धो न दें ये आंसू… राजद के अरमानों को!
अशोक कुमार
19 अप्रैल 2024
Araria : याद कीजिये 2020 के विधानसभा चुनाव के समय के उस दृश्य को. चुनाव चिह्न प्राप्त करने के लिए बुलाये गये जोकीहाट (jokihat) के मौजूदा विधायक शाहनवाज आलम (Shahnawaz Alam) पटना में लालू – राबड़ी (Lalu – Rabri) आवास के बैठकखाने में इंतजार करते रह गये और उनके पूर्व सांसद भाई सरफराज आलम (Sarfaraz Alam) उम्मीदवारी लेकर उड़न छू हो गये. शाहनवाज आलम की भारी बेइज्जती हो गयी. बर्दाश्त से बाहर की बेइज्जती! गुस्से में वह सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी एमआईएम (MIM) का उम्मीदवार बन गये. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में बड़ी जीत हासिल कर न सिर्फ बड़े भाई सरफराज आलम को, बल्कि राजद (RJD) नेतृत्व को भी करारा जवाब दे दिया. हालांकि, बाद के राजनीतिक घटनाक्रम में वह फिर से राजद के हो गये.
चौंक गयी राजनीति
उस वाकये की चर्चा यहां इसलिए कि थोड़े अंतर के साथ 2024 के संसदीय चुनाव में उसका दुहराव हो गया. अंतर यह कि इस बार बेइज्जती शाहनवाज आलम की नहीं, सरफराज आलम की हो गयी. इस रूप में कि सीमांचल (Seemanchal) के कद्दावर नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री तसलीम उद्दीन (Tasleem Uddin) के इंतकाल के बाद अररिया संसदीय क्षेत्र से राजद की उम्मीदवारी उनके मंझले पुत्र सरफराज आलम को ही मिलती थी. इस बार तसलीम उद्दीन के छोटे पुत्र विधायक शाहनवाज आलम ने झटक ली. राजद नेतृत्व ने कई बार विधायक व मंत्री और फिर सांसद रहे सरफराज आलम को एक झटके में हाशिये पर धकेल राजनीति को चौंका दिया.
क्यों हुई नाइंसाफी?
सरफराज आलम के साथ ऐसी नाइंसाफी क्यों हुई, इसको लेकर क्षेत्र में कई तरह की चर्चाएं पसरी हैं. कुछ लोग इसे राजद नेतृत्व के भाजपा के समक्ष अघोषित समर्पण के रूप में देख रहे हैं तो कुछ की समझ में यह ‘अपरिपक्व नेतृत्व का निर्णय’ है. इस निर्णय का सीधा लाभ भाजपा को मिल जा सकता है. ऐसे लोग पूर्णिया (Purnia) में राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan alias Pappu Yadav) से राजद के ‘सौतिया डाह’ को भी इसी नजरिये से देखते हैं. इन लोगों की समझ है कि बड़े जनाधार का अहंकार त्याग राजद नेतृत्व अररिया में सरफराज आलम और पूर्णिया में पप्पू यादव की महागठबंधन (grand alliance) की उम्मीदवारी सुनिश्चित कर- करा देता तो फिर चुनाव की फिजा कुछ और होती. अररिया में भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह (Pradeep Singh) और पूर्णिया में जदयू (JDU) उम्मीदवार संतोष कुशवाहा (Santosh Kushwaha) को सीट बचाने के लिए नाकों चने चबाने पड़ जाते.
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दहाड़ रहे पप्पू पूर्णिया में
पूर्णिया में पप्पू यादव निर्दलीय दहाड़ रहे हैं. राजद और जदयू दोनों को एक साथ ललकार रहे हैं. भाजपा को खरी खोटी सुना रहे हैं. परिणाम जो आये, फिलहाल तो राजद और जदयू के उम्मीदवारों का पसीना छुड़ा ही रहे हैं. इसी तरह सरफराज आलम एमआईएम के उम्मीदवार के रूप में या फिर निर्दलीय मैदान में उतर जाते हैं, तो राजद और भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन जा सकते हैं. अररिया पर नजर एमआईएम की भी है. पार्टी सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने एमआईएम के विधायकों को राजद में ले जाने वाले शाहनवाज आलम को चुनावों में धूल चटाने की सौगंध खा रखी है.
बटोर रहे सहानुभूति
इसके मद्देनजर इस संभावना को बल मिल रहा है कि जिस तरह 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद से हताश- निराश शाहनवाज आलम को एमआईएम का उम्मीदवार बना कर असदुद्दीन ओवैसी ने सरफराज आलम को शिकस्त दिलायी थी उसी प्रकार सरफराज आलम को अररिया संसदीय क्षेत्र से एमआईएम का प्रत्याशी बना राजद उम्मीदवार शाहनवाज आलम की राह रोकने का प्रयास कर सकते हैं. वैसे, एमआईएम में संभावना नहीं बनने पर सरफराज आलम के निर्दलीय चुनाव लड़ने की चर्चा भी खूब हो रही है. बहरहाल, राजद की उम्मीदवारी से अकारण वंचित कर दिये जाने पर निकले उनके आंसू व्यर्थ नहीं जायेंगे. विश्लेषकों के मुताबिक ये आंसू सहानुभूति बटोर रहे हैं. सरफराज आलम के मैदान में उतर जाने पर राजद के अरमानों को धो दे सकते हैं.अररिया में चुनाव तीसरे चरण में 07 मई 2024 को होना है. इस बीच हालात में बहुत कुछ बदलाव भी हो जा सकते हैं.
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