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बीमा भारती : सियासी डाह में कर ली खुद को बर्बाद !

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विकास कुमार

16 जुलाई 2024

Patna : रूपौली (Rupauli) के उपचुनाव (By-Election) में बीमा भारती (Bima Bharti) हार गयीं. राजनीति (Politics) के लिए यह कोई चौंकने वाली बात नहीं थी. इसलिए कि उनकी ऐसी गति अनुमानित थी. जदयू (JDU) के कलाधर प्रसाद मंडल (Kaladhar Prasad Mandal) की हार का मायने मतलब इतना अवश्य था कि वह सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) के जदयू उम्मीदवार थे. उनकी जीत के लिए एनडीए ने संपूर्ण ताकत झोंक दी थी. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने भी जोर लगाया था. इसके बाद भी 08 हजार 246 मतों से वह पिछड़ गये. हैरान करने वाली बात यह रही कि इस उपचुनाव में न मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कुछ चल पायी और न विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) की. पूर्णिया (Purnia) के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan alias Pappu Yadav) का दंभ भी टूट गया. खुद को अपराजेय मानने वाली बीमा भारती का भी. जीत केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान (Chirag Paswan) के विश्वस्तों में शामिल रहे शंकर सिंह (Shankar Singh) की हुई.

सबका गुरूर तोड़ दिया

एनडीए में निराशा मिलने की स्थिति में निर्दलीय (independent) मैदान में उतर उन्होंने एक साथ तीनों – नीतीश कुमार, तेजस्वी प्रसाद यादव और पप्पू यादव के गुरूर को तोड़ दिया. तात्कालिक तौर पर चिर प्रतिद्वंद्वी बीमा भारती की राजनीति को गर्त में डाल दिया. उपचुनाव में किसकी क्या उपलब्धि रही, पहले यह जान लेते हैं. शंकर सिंह को 68 हजार 070 मत मिले तो कलाधर प्रसाद मंडल को 59 हजार 824 मत. बीमा भारती 30 हजार 619 मतों पर अटक गयीं. दरअसल रूपौली के 2000 से 2020 तक के छह चुनावों में से पांच में बड़ी जीत हासिल करने वाली बीमा भारती की हार से राजनीति इस कारण अचंभित नहीं हुई कि उपचुनाव में वह उसी दिन हार गयीं थीं जब गुलदस्ता लिये सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के शरणागत हो गयी थीं.

जात गंवायी भात भी न पायीं

समर्थकों को उनका यह समर्पण नागवार गुजरा और कमजोर मान अधिसंख्य ने उनसे मुंह मोड़ लिया. बेहद शर्मनाक हार के रूप में परिणाम सामने है. वैसे तो चुनावों में हार-जीत होती ही रहती है, पर एक तरह से कहें तो इस हार से बीमा भारती के रूपौली की राजनीति से पांव उखड़ गये हैं. जदयू से पुनर्जुड़ाव पर हालात बदल जायें तो वह अलग बात होगी, राजद में रहते शायद ही कभी जम पायेंगे. फिलहाल उनकी स्थिति ‘जात गंवायी भात भी नहीं पायी’ वाली हो गयी है. बीमा भारती जदयू की विधायक थीं. एकाध बार मंत्री बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था. रूपौली में जदयू का पर्याय मानी जाती थीं. लेकिन, पड़ोस के धमदाहा (Dhamadaha) की जदयू विधायक लेशी सिंह (Leshi Singh) से ‘हम किसी से कम नहीं’ जैसी प्रतिद्वंद्विता ने उन्हें ‘घर के न घाट’ के हालात में ला दिया है.


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मुद्दा मंत्री-पद का

यह प्रतिद्वंद्विता आज से नहीं, वर्षों से चली आ रही है. इसमें बहुत कुछ अगड़ा और पिछड़ा का भी भाव है. जलन का अद्यतन मुद्दा मंत्री- पद से जुड़ा बताया जाता है. इस रूप में कि राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद अस्तित्व में आयी एनडीए की सरकार में लेशी सिंह का मंत्री-पद बरकरार रह गया. बीमा भारती को हाशिये पर छोड़ दिया गया. सिर्फ इसी सरकार में नहीं, पूर्व की महगठबंधन (Grand Alliance) सरकार  में भी उन्हें मंत्री (Minister) नहीं बनाया गया था. भला यह कैसे बर्दाश्त होता ! विश्लेषकों के मुताबिक इसी सियासी डाह में वह जदयू और विधानसभा की सदस्यता छोड़ पूर्णिया संसदीय क्षेत्र से राजद की उम्मीदवार बन गयीं. दुर्गति ऐसी हुई कि राजद के इतिहास में शायद ही कभी किसी उम्मीदवार की हुई होगी.

पारिवारिक जीवन भी…

रूपौली के उपचुनाव में भी उनकी गति करीब- करीब वैसी ही हुई. पूरी ताकत खपाने के बाद भी पप्पू यादव चुनावी वैतरणी पार नहीं करवा पाये. करवाते भी तो कैसे ? वहां उनका जनाधार है ही क्या? संसदीय चुनाव में रूपौली में उन्हें 72 हजार 795 मत जरूर मिल गये थे. पर, वे उनके जनाधार के नहीं, मुख्य रूप से राजद समर्थक सामाजिक समूहों के थे. रूपौली में पप्पू यादव का जनाधार क्या है, 2020 के चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो जाता है. उस चुनाव में दीपक कुमार शर्मा (Deepak Kumar Sharma) जन अधिकार पार्टी (Jan Adhikar Party) के उम्मीदवार थे. 03 हजार 134 मतों में सिमट गये थे. बहरहाल, सियासी डाह में बीमा भारती की राजनीति पर ग्रहण तो लग ही गया है, भवानीपुर (Bhawanipur) के चर्चित व्यवसायी गोपाल यादुका (Gopal Yaduka) हत्याकांड में आरोपित पति अवधेश मंडल (Avadhesh Mandal) और पुत्र राजा कुमार (Raja Kumar) के भूमिगत हो जाने से पारिवारिक जीवन भी मुश्किलों में घिरा हुआ है.

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