जिस धरती के कथा-उपन्यास उसी के पात्र भी
बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों, जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है, न समाज को और न उनके वंशजों को. इस बार ग्रामीण शब्दावलियों से संपन्न आंचलिक कथा साहित्य के अप्रतिम शैलीकार फणीश्वरनाथ रेणु की स्मृति के साथ समाज और सरकार के स्तर से जो व्यवहार हो रहा है, उस पर दृष्टि डाली जा रही है. वैसे, अन्य साहित्यकारों की तुलना में फणीश्वरनाथ रेणु की स्थिति थोड़ा भिन्न है. कृति और स्मृति को सम्मान प्राप्त है. संबंधित किश्तवार आलेख की यह तीसरी कड़ी है :
अश्विनी कुमार आलोक
10 मार्च 2024
फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने कथा-उपन्यास के पात्र गढ़े नहीं. उन्हें जिस धरती ने गढ़ा था, उनके पात्र भी उसी धरती की उपज थे. निःशंक और सप्राण. उन्होंने आरंभ से दमन और शोषण की खिलाफत की. उनकी कथाओं में गांव में बढ़ते अनाचार और संदिग्ध प्रवृत्तियों का विरोध दिखा. नेपाल (Nepal) में काम करनेवाले मजदूरों की दशा पर ‘नेपाली क्रांति कथा’ लिखकर राणाशाही का विरोध किया. नेपाल के पहाड़ों के करीब छुपकर उन्होंने ऐसे आन्दोलनों को हवा दी, ‘रेडियो नेपाल’ के संकेत ‘यो रेडियो नेपाल हो’ से अपने क्रांतिकारी साथियों में संवाद भेजे.
जेपी आंदोलन के रणनीतिकार
जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में उसी निष्ठा एवं समर्पण के साथ उतरे थे, जिस तरह स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी थी. बताया जाता है कि जेपी आन्दोलन के खास रणनीतिकार भी रेणु (Renu) ही थे. उनकी जयप्रकाश नारायण (Jaiprakash Narayan) के साथ घनिष्ठता थी. जयप्रकाश आंदोलन में नानाजी देशमुख को सरकारी लाठियों से बचाने के क्रम में वह घायल हो गये थे. आंदोलन के लिए नुक्कड़ सभाओं और जुलूस का नेतृत्व करनेवाले फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwarnath Renu) को आज उस आन्दोलन की चर्चा में याद भी नहीं किया जाता.
गांव ने नहीं भुलाया
लेकिन, ऐसा नहीं कि रेणु को इस गांव (Village) ने भुला दिया. जिला प्रशासन ने 1994 में ‘रेणु द्वार’ का निर्माण करवाया था. लेकिन, जब फोरलेन सड़क बनी और अंडरपास गेट से सिमराहा (Simraha) की ओर रास्ता निकाला गया, तब ‘रेणु द्वार’ छोटा पड़ गया. 2010 में भाजपा (BJP) के टिकट पर रेणु के बड़े पुत्र पद्मपराग राय वेणु (Padmparag Ray Venu) विधायक (MLA) बन गये. दो वर्षों के बाद उन्होंने रेणु द्वार को ऊंचा करवा दिया. सिमराहा हाट के समीप जो रेणु जी की आदमकद प्रतिमा लगी है, वह तत्कालीन विधायक जाकिर अनवर बैराग (Jakir Anwar Bairag) की देन है. प्रतिमा का अनावरण तत्कालीन राज्यपाल आर एस गवई (R S Gawai) ने किया था. औराही हिंगना स्कूल परिसर में बनाया गया है ‘रेणु कुंज’. वहां भी रेणु की प्रतिमा है.
रेणु स्मृति भवन
पटना के जयप्रभा अस्पताल (Jaiprabha Hospital) के समीप अवस्थित प्रतिमा सरकारी कार्यक्रमों का केन्द्र बनती है. पटना जंक्शन (Patna Junction) पर रेणु पुस्तकालय और पटना रेडियो स्टेशन के समीप रेणु भवन जैसे महत्वपूर्ण स्मारक हैं. सिमराहा के वन क्षेत्र को ‘रेणु वन’ भले घोषित किया गया, लेकिन प्रस्ताव के अनुकूल काम अभी भी अधर में लटका हुआ है. रेणु के घर से कुछ दूरी पर बिहार सरकार ने लगभग पौने दो करोड़ रुपये की लागत से ‘रेणु स्मृति भवन’ (Renu Smriti Bhawan) बनवाया है. इसके लिए रेणु जी के परिजनों ने डेढ़ बीघा जमीन दी थी. इस भवन में पुस्तकालय (Library) के लिए सरकार ने करीब पंद्रह आलमारियां भी खड़ी कर दीं, लेकिन एक भी किताब नहीं दी.
सोसायटी भी बनायी गयी
भवन की देखरेख और उसके विकास के लिए एक सोसायटी भी बनायी गयी है. लेकिन, उसके सभी सदस्य सरकारी अधिकारी हैं, किसी साहित्यकार को सदस्य नहीं बनाया जा सका. गैर सरकारी सदस्य के रूप में अकेले सदस्य हैं रेणु जी के छोटे पुत्र और भाजपा नेता दक्षिणेश्वर प्रसाद राय (Dakshineshwar Prasad Ray) . सोसायटी के निबंधन के डेढ़ वर्ष बीत गये और एक भी बैठक नहीं हुई. इस भवन का निर्माण तत्कालीन भवन निर्माण मंत्री दामोदर रावत (Damodar Rawat) ने कराया था. कला-संस्कृति विभाग ने पैंसठ लाख रुपये के उपस्कर भी दिये थे.
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तीन विवाह, सात संतानें
फणीश्वरनाथ रेणु के पिता जमींदार थे. करीब सात सौ बीघा जमीन थी. अब सत्तर बीघे के करीब बची है. सर्वे में बहुत बड़ा रकबा चला गया. रेणु जी ने तीन विवाह किये. पहली पत्नी रेखा देवी (Rekha Devi) का देहांत एकमात्र बेटी सविता (Savita) को जन्म देने के बाद हो गया था. दूसरी पत्नी पद्मा रेणु (Padma Renu) से सात संतानें हुईं. चार बेटियां नवनीता सिन्हा (Navnita Singh), निवेदिता (Nivedita), अन्नपूर्णा (Annpurna) और वहीदा (Vahida) तथा तीन बेटे पद्मपराग राय वेणु, अपराजित राय एवं दक्षिणेश्वर प्रसाद राय. तीसरी पत्नी लतिका रेणु (Latika Renu) का उनके साहित्यिक जीवन में बहुत महत्व रहा. परंतु, उनसे एक भी संतान नहीं हुई.
संभाल कर रखी हैं स्मृतियां
लतिका राय से फणीश्वरनाथ रेणु ने प्रेम-विवाह किया था. ‘मैला आंचल’ का प्रकाशन रेणु जी ने लतिका जी के सहयोग से किया था. वह उपन्यास (Nobel) अपने पिता के मित्र और प्रसिद्ध कथाकार अनूपलाल मंडल (Anooplal Mandal) को समर्पित किया था. रेणु जी का एक आवास पटना (Patna) के राजेन्द्रनगर (Rajendra Nagar) में है. गांव के घर के जीर्णाेद्धार और नवनिर्माण से रेणु जी की स्मृतियां विलुप्त न हों, उनके पुत्रों ने ऐसा प्रयास किया. पटना वाले घर में भी उनके वक्त की चीजें संभालकर रखी गयी हैं.
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