औरंगाबाद का देवकुंड : बूझती नहीं कभी आग !
राज कुमार सिंह
02 अगस्त 2024
Aurangabad : बाबा दूधेश्वरनाथ! (Baba Dudheshwarnath) औरंगाबाद जिले के देवकुंड (Devkund) में स्थापित विशिष्ट शिवलिंग की यही आध्यात्मिक पहचान है. ख्याति भी इसी रूप में मिली हुई है. विशिष्ट इस रूप में है कि यह देश का इकलौता शिवलिंग है, जो नीलम पत्थर से बना हुआ है. गया, अरवल और जहानाबाद जिलों की सीमा पर गोह प्रखंड क्षेत्र में हसपुरा से छह किलोमीटर की दूरी पर है देवकुंड. वहीं बाबा दूधेश्वरनाथ का मंदिर है जहां पवित्र सावन माह में हजारों की संख्या में श्रद्धालु (Devotee) शिवलिंग पर जलार्पण करते हैं.
महर्षि च्यवन की तपोभूमि
धार्मिक पुस्तकों में इसकी महत्ता का वर्णन इस रूप में है कि भगवान श्रीराम (Lord Shri Ram) ने गया में पितरों को पिण्डदान करने से पूर्व यहीं भगवान शिव (Lord Shiva) को प्रतिष्ठापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी. महर्षि च्यवन (Maharishi Chyawan) ने उसी स्थल को तपोभूमि बना वर्षों तपस्या की. तकरीबन पांच सौ वर्ष पूर्व बाबा बालपुरी (Baba Balpuri) ने च्यवन ऋषि के उसी आश्रम में साधना की. वहीं समाधि भी ले ली. जिस कुंड में बाबा बालपुरी ने समाधि ली उसकी अग्नि (Fire) अनवरत प्रज्ज्वलित है. यह जानकर आश्चर्य होगा कि उस कुण्ड में यदा-कदा ही हवन होता है. कभी-कभी ही श्रद्धालु धूप डालते हैं. इसके बाद भी उसकी आग बूझती नहीं है. राख के नीचे सुलगती रहती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि पांच सौ वर्षों से ऐसा ही देखा जा रहा है.
बड़ा अनर्थ हो गया
कुण्ड के बगल में महर्षि च्यवन की प्रतिमा स्थापित है. बगल में बाबा बालपुरी का वह आसन है जिस पर बैठकर उन्होंने साधना की थी. कुण्ड के सामने समाधि स्थल पर छोटे-छोटे दस शिवलिंग (Shivalinga) स्थापित हैं. बाबा दुधेश्वरनाथ मंदिर कुण्ड से कुछ ही दूर तालाब के किनारे है. पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार महर्षि च्यवन जब तपस्या में लीन थे तो उस समय वहां के राजा ययाति (King Yayati) और उनकी पुत्री सुकन्या (Sukanya) जंगल में भ्रमण के लिए आये थे. सुकन्या ने एक टीले के बीच चमकती रोशनी देखकर उसमें कुश डाल दी.
बुढ़ापा खत्म हो गया
दरअसल वह तपस्या में लीन महर्षि च्यवन थे जिनकी आंखें सुकन्या के कुश डाले जाने से फूट गयीं. कहा जाता है कि श्राप से बचने के लिए राजा ययाति ने सुकन्या की शादी महर्षि च्यवन से करा दी. तब इस बेमेल शादी को दृष्टिगत रख अश्विनी कुमारों ने यज्ञ कर महर्षि च्यवन को उसी सहस्त्रधारा में स्नान कराया और विशेष रसायन तथा सोमरस का पान कराया. इससे उनका बुढ़ापा खत्म हो गया. यौवन लौट आया. वही विशेष रसायन बाद में च्यवनप्राश (Chyawanprash) के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
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सूर्य उपासना का भी केंद्र
देवकुंड धाम सूर्य उपासना (Sun Worship) का भी केंद्र है. वहां स्थित पवित्र सरोवर में बड़े पैमाने पर छठ पर्व (Chhath Festival) का अनुष्ठान होता है. ऐसी मान्यता है कि सरोवर के कारण ही इस स्थान का नाम देवकुंड है. पुनपुन एवं मंदार नदियों के संगम (Confluence) पर महर्षि च्यवन द्वारा सप्त नदियों एवं सप्त सिंधुओं के जल के सम्मिश्रण से बनाये गये इस सरोवर से संबंधित कई कथाएं हैं. आनंद रामायण (Ramayana) की एक कथा में कहा गया है कि त्रेता युग में कर्मनाशा नदी पार कर भगवान राम देवकुंड पहुंचे और इसी सरोवर में स्नान कर महर्षि च्यवन का दर्शन किया. उन्हीं के द्वारा वहां शिवलिंग स्थापित की गयी.
ऐतिहासिक पर्यटन स्थल
महर्षि च्यवन के संदर्भ में कहा जाता है कि गया की स्थापना करने वाले राजर्षि ने अश्वमेघ यज्ञ (Ashvamedha Yagya) का आयोजन किया था. उसमें महर्षि च्यवन भी आये थे. उसी क्रम में उन्होंने ककीट देश यानी मगध (Magadh) क्षेत्र में भ्रमण किया था. तभी सोनभद्र व पुनपुन के बीच उन्हें सिद्घवन दिखा. उससे प्रभावित हो वह वहीं तपस्या पर बैठ गये. वही सिद्घवन आज का देवकुंड है. औरंगाबाद जिले का यह बहुत ही महत्वपूर्ण ऐतिहासिक (Historical) पर्यटन स्थल है. पर, जिस रूप में इसका विकास होना चाहिये वैसा नहीं हो पाया है.बिहार सरकार के पर्यटन विभाग (Tourism Department) को इस पर खास ध्यान देने की जरूरत है.
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