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ताकते न रह जायें तारिक अनवर!

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अशोक कुमार
05 मार्च 2024

Purnia : पहली नजर में यह चौंकाऊं खबर अविश्वसनीय लग सकती है. पर, संबंधित तथ्यों और तर्कों पर गहन दृष्टि डालने से यह सच के बिल्कुल करीब दिखेगी. खबर तारिक अनवर से ताल्लुक रखती है. उन्हीं तारिक अनवर से जो कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हैं. कटिहार संसदीय क्षेत्र (Katihar Parliamentary Constituency) से चुनाव लड़ते हैं.1977 से ही कांग्रेस या राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार बनते रहे हैं. कभी जीत तो कभी हार का स्वाद चखते रहे हैं. इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रीय स्तर के नेता की पहचान रखते हैं. इस लिहाज से कांग्रेस (Congress) में महत्व मिलता है, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में भी मिलता था. लेकिन, अब वैसी बात नहीं रह गयी है.

दिख रहे अलग-थलग
कांग्रेस की राजनीति की मुख्य धारा से अलग – थलग दिख रहे हैं. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की बिहार के सीमांचल से गुजरी ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ में भी ऐसी झलक दिखी. हालांकि, उसमें उनकी मौजूदगी थी, कटिहार में उनके साथ रथ पर थे, पर भाव-भंगिमा में ‘संतुष्टि’ नहीं थी. ऐसा विश्लेषकों ने महसूस किया. यह भी कि करीब दो माह बाद होने वाले संसदीय चुनाव में उन्हें विश्राम की मुद्रा में ला दिया जा सकता है. कांग्रेस की उम्मीदवारी से वंचित कर हाशिये पर डाल दिया जा सकता है. राजनीति का सूत्र वाक्य है कि इसमें कल क्या होगा यह दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. तारिक अनवर (Tariq Anwar) के मामले को इससे परे नहीं माना जा सकता है.

राजद की भी है नजर
तारिक अनवर को सच में उम्मीदवारी से वंचित किया जाता है, तो उसकी अलग-अलग दो वजहें हो सकती हैं. एक तो यह कि महागठबंधन में कटिहार की सीट पर राजद ने भी नजर गड़ा रखी है. रणनीति (Strategy) उसकी राज्यसभा के चुनाव में दोबारा उम्मीदवारी नहीं मिलने से हताश सांसद अशफाक करीम को वहां से चुनाव लड़ा उनकी मायूसी मिटाने और इस वजह से नाराज मुस्लिम समुदाय के गुस्से को शांत करने की है. इस गुस्से की झलक महागठबंधन की पटना की ‘जन विश्वास महारैली’ में दिखी. इसमें राजद (RJD) की पूर्व की ऐसी रैलियों की तुलना में मुसलमानों की भागीदारी काफी कम नजर आयी. महारैली के अपेक्षा के अनुरूप सफल नहीं रहने की इसे एक बड़ी वजह मानी गयी.

वह भी लगा रहे हैं जोर
यह तो रही कांग्रेस से बाहर की बात. ऐसी चर्चा है कि कांग्रेस के अंदर भी ‘थके-हारे’ तारिक अनवर की उम्मीदवारी की खानापूर्ति करने की बजाय किसी तेज-तर्रार चेहरे पर दांव खेलने पर मंथन हो रहा है. पार्टी के सूत्रों का मानना है कि राजद की जिद की चपेट में यह सीट नहीं आयी, तो कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान का सितारा बुलंद हो जा सकता है. तारिक अनवर की जगह कटिहार से उन्हें कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया जा सकता है. हिसाब बराबर करने के लिए वह भी खुद जोर लगा रहे हैं. ऐसा उनके करीब के लोगों का कहना है. हिसाब बराबर करने का मुद्दा मंत्री (Minister) के पद से जुड़ा है. लोग बताते हैं कि शकील अहमद खान की समझ है कि तारिक अनवर की अप्रत्यक्ष अड़ंगेबाजी की वजह से महागठबंधन की पिछली सरकार में उन्हें मंत्री का पद नहीं मिल पाया. यह कसक अभी मिटी नहीं है. हिसाब उन्हें इसी का बराबर करना है.


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चर्चा तौकीर आलम की
इस संबंध में चर्चा यह भी है कि किसी कारणवश शकील अहमद खान की बात नहीं बनती है तो फिर चर्चित युवा नेता तौकीर आलम की तकदीर चमक जा सकती है. तारिक अनवर की जगह तौकीर आलम! है न चौंकने वाली बात! यही राजनीति है. चौंकना- चौंकाना इसके डीएनए में है. जिज्ञासा जरूर जगी होगी कि आखिर यह तौकीर आलम हैं कौन जिन्हें तारिक अनवर का विकल्प माना और समझा जा रहा है? तौकीर आलम राजद के शासनकाल में दो बार मंत्री रहे मंसूर आलम के पुत्र हैं. उस दौर में मंसूर आलम कटिहार जिले के बरारी विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित होते थे. तौकीर आलम उनकी विरासत तो संभाल रहे हैं, पर छात्र जीवन से ही इनका जुड़ाव कांग्रेस से रहा है.

आसान नहीं बेदखली
2015 और 2020 में तौकीर आलम कटिहार जिले के ही प्राणपुर विधानसभा (Assembly) क्षेत्र से कांग्रेस की उम्मीदवारी मिली, पर किस्मत का साथ नहीं मिला. कामयाबी दूर रह गयी. ऐसी चर्चा है कि अब उन्होंने कटिहार संसदीय क्षेत्र से दावेदारी पेश कर रखी है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के परिवार से उनकी जिस निकटता की बात कही जाती है उसमें यदि दम है, तो उनकी उम्मीदवारी पर संदेह (Doubt) की गुंजाइश बहुत कम नजर आती है. कहा जाता है कि वह कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव तो हैं ही, सांगठनिक रूप से राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के सचिव भी हैं. यह उनकी दावेदारी को मजबूत बनाता है. यह सब तो है, पर कांग्रेस में ऊंचा कद रखने वाले तारिक अनवर की बेदखली उतना आसान भी नहीं है, जितना उनके विरोधी समझ रहे हैं.

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