चिदानंद दास उर्फ बौकू बाबू का दावा बना रहा. कहते हैं कि महादेव यादव की मालिकाना वाली कुछ जमीन को अपना बता उन्होंने औने-पौने में बेच भी दिया. पटना उच्च न्यायालय में मात खा जाने के बाद मामले को वह सर्वोच्च अदालत में ले गये. वहां भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी. सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद अनिरुद्ध कुमार यादव ने पटना उच्च न्यायालय में अपनी 75 प्रतिशत जमीन खाली कराने की गुहार लगायी. उच्च न्यायालय ने आदेश पारित कर दिया. प्रशासन (Administration) की कार्रवाई उसी आदेश के आलोक में हो रही है.

अब्दुल्ला नगर में प्रशासन के लोग.

क्यों होने दिया निर्माण?
समझदारी के अभाव में जमीन खरीदने वालों ने उस पर मकान बना लिया. धीरे-धीरे बहुत बड़ी बस्ती आबाद हो गयी. तमाम सरकारी सुविधाएं उपलब्ध होने लगीं. इसी पते पर सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने लगा. यहां तक कि ढेर सारे लोगों को इंदिरा आवास भी आवंटित हुए. पूर्णिया नगर निगम के वार्ड संख्या 42 से अभी उर्मिला देवी निगम पार्षद हैं. वह भी इसी अब्दुल्ला नगर बस्ती के रहने वाले हैं. ताजुब्ब की बात कि पूर्णिया पूर्व अंचल कार्यालय ने संबद्ध जमीन की जमाबंदी (मोटेशन) भी कर दी. सर्वाधिक रोचक तथ्य यह कि पूर्णिया पूर्व अंचल कार्यालय ने उसी भूखंड के एक बड़े हिस्से को लाल कार्ड के रूप में वितरित कर दिया. बस्ती के निवासियों के इस तर्क में दम है कि जमीन की फर्जी खरीदारी और जमाबंदी की प्रक्रिया के बाद उस भूखंड पर भवन निर्माण हो रहा था तब उसे रोकने की कार्रवाई सरकारी तंत्र ने क्यों नहीं की?

इस तरह हो रहा विरोध
अदालत के आदेश पर पूर्णिया प्रशासन अब्दुल्ला नगर (Abdullah Nagar) के उक्त भूखंड को खाली कराने की कोशिश में है. वाशिंदों में हाय तौबा मचना स्वाभाविक है. बस्ती के तमाम लोग- महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी बुलडोजरों के सामने सोकर उसे कार्रवाई करने से रोक दे रहे हैं. समूह में महिलाएं चीत्कार करने लगती हैं तो कुछ सड़क पर माथा पटक-पटक कर खुद को लहूलुहान कर लेती हैं. उन सबका सवाल यह भी है कि अदालत ने जमीन की खरीद को फर्जी बता मकानों को ध्वस्त करने का आदेश तो दिया है, लेकिन इस खरीद-बिक्री वाले कालखंड में पूर्णिया पूर्व अंचल में पदस्थापित रहे अंचलाधिकारियों एवं संबद्ध कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश क्यों नहीं जारी हुआ?


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नहीं खुल रहा मुंह
जिन अधिकारियों ने आंख मूंदकर इस जमीन की जमाबंदी की, इसी जमीन को आधार बना इंदिरा आवास स्वीकृत किया. विभिन्न सरकारी योजनाओं को इस बस्ती में क्रियान्वित कराया और अनेक भूमिहीनों के बीच लालकार्ड के पर्चे वितरित किये, कार्रवाई तो उन सबके खिलाफ भी होनी चाहिये. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि बस्ती वालों की इस पीड़ा को समझने, महसूस करने और समाधान निकालने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है. एक-दो अपवादों को छोड़ स्थानीय राजनीतिज्ञों (Local Politicians) ने भी इससे मुंह मोड़ रखा है. बस्ती वालों को आशंका है कि किसी न किसी रूप में भूमि माफिया इसमें रुचि ले रहे हैं.

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