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गोपालगंज : रख लेगा इस बार उनकी लाज!

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महर्षि अनिल शास्त्री
23 अप्रैल 2024

Gopalganj : बिहार के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार का गृह जिला है गोपालगंज. लंबे समय तक राज्य की सत्ता पर काबिज रहे और आगे भी काबिज होने का ख्वाब पाल रखे लालू- राबड़ी परिवार का गृह जिला. लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी दोनों इसी जिले के हैं. इसे विडम्बना ही कहा जायेगा कि दूसरे जिलों में भले सिक्का चलता हो, सामाजिक न्याय की राजनीति के चरम काल को छोड़ गोपालगंज की चुनावी राजनीति पर इस परिवार की कभी मजबूत पकड़ नही रही है. वर्तमान में भी नहीं है. पकड़ रहती तो महागठबंधन में गोपालगंज की सीट हड़प लेने के बाद उसे विकासशील इंसान पार्टी के हवाले नहीं कर दी जाती.

इससे भी हो जाती है पुष्टि
पकड़ नहीं रहने की पुष्टि इससे भी हो जाती है कि गोपालगंज संसदीय क्षेत्र के सुरक्षित हो जाने के बाद के तीनो चुनावों में राजद और उसके सहयोगी‌ दल की हार हो गयी. जीत एनडीए की हुई. दो बार जदयू और एक बार भाजपा की. दिलचस्प बात यह कि तीनो ही बार रविदास समाज के उम्मीदवार निर्वाचित हुए. इस बार क्या होगा, क्रम टूटेगा या बना रह जायेगा, प्रथम चरण के मतदान के रुख़ को देखते हुए कहना कठिन है. वैसे, संभावना बदलाव की दिख रही है. विश्लेषकों की समझ में चूक संभवतः यह हो गयी है कि सत्ता विरोधी रुझान की अनदेखी कर एनडीए ने जदयू के निवर्तमान सांसद डा. आलोक कुमार सुमन को ही मैदान में उतार दिया है.

उदासीनता बड़ी चुनौती
पांच वर्षीय सांसद कार्यकाल में डा. आलोक कुमार सुमन ने क्या किया क्या नहीं, जनता से संवाद बनाये रखा या नहीं, यह सब तो मुद्दा है ही, एनडीए समर्थकों की उदासीनता भी परेशानी का सबब बनी हुई है. उदासीनता को उत्साह में बदल उन्हें मतदान केन्द्रों तक पहुंचाना डा. आलोक कुमार सुमन‌ के लिए बड़ी चुनौती होगी. उदासीनता खत्म नहीं हुई, अच्छी खासी संख्या में‌ एनडीए समर्थक मतदान केंद्रों पर नहीं पहुंच पाये तो बेड़ा भगवान ही पार लगा पायेंगे, ‌दूसरा कोई नहीं. यहां तक कि नरेन्द्र मोदी की गारंटी भी नहीं.

संकेत बिल्कुल साफ है
मतदान के प्रथम चरण का‌ संकेत बिल्कुल साफ है कि ‘मोदी की गा‌रंटी’ के भरोसे रह कार्यकर्ताओं के उत्साहवर्धन में कोताही और चुनाव अभियान में कंजूसी बरती गयी, तो फिर बेड़ा गर्क ही मानिये! बहरहाल, गोपालगंज में एक तरफ अनेक प्रकार की शिकवा- शिकायतों के साथ‌ सत्ता विरोधी रुझान है, तो दूसरी तरफ नये चेहर के रूप में युवा जोश है. जदयू प्रत्याशी आलोक कुमार सुमन के खिलाफ महागठबंधन ने 36 वर्षीय प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान को अखाड़े में उतारा है. वह विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार‌ हैं. चंचल पासवान गोपालगंज के चर्चित कारोबारी सुदामा मांझी के पुत्र हैं. स्थानीय लोगों की मानें, तो सामाजिक सरोकार से जुड़े सुदामा मांझी की गांव – समाज में चर्चा मुख्यतः दो कारणों से होती है.


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अंतर्धार्मिक विवाह
एक तो उनकी पहचान सफल व्यवसायी की है. मूल व्यवसाय के रूप में हथुआ बाजार, लाइन बाजार और थावे में रसोई गैस की एजेंसी है. ट्रांसपोर्ट की एक कम्पनी भी है. पिता- पुत्र दोनों मिल कर बेहतर ढंग से व्यवसाय चला रहे हैं. कमाई अच्छी होती है. कनफुसकियों की चर्चाओं में उम्मीदवारी का आधार यही कमाई है. सुदामा मांझी के चर्चा में रहने का दूसरा कारण उनका अंतर्धार्मिक विवाह है. वर्षों पूर्व गांव की ही दूसरे समुदाय की लड़की से उन्होंने विवाह कर लिया था. लोग कहते हैं कि भाजपा में महत्व इस वजह से भी मिलता था. वैसे, वंचित वर्ग में उनकी जो पकड़ है, वह भी सियासत में हैसियत दिलाती है.

पहले राजद में थे सुदामा मांझी
तकरीबन बीस वर्षों से राजनीति में सक्रिय सुदामा मांझी थावे प्रखंड के बेदू टोला गांव के रहने वाले हैं. उनकी पत्नी‌ अंजू देवी बापू मध्य विद्यालय, हथुआ में शिक्षिका हैं. परिवार वहीं रहता है. सुदामा मांझी ने अपनी राजनीति की शुरुआत राजद से की थी. कुछ वर्ष पूर्व भाजपा से जुड़ गये थे. अभी गोपालगंज जिला भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष हैं.‌‌ लेकिन, अब भाजपा में नहीं‌ रहेंगे. उससे नाता तोड़ पुत्र प्रेमनाथ चंचल उर्फ चंचल पासवान के चुनाव अभियान को मंजिल तक पहुंचाने में ऊर्जा खपायेंगे. बताया जाता है कि चंचल पासवान का जुड़ाव भी कभी आरएसएस से था. इधर के दिनों में वह विकासशील इंसान पार्टी के करीब हो गये थे. महागठबंधन को उनमें संभावना दिखी. वीआईपी की उम्मीदवारी मिल गयी. उसके भरोसे पर वह खरा उतरते भी हैं या नहीं, यह देखना दिलचस्प होगा.

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