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रोहिणी आचार्य करना होगा अभी इंतजार!

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महेश कुमार सिन्हा

28 जून 2024

Patna : राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) को थोड़ा भी संदेह होता कि तमाम कील-कांटे दुरुस्त कर परिस्थितियां अनुकूल बना दिये जाने के बाद भी हार का दंश झेलना पड़ जायेगा, तो वह दुबई निवासिनी पुत्री रोहिणी आचार्य (Rohini Acharya) को सारण (Saran) से चुनाव नहीं लड़ाते. मीसा भारती (Misa Bharti) को विश्वास में लेकर पाटलिपुत्र (Pataliputra) से उम्मीदवार बना देते. लेकिन, अति आत्मविश्वास और तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav)  की काबिलियत पर भरोसा ने उन्हें जोखिम उठाने का बड़ा आधार दे दिया.

पहली बार हुआ ऐसा

रोहिणी आचार्य की जीत की व्यग्रता ऐसी कि अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में संभवतः पहली बार क्षेत्र विशेष, वह भी अपनी कर्मभूमि सारण में उन्हें चुनाव के दरमियान लम्बा पड़ाव डालना पड़ गया. इसके बाद भी रोहिणी आचार्य से जीत दूर रह गयी. विश्लेषकों का मानना है कि बड़ी जीत मिलने की खुशफहमी में इस पर विचार ही नहीं किया गया कि रोहिणी आचार्य पाटलिपुत्र से निर्वाचित होतीं, तो राजद को राज्यसभा (Rajyasabha) की एक सीट से हाथ धोना नहीं पड़ता. राज्यसभा का सदस्य रहते मीसा भारती पाटलिपुत्र से लोकसभा का सदस्य निर्वाचित हुईं. नियमतः राज्यसभा की सदस्यता त्यागनी पड़ गयी.

एक आया तो एक गया भी

मीसा भारती की बहुप्रतीक्षित जीत से राजद और लालू-राबड़ी (Lalu-Rabri) परिवार को लोकसभा की एक सीट तो मिली पर राज्यसभा की एक सीट उसके हाथ से निकल भी गयी. विश्लेषकों की समझ में वर्तमान में लालू प्रसाद में उतनी ताकत नहीं है कि राज्यसभा की उस सीट पर वह रोहिणी आचार्य को काबिज करा दें. संख्या बल के रूप में ताकत रहती तो निस्संदेह वह ऐसा ही करते. लालू प्रसाद को ताकत क्यों नहीं है, इस प्रस्तुति में उसी की चर्चा की जा रही है

यही है वह पेंच

बिहार में राज्यसभा की दो सीटें रिक्त हुई हैं. मीसा भारती के अलावा विवेक ठाकुर (Vivek Thakur) की सीटें. मीसा भारती द्वारा खाली की गयी सीट का कार्यकाल जुलाई 2028 तक है. विवेक ठाकुर नवादा (Nawada) से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं. उन्होंने भी राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी है. उनकी सीट का कार्यकाल 09 अप्रैल 2026 तक है. नियमों के जानकारों के मुताबिक चूंकि दोनो सीटों का कार्यकाल अलग-अलग है इसलिए उपचुनाव भी अलग-अलग होंगे. यही वह पेंच है जिसके कारण मीसा भारती द्वारा खाली की गयी सीट पर रोहिणी आचार्य को काबिज कराने की लालू प्रसाद की मंशा सीधे तौर पर फलीभूत नहीं हो पायेगी.

सफल नहीं होगी चाल

दोनों सीटों के उपचुनाव एक साथ होते तो ऐसा आसानी से हो जाता. पर, रोहिणी आचार्य की किस्मत इस वजह से नहीं खुल पायेगी कि उनके पिता लालू प्रसाद की पार्टी संख्या बल में कमजोर है. बहुमत में एनडीए (NDA) है इसलिए अलग-अलग उपचुनाव में उसके दोनों उम्मीदवारों की जीत करीब-करीब तय है. सामान्य समझ में तोड़ जोड़ की राजनीति में माहिर माने जाने वाले लालू प्रसाद कोशिश करेंगे भी तो उनकी चाल शायद ही सफल हो पायेगी. इस गणित को इस रूप में सहजता से समझा जा सकता है.


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महागठबंधन का संख्या बल

243 सदस्यीय बिहार विधानसभा की पांच सीटें अभी रिक्त हैं. शेष 238 सदस्यों में 125 एनडीए के हैं और इकलौते निर्दलीय का भी समर्थन उसे प्राप्त है. मतलब एनडीए के कुल 126 विधायक हैं. इनमें भाजपा के 78, जदयू के 44 और ‘हम’ के तीन हैं. महागठबंधन का संख्या बल 111 है. एक विधायक एमआईएम के हैं. जरूरत पड़ने पर उनका साथ उसे मिल सकता है. यानी 112 विधायकों के समर्थन का महागठबंधन का दावा बनता है.

क्या होगा उन विधायकों का

इन 112 में सात वैसे विधायक भी हैं जो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली राजग की सरकार के विश्वास मत के दौरान एनडीए के पक्ष में आ गये थे. उनमें राजद के पांच और कांग्रेस के दो विधायक हैं. तकनीकी तौर पर ये सभी अपने-अपने दल के विधायक हैं. पार्टी का ह्वीप इन पर भी लागू होगा. इसके बावजूद यह सवाल तो जगह बनाये हुए है ही कि राज्यसभा के चुनाव में मतदान की नौबत आयी तो उसमें इनकी भूमिका क्या होगी?

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