लहर है नहीं, गिनेंगे क्या?
विष्णुकांत मिश्र
12 अप्रैल 2024
Aurangabad : औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र में इस बार राजग और महागठबंधन के बीच आमने-सामने का मुकाबला है. जहां तक सामाजिक समूहों की प्रतिबद्धता की बात है तो आम धारणा में यादव (Yadav) और मुस्लिम (Muslim) समाज राजद समर्थक सामाजिक समूह की पहचान रखते हैं. विश्लेषकों की नजर में तीसरी ऐसी कोई जाति नहीं है जिसे मुकम्मल रूप से राजद (RJD) या फिर महागठबंधन के दूसरे किसी घटक दल से बंधा माना जाये. वैसे, अच्छी खासी संख्या में राजद के समर्थक प्रायः सभी पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों एवं दलित वर्ग में हैं. पर, परिणाम को प्रभावित करने का सामर्थ्य नहीं रखते हैं.
हालात बदल गये हैं
महागठबंधन की उम्मीदवारी कुशवाहा (Kushwaha) समाज के अभय कुमार कुशवाहा (Abhay Kumar Kushwaha) को मिली है. इस आधार पर फिलहाल वहां इस समाज को महागठबंधन समर्थक माना जा सकता है. 2019 में भी करीब-करीब ऐसा ही जाति आधारित चुनावी समीकरण था. दांगी-कुशवाहा समाज के उपेन्द्र प्रसाद (Upendra Prasad) महागठबंधन के उम्मीदवार थे. उपेन्द्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी (Jitanram Manjhi) तब महागठबंधन का हिस्सा थे. इसके बाद भी ‘हम’ के उम्मीदवार उपेन्द्र प्रसाद भाजपा के सुशील कुमार सिंह से 70 हजार 552 मतों के अंतर से मात खा गये थे. इस बार महागठबंधन के उम्मीदवार कुशवाहा समाज से तो हैं, पर हालात काफी कुछ बदल गये हैं.
कुछ बदलाव ऐसे भी
जीतनराम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा पहले से राजग में हैं ही, इधर महागठबंधन के पूर्व प्रत्याशी उपेन्द्र प्रसाद का जुड़ाव भी भाजपा (BJP) से हो गया है. उपेन्द्र प्रसाद दांगी समाज से आते हैं. इस क्षेत्र में इस समाज के मत भी अच्छी संख्या में हैं. लोग बताते हैं कि उन मतों पर उपेन्द्र प्रसाद का प्रभाव है. इन सबके बावजूद कुछ बदलाव ऐसे भी दिख रहे हैं जिन्हें भाजपा प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह (Sushil Kumar Singh) के लिए खतरा माना जा रहा है. जैसे कि एंटी इनकंबेंसी तो अपनी जगह है ही, राष्ट्रवाद के साथ हिन्दुत्व का जोश और नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के व्यक्तित्व का आकर्षण इस बार उस तरह उफनता नहीं दिख रहा है, जैसा 2019 में दिखा था.
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यही है सूरत-ए-हाल
वैसे, समाज के निचले तबके के लोगों में नरेन्द मोदी के प्रति ‘खैराती आकर्षण’ बना हुआ है. विश्लेषकों की समझ में वर्तमान में भाजपा के लिए यही बड़ी चुनावी पूंजी है. यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि वोट अपनी जगह है, इस तबके में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) की लोकप्रियता लुप्त नहीं हुई है. वह भी जगह बनाये हुए है. तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) भाजपा की प्रतिकुलताओं में महागठबंधन के लिए अनुकूलता तलाश रहे हैं. पर, दिक्कत यह है कि उनकी तकरीर समर्थक सामाजिक समूहों को ही समझ में आ रही है, अन्य सामाजिक समूहों को नहीं. बहरहाल, औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र का यही सूरत-ए-हाल है. इसमें संभावना किसकी बनती और किसकी बिगड़ती दिख रही है, अलग से बताने की शायद जरूरत नहीं है. मतदान 19 अप्रैल 2024 को है.
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