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प्रदेश कांग्रेस को पप्पू यादव स्वीकार नहीं!

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विष्णुकांत मिश्र
21 मार्च 2024

Patna : एक होता है प्रणाम करना और एक प्रणाम कर लेना. सामान्य समझ में दोनों का अर्थ अलग-अलग है. ‘प्रणाम पूर्णिया’ का अर्थ लोग क्या मानें, अखाड़ा सजने-सजाने से पहले यह जान लेना चाहते हैं. कांग्रेस (Congress) नेता उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह (Uday Singh urf Pappu Singh) की ‘वेदना रैली’ की तरह ‘प्रणाम पूर्णिया’ का इंद्रजाल फैला उस दिन पूर्णिया में भारी भीड़ जुटायी गयी. समझ संभवतः यह कि बड़ी भीड़ देख महागठबंधन, विशेष कर राजद (RJD) के रणनीतिकार उनके जनाधार का लोहा मान पूर्णिया की उम्मीदवारी चरणों में समर्पित कर देंगे. वैसा कुछ नहीं हुआ. भीड़ बड़ी अवश्य थी, लेकिन महागठबंधन में किसी ने कोई नोटिस नहीं ली. ‘जाप’ को महागठबंधन का हिस्सा बनाने पर कहीं कोई चर्चा नहीं हुई.

बिना शर्त ‘समर्पण’
महत्वपूर्ण बात यह कि भीड़ जितनी भी जुटी हो, तब के जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan urf Pappu Yadav) में उससे खुद के बूते चुनाव लड़ने-जीतने का आत्मबल नहीं जग पाया. 2019 के संसदीय और 2020 के विधानसभा चुनावों की हार की हताशा से उन्हें उबार नहीं पाया. हार की पुनरावृत्ति की चिंता बनी रही. चिंतामुक्त होने के लिए उन्होंने कुछ समय पूर्व अस्वस्थ लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से शिष्टाचार भेंट की थी. बताया जाता है कि बाद में भी बहुत कोशिश की, राजद में दाल गलती नहीं दिखी. तब आखिरी विकल्प के तौर पर पूर्णिया (Purnea) से उम्मीदवारी की दरखास्त करते हुए कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष बिना शर्त ‘समर्पण’ कर दिया. शर्त की जगह यह आश्वासन कि पूर्णिया से उन्हें उम्मीदवार बनाया गया तो महागठबंधन को उसका लाभ मधेपुरा (Madhepura) और सुपौल (Supaul) संसदीय क्षेत्रों में मिल सकता है.

लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव के साथ पप्पू यादव.

इसलिए नहीं मिल रही थी स्वस्ति
कांग्रेस (Congress) की राष्ट्रीय सचिव व प्रवक्ता रहीं सांसद रंजीत रंजन (Ranjeet Ranjan) पूर्व सांसद पप्पू यादव की पत्नी हैं. इसमें उनकी कोई प्रत्यक्ष भूमिका है या नहीं यह भगवान जाने, विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक उम्मीदवारी के मुतल्लिक पप्पू यादव की एक-दो बार कांग्रेस के एक-दो नेताओं से मुलाकात-बात हुई. सहमति बन गयी. पर, कुछ बातें ऐसी थीं जिनको लेकर स्वस्ति नहीं मिल पा रही थी. पहली बात यह कि पूर्व के कटु अनुभवों के मद्देनजर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद और उनके अघोषित उत्तराधिकारी तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) राजद की बात अलग, पप्पू यादव के किसी भी रूप में महागठबंधन से जुड़ाव के पक्ष में नहीं थे. इसी समझ के तहत पूर्णिया की सीट राजद के कोटे में रखना चाहते थे.

मत्था टेकना ही पड़ा
लेकिन, सत्ता के लिए व्याकुल राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के हस्तक्षेप से पप्पू यादव के लिए रास्ता खुल गया. उनके निर्देशानुसार पप्पू यादव ने मंगलवार की आधी रात में लालू प्रसाद और तेजस्वी प्रसाद यादव के दरबार में ‘मत्था टेक’ बुधवार को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. अकेले नहीं, पुत्र सार्थक रंजन (Sarthak Ranjan) को भी विधिवत कांग्रेसी बनवा दिया. दूसरी तरफ ‘जाप’ का झंडा ढोने और जिंदाबाद का नारा लगाने वालों को उनके अपने हाल पर छोड़ दिया. कांग्रेस में शामिल होने की राह में उनकी जन अधिकार पार्टी (लो) भी अड़चन बनी हुई थी. यह पूछा जा रहा था कि वह तो कांग्रेस में आ जायेंगे, उनकी पार्टी का क्या होगा? कांग्रेस में रह ‘जाप-जाप का जप’ नहीं करना होगा. पहल करने बालों के दबाव में उन्होंने ‘जाप’ का कांग्रेस में विलय कर इस अड़चन को भी दूर कर दिया.

गुस्से में हैं अध्यक्षजी!
तीसरी बात यह थी कि बिहार प्रदेश कांग्रेस के एक-दो नेताओं को छोड़ अन्य कोई भी पप्पू यादव के कांग्रेस से जुड़ाव के पक्ष में नहीं थे. विरोध करनेवालों में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डा. अखिलेश प्रसाद सिंह (Dr. Akhilesh Prasad Singh) भी थे. ऐसे नेताओं को डर यह है कि पार्टी से जुड़ते ही पप्पू यादव अपने स्वभाव के अनुरूप प्रदेश कांग्रेस पर हावी हो जायेंगे और देखते ही देखते सदाकत आश्रम (Sadakat Ashram) ‘जाप’ के दफ्तर के रूप में तब्दील हो जायेगा. विरोध स्वरूप डा. अखिलेश प्रसाद सिंह ने दिल्ली (Delhi) में आयोजित मिलन कार्यक्रम से दूरी बना ली. प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा (Anil Sharma) ने भी खुला विरोध किया. हालांकि, कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान (Shakeel Ahmad Khan) की मिलन कार्यक्रम में मौजूदगी दिखी.


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तब ज्यादा वक्त नहीं लगेगा
प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का विरोध अकारण नहीं है. कहते हैं न ‘पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं’. मिलन कार्यक्रम में पप्पू यादव के समर्थन में नारेबाज़ी और उसको लेकर उन्हें कांग्रेस नेताओं की मिली फटकार से इस जुड़ाव के भविष्य पर कुछ कहने-सुनने की शायद जरूरत नहीं है. मर्जी चलती रही तब ठीक, फटकार का क्रम बन गया तब राह जुदा होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. कारण कि स्वच्छंदता पप्पू यादव के संस्कार-स्वभाव में सन्निहित है. इस पर अंकुश लगा तो निश्चय ही उनकी राजनीति (Politics) की धार कुंद पड़ जायेगी. ऐसा वह शायद ही होने देना चाहेंगे.

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