‘बाहरी’ को भगा देगा नवादा इस बार?
राजकिशोर सिंह
17 मार्च 2024
Nawada : नवादा संसदीय क्षेत्र (Sansadinwada Parliamentary Constituency) में इस बार क्या होगा? चौक-चौराहों से लेकर चौपालों तक यह सवाल गंभीर चर्चा का विषय बना हुआ है. क्या होगा का मतलब किसी उम्मीदवार की जीत-हार से नहीं है. मूल सवाल यह है कि इस बार किसी स्थानीय उम्मीदवार का सितारा बुलंद होगा या फिर कोई बाहरी ही बाजी मार ले जायेगा? यह सवाल उस रोचक ऐतिहासिक तथ्य से जुड़ा है कि कुछ विशेष निर्वाचन क्षेत्रों को छोड़ नवादा देश का संभवतः पहला ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जहां प्रायः हर चुनाव में ‘बाहरी भगाओ, नवादा बचाओ’ और ‘घर का नेता, घर का बेटा’ जैसे नारे तो गूंजते हैं, पर एक-दो अवसरों को छोड़ दें तो जीत स्थानीय की नहीं हो पाती है, बाजी बाहरी मार ले जा रहे हैं.
तीन बार नकार दिया
इस सवाल की गंभीरता को इस रूप में सहजता से समझा जा सकता है कि जब अनुकूल सामाजिक समीकरण में राजद का उम्मीदवार रहते ‘सर्वबल सम्पन्न’ राजबल्लभ (Rajballabh) परिवार को मतदाताओं ने एक बार नहीं, लगातार तीन बार नकार दिया, तो फिर दूसरे की क्या बिसात? स्थानीय पर भरोसा नहीं जमने की क्षेत्र की मतदाताओं की मानसिकता वर्तमान राजनीति की देन है, ऐसी बात नहीं. यह अधिसंख्य के डीएनए में ही है. यानी पुश्तैनी गुण है. इस धारणा को मजबूती इन आंकड़ों से मिलती है कि 1952 से लेकर 2019 तक के 17 संसदीय चुनावों में सिर्फ तीन बार ही स्थानीय उम्मीदवारों की जीत हुई.14 बार बाहरी निर्वाचित हुए.
प्राथमिकता धनबल और बाहुबल को
गौर करने वाली बात यह भी कि कोई एक दल नहीं, प्रायः सभी प्रमुख दल धनबल और बाहुबल को प्राथमिकता देते हुए बाहरी उम्मीदवार ही उतारते रहे हैं. बाहरी का मतलब नवादा जिले से बाहर के रहने वाले से है. लेकिन, इसके साथ एक रोचक जानकारी यह भी है कि यहां के मतदाता जिस उदारता से बाहरी को स्वीकार कर लेते हैं, उतनी ही बेरुखी से बाहर का रास्ता भी दिखा देते हैं. इतिहास बताता है कि बाहरी के रूप में सिर्फ कांग्रेस के कुंवर राम की दोबारा जीत हुई है. दूसरे किसी बाहरी को ऐसा अवसर नहीं मिल पाया है.
इस बार भी गूंज रहे नारे
‘बाहरी भगाओ, नवादा बचाओ’ का नारा इस बार भी गूंज रहा है. क्षेत्र को संबंधित पोस्टरों से पाटा जा रहा है. ‘घर का नेता, घर का बेटा’ नारा उछालने वाले भी मुट्ठियां लहरा रहे हैं. पर, इसका कोई असर पड़ेगा, इसकी कोई संभावना बनती नहीं दिख रही है. क्षेत्र में जो तस्वीर उभर रही है उसमें फिर कोई बाहरी ही बाजी मार ले, तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. तब भी कहीं स्थानीय की जीत हुई तो उसमें इन नारों की कोई भूमिका होगी, यह मानना बेमानी होगी. नवादा संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए 16 चुनावों में सर्वाधिक छह बार कांग्रेस की जीत हुई है.
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स्थानीय सिर्फ तीन बार
1957 में निर्वाचित सत्यभामा देवी (Satyabhama Devi) को छोड़ बाकी पांच बाहरी थे. उनमें गया के ब्रजेश्वर प्रसाद, पटना सिटी के रामधनी दास, जहानाबाद के सुखदेव वर्मा और पटना के कुंवर राम शामिल हैं. चार चुनावों में भाजपा की जीत हुई. सभी बाहरी थे. कामेश्वर पासवान पटना के, डाॉ संजय पासवान दरभंगा के, डा भोला सिंह (Dr Bhola Singh) बेगूसराय के और गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) लखीसराय जिले के बड़हिया के हैं. राजद के उम्मीदवार के तौर पर दो की जीत हुई. गया की मालती देवी और हाजीपुर के वीरचन्द्र पासवान की. माकपा के प्रेम प्रदीप नालंदा के थे. लोकदल के नथुनी राम भी बाहर के ही थे.
2019 में भी बाहरी
2019 के चुनाव में चंदन सिंह (Chandan Singh) की जीत हुई थी. वह पटना जिले के मोकामा के सकरवार टोला के रहने वाले हैं. इस संसदीय क्षेत्र से जिन तीन स्थानीय लोगों की जीत हुई उनमें सत्यभामा देवी भी थीं. वह हिसुआ के मंझवे निवासी त्रिवेणी प्रसाद सिंह की पत्नी थीं. दो अन्य स्थानीयों में महंत डा. सूर्यप्रकाश नारायण पूरी और प्रेमचंद राम थे. महंत डा. सूर्यप्रकाश नारायण पूरी निर्दलीय निर्वाचित हुए थे तो प्रेमचंद राम माकपा के उम्मीदवार के रूप में.
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